क्या देश में अब भी मुगल सोच के लोग हैं?

ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि कोरोना संक्रमण पर देश को एकजुटता की जरुरत है तब कांग्रेस के नेता मुगलों की तरह सनातन संस्कृति को निशाना बना रहे हैं.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 15, 2020, 04:11 PM IST
    • संबित पात्रा ने कहा कि ये मानसिकता मुगलों की तरह है
    • देश के सभी नागरिकों से खुद प्रधानमंत्री ने सहयोग मांगा
    • कोरोना के खिलाफ जंग कमजोर करने की कोशिश
क्या देश में अब भी मुगल सोच के लोग हैं?

मुंबई: भाजपा के पूर्व सांसद और महाराष्ट्र के बड़े नेता किरीट सोमैया ने कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि पृथ्वीराज चव्हाण ने मांग की है कि सरकार को मंदिरों में रखे सोने का संकट के समय इस्तेमाल करना चाहिए. मैं पृथ्वीराज चव्हाण से पूछना चाहता हूं कि क्या सोनिया गांधी ने आपसे ये मांग करने के लिए कहा है? क्या यह कांग्रेस का रुख है? क्या यह मांग कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की है?' दूसरी तरफ भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी निशाना साधते हुए कहा कि ये मानसिकता मुगलों की तरह है.

बीजेपी ने पूछा है कि क्या पृथ्वीराज चव्हाण का बयान कांग्रेस की आधिकारिक सोच है? विश्व हिंदू परिषद ने पृथ्वीराज चव्हाण के बयान पर ये कहकर सवाल उठाया है कि जब वक्फ बोर्ड और चर्च के पास भी अपार संपत्ति है तो फिर कांग्रेस को मंदिरों पर ही नजर क्यों है.

मंदिरों की संपत्ति पर बुरी नजर क्यों

 

बड़ा सवाल ये है कि जब देश के सभी नागरिकों से खुद प्रधानमंत्री ने सहयोग मांगा है तब मन्दिरों के सोने और संपत्ति को लेकर ऐसी बयानबाजी करके कांग्रेस के नेता क्या साबित करना चाहते हैं. कांग्रेस को विचार करना चाहिए कि खुद उसकी ओर से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में विशेष सहयोग क्यों नहीं किया गया है. मंदिरों के पैसे पर नजर रखने वाले पृथ्वीराज चव्हाण ने खुद कितना आर्थिक सहयोग किया है, ये जनता को बताना चाहिये.

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कोरोना के खिलाफ जंग कमजोर करने की कोशिश

कोरोना संकट से निपटने के लिए कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण के इस सुझाव के बाद से संत समाज भड़क उठा है. संन्यासियों का कहना है कि सबसे पहले कांग्रेस के नेताओं की संपत्ति का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए. मंदिरों की संपत्ति देश की नहीं मंदिरों की है. साथ ही इन नेताओं के बयान से देश की लड़ाई भी कमजोर होती है क्योंकि ये विपक्षी दलों के नेता खुद तो कुछ करते नहीं और यदि कोई समर्पण से जनसेवा करना चाहता भी है तो उसके काम में व्यवधान उत्पन्न करते हैं.

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