नई दिल्ली: बिहार में महागठंधन को जनता ने नकार दिया है. इस बात को मानने के लिए विपक्ष तैयार ही नहीं है. अब शिवसेना ने इस हार को जीत का नाम देने की कोशिश की है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक तरफ आरजेड़ी नेता तेजस्वी यादव की खूब वाह-वाही की गई है तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार को जमकर खरी-खोटी सुनाई गई है.
हार की वकालत कर रही है शिवसेना!
सामना में लिखा है कि "बिहार में भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल, इन दो विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों को सफलता मिली है. इसमें नीतीश कुमार और उनकी पार्टी कहीं नहीं है. मुख्यमंत्री के रूप में जनता द्वारा झिड़क दिए जाने पर मुख्यमंत्री पद पर उन्हें लादना एक प्रकार से जनमत का अपमान है. इस परिस्थिति में तीसरे क्रमांक पर फेंके जा चुके नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में आगे बढ़ेंगे तो यह उनके राजनीतिक करियर की शोकांतिका साबित होगी, यह हारे हुए पहलवान को जीत का पदक देने जैसा समारोह साबित होगा."
'असली विजेता तेजस्वी यादव ही हैं'
शिवसेना के मुखपत्र में बिहार की राजनीति में महागठबंधन की हार को लेकर ये दलील दी गई है कि नतीजे कुछ भी आए हों, लेकिन विजेता तेजस्वी ही है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में RJD सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. लेकिन बिहार में NDA की सरकार बनाने का जनादेश मिला है. ऐसे में शिवसेना को ये समझ लेना चाहिए कि महाराष्ट्र में जिस प्रकार NDA को जनादेश मिला और उद्धव जी.. ने कुर्सी की लालच में अपना राजनीतिक ईमान को सरेआम बेच दिया, वैसा बिहार में होना मुश्किल है.
तेजस्वी की तारीफ करते हुए सामना में ये भी लिखा गया कि लिखा गया कि ‘NDA’ के हाथ फिसलती जीत लगी है और असली विजेता 31 वर्षीय तेजस्वी यादव ही हैं. सामना में लिखा गया कि "तेजस्वी की राष्ट्रीय जनता दल पार्टी बिहार में पहले क्रमांक की पार्टी साबित हुई. यह भाग्य भाजपा को नहीं मिल पाया इसलिए सत्ता बचाने का आनंद जरूर मनाया जा सकता है पर जीत का सेहरा तेजस्वी यादव के सिर पर ही है. आर-पार की लड़ाई में नीतीश कुमार के नेतृत्व में गठबंधन को 125 सीटें मिलीं. विधानसभा में 243 विधायक हैं इसलिए बहुमत 122 का है."
उद्धव जी, हार तो हार होती है!
सामना में कड़े शब्दों का प्रयोग करते हुए ये लिखा गया कि "प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार की जीत कितनी बारीक है, इसे समझ लें. तेजस्वी यादव के महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं. उनकी आठ सीटें 100 से 300 वोटों के अंतर में हाथ से निकल गईं. तेजस्वी यादव की तेजतर्रार प्रतिमा बिहार के विधानसभा चुनाव में तप कर निखरी है. तेजस्वी के रूप में सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि देश को एक जुझारू युवा नेता मिला है, वह अकेले लड़ता रहा. वह विजय के शिखर पर पहुंचा. वह भले जीता ना हो लेकिन उसने हार नहीं मानी. देश के राजनीतिक इतिहास में इस संघर्ष को लिखा जाएगा. बिहार में रोटी सेंकी जा सकेगी, ऐसा लग रहा था, लेकिन रोटी जल चुकी है. तेजस्वी यादव थोड़ी प्रतीक्षा करें, भविष्य उनका ही है.
सबसे बड़ी बात तो ये कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को ये समझ लेना चाहिए कि हार तो हार ही होती है, चाहें वो 1 वोट से मिली हार हो या फिर 1 लाख वोट से.. दूसरी बड़ी बात शिवसेना का ऐसा मानना है कि बिहार में तेजस्वी यादव ने अकेले लड़ा, यानि शिवसेना ऐसा मानती है कि मैडम सोनिया गांधी की पार्टी और लेफ्ट का रोल इस चुनाव में बिल्कुल ही नहीं था? वो ये मानते हैं कि कांग्रेस की इज्जत बिहार में तेजस्वी ने बचाई है? शिवसेना और उसके मुखपत्र सामना को एक नसीहत है कि वो इस बात पर ज़रा खुलकर बात करे कि चुनाव में कांग्रेस का कोई वजूद नहीं था, बल्कि तेजस्वी ने ही अकेले लड़ा..
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