UP Politics: अखिलेश को परेशान कर रहा है ओवैसी-राजभर फैक्टर

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की तैयारियों के बहाने नए पुराने, छोटे बड़े सभी राजनीतिक दल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए जमीन तैयार करने में लग गए हैं. नेताओं के मेलजोल और सियासी बयानबाजी तेज हो गई हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 13, 2021, 04:53 PM IST
  • उत्तर प्रदेश में बढ़ रही है अखिलेश की मुसीबत
  • ओवैसी और राजभर की जोड़ी बिगाड़ रही है काम
  • यूपी में मुस्लिम वोटबैंक पर सेंध लगाने की तैयारी
UP Politics: अखिलेश को परेशान कर रहा है ओवैसी-राजभर फैक्टर

लखनऊ: ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और दिल्ली में पार्टी के विधायकों की पूरी खेप सियासी दम दिखाने की कोशिश में जुटी हुई है. अपनी जमीन मजबूत करने की कवायद में ओवैसी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के साथ पूर्वांचल का दौरा भी शुरू कर चुके हैं.

समाजवादी पार्टी की चिंता बढ़ी

इन दोनों दलों के गठबंधन से सबसे ज्यादा चिंता समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को है, क्योंकि मिशन यूपी 2022 की अभियान की शुरुआत के लिए असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने जिस तरह से सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ को चुना है. वो सपा के लिए गंभीर संकट का इशारा है. आजमगढ प्रदेश के उन 25 जिलों में से एख है जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में रहते हैं. फिलहाल आजमगढ़ से अखिलेश यादव सांसद हैं.

आजमगढ़ (Azamgarh) समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाला क्षेत्र है, जहां विधानसभा की 10 सीटें हैं. 2017 में 5 पर समाजवादी पार्टी 4 पर बसपा (BSP) और एक सीट भाजपा के खाते में आई थी, जबकि इससे पहले 2012 में नौ सीटें सपा ने जीती थी. ओवैसी का आजमगढ़ कूच करना न सिर्फ सपा को चुनौती देना है, बल्कि इस एक जिले से पूर्वांचल का साधने के लिए उन्होंने राजनीतिक समीकरण तैयार कर लिया है, जिसमें सबसे अहम आजमगढ़, जौनुपर, मऊ, गाजीपुर, बलिया, भदोही और चंदौली जैसे जिलों की लगभग सभी जिलों पर ओमप्रकाश राजभर (Omprakash Rajbhar) की पार्टी का मजबूत आधार है और समाजवादी पार्टी के लिए ये खतरे की घंटी है.

मुस्लिम प्रभावित सीटों की जंग

यूपी की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 143 सीटें मुस्लिम प्रभावित मानी जाती हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस फीसद के बीच हैं. 73 सीटों पर मुसलमान तीस फीसदी से ज्यादा हैं. बीते 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे और 2019 के लोकसभा नतीजों को खंगाला जाए तो मुस्लिम वोटों के बंटवारे सेसबसे ज्यादा फायदा सीधे भाजपा को होना तय है. 2014 इसका उदाहरण है, जब भाजपा ने केंद्र में प्रचंड बहुमत यूपी के दम पर ही हासिल किया था. यहां उसे 80 में से 71 सीटें मिली थीं, लेकिन 2019 में सपा-बसपा गठबंधन से मुस्लिम वोटों में विभाजन नहीं हुआ और भाजपा (BJP) को 54 सीटें ही मिलीं.

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2017 में विधानसभा की 403 सीटों में भाजपा ने 337 सीटें जीती थी तब सपा और बसपा ने अलग अलग चुनाव लड़ा था. इस विधानसभा चुनावों में 20-30 फीसदी वाली 70 मुस्लिम सीटों में से सपा को 37 और बसपा को 13 सीटें मिली थी. कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से 8 सीटें आई थी. इसी तरह 30 फीसदी से ज्यादा मुसलमानों वाली 73 सीटों में से 35 पर सपा, 13 पर बसपा और छह पर कांग्रेस (Congress) राष्टीय लोक दल (RLD) गठबंधन ने जीत दर्ज की थी.

यूपी में करीब 18 जिले ऐसे हैं जहां आबादी 20 फीसदी से लेकर 50 फीसदी तक है.

यूपी में मुस्लिम बहुल जिले

  • मुरादाबाद- 50.80%
  • रामपुर- 50.57%
  • बिजनौर- 43.04%
  • सहारनपुर- 41.95%
  • शामली- 41.77%
  • मुजफ्फरनगर- 41.10%
  • अमरोहा- 40.78%
  • बलरामपुर- 37.51%
  • बरेली- 34.53%
  • मेरठ- 34.43%
  • बहराइच- 33.54%
  • सम्भल- 32.88%
  • हापुड़- 32.39%
  • श्रावस्ती- 30.79%
  • सिद्धार्थनगर- 29.23%
  • बदायूं- 23.26%
  • बाराबंकी- 22.61%
  • गाजियाबाद- 22.53%
  • लखनऊ- 21.46%
  • खीरी- 20.08%
  • अलीगढ़- 19.85%

असल में यूपी की कुल मुस्लिम (Muslim) आबादी तकरीबन 19 फीसदी है. ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं. शहरों में 32 फीसदी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. राज्य के उत्तरी इलाके मुस्लिम बहुल हैं. परंपरागत रूप से यहां के मतदाताओं का रुझान कांग्रेस या सपा की तरफ रहा है. 2014 लोकसभा चुनाव में इस वोटबैंक का 66 फीसदी हिस्सा सपा और कांग्रेस के खाते में गया था. 21 फीसदी मुस्लिम वोटरों ने बसपा के लिए मतदान किया, बाकी अन्य दलों के बीच बंट गया.

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इसके अलावा अखिलेश यादव के लिए औवेसी के साथ राजभर की जोड़ी खतरे की घंटी है. राजभर ने हाल ही में भाजपा के खिलाफ भागीदारी संकल्प मोर्चा पर जोर लगाई है. इस मोर्चे का नेतृत्व ओमप्रकाश राजभरकर ही कर रहे हैं, जिसमें ओबीसी समुदाय के आठ दल शामिल हैं. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी), बाबू सिंह कुशवाहा की अधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल की अपना दल (के), प्रेमचंद्र प्रजापति की भारतीय वंचित समाज पार्टी, अनिल चौहान की जनता क्रांति पार्टी (आर) और बाबू राम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी शामिल है.

प्रदेश में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का है, लगभग 52 फीसदी पिछड़ा वोटबैंक में 43 फीसदी वोट गैर यादव बिरादरी का है. हालांकि पिछड़ा वर्ग का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन जानकारों का मानना है कि पिछड़ा वर्ग जिस दल के साथ होता है सूबे में सरकार उस दल की बनती है. 2017 के चुनाव में बीजेपी केशव प्रसाद मौर्या के नेतृत्व में गैर यादव पिछड़ा वर्ग को अपनी तरफ लाने में सफल रही थी. यही वजह है कि भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहें अखिलेश यादव के सामने ओवैसी और राजभर मुश्किल चुनौती पेश करेंगे.

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