नींव की ईंट: राम मंदिर के सच को लेकर अडिग खड़े रहे पुरातत्वविद् केके मुहम्मद

मंदिर निर्माण में नींव की जो ईंट आधार बनीं उऩ्हें हमेशा याद रखा जाएगा. संघर्ष की इस मंजिल में भी ऐसी ही कई नींव की ईंटें हैं जो सबसे गहराई में जाकर समाईं तब उस पर आज का विजय स्तंभ खड़ा हुआ. जी हिंदुस्तान ऐसी ही शख्सियतों की कहानी नींव की ईंटे श्रृंखला में प्रस्तुत कर रहा है. पढ़िए पुरातत्वविद् केके मुहम्मद की कहानी

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Aug 5, 2020, 08:42 PM IST
    • 1976 में हुई अयोध्या की खुदाई में शामिल थे पुरातत्वविद् केके मुहम्मद
    • बारीकियों से किया अध्ययन, सच को किया उजागर, कई मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों के खोजकर्ता हैं
नींव की ईंट: राम मंदिर के सच को लेकर अडिग खड़े रहे पुरातत्वविद् केके मुहम्मद

अयोध्याः होइहें वही जो राम रचि राखा, यानी कि होना वही है जैसा राम ने निश्चित कर रखा है. और हुआ भी वही. अयोध्या की पवित्र भूमि पर राम मंदिर के साकार होने का संघर्ष कोई एक-दो, दस या महज पचास साल की बात नहीं है. सदियों तक लगातार जूझते रहने की कहानी है. 5 अगस्त आज के ऐतिहासिक दिन मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन हुआ और कुछ ईंटें नींव में रखीं गईं. 

यह ईंटें मंदिर की पुरोधा बनेंगीं, सारा संसार मंदिर का ऊपरी मंडप देखेगा, मंदिर का कलश देखेगा, देखेगा उसके ठोस स्तंभ. लेकिन नींव की जो ईंट आधार बनीं वह आज के बाद नहीं दिखेंगीं. संघर्ष की इस मंजिल में भी ऐसी ही कई नींव की ईंटें हैं जो सबसे गहराई में जाकर समाईं तब उस पर आज का विजय स्तंभ खड़ा हुआ. जी हिंदुस्तान ऐसी ही शख्सियतों की कहानी नींव की ईंटे श्रृंखला में प्रस्तुत कर रहा है. 

नींव की ईंटें में पढ़िए केके मोहम्मद की कहानी 

प्रोफेसर बीबी लाल के बयान से मची हलचल
साल था 1976, अयोध्या में पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की टीम पुरातात्विक महत्व के लिए खुदाई कर रही थी. बी बी लाल विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे और उनके नेतृत्व में ही सर्वेक्षण और खुदाई का काम जारी था.

भूमि की गहराई में वह सत्य दबा था जिसके लिए धरातल पर संघर्ष जारी था. बीबी लाल ने सर्वेक्षण के आधार पर कहा अयोध्या में राम का अस्तित्व है. 

विभागीय कार्रवाई का किया सामना
उनका यह कहना ही था कि मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई. मंदिर के लिए संघर्ष को और पुख्ता हवा मिल गई और शायद तत्कालीन सरकार के यह हवा अपने विरुद्ध भी लगी होगी. लेकिन महान रणनीतिकार चाणक्य ने लिखा है कि हवा का रुख हमेशा एक जैसा नहीं रहता है. अपने बयान के लिए बीबी लाल को विभागीय कार्रवाई का सामना करना पड़ा. 

ऐसे हुई केके मुहम्मद की एंट्री
इसी दौरान सामने आए केके मोहम्मद. पुरातत्वविद हैं. जब बीबी लाल पर कार्रवाई हुई तो केके मुहम्मद ने डटकर कहा. झूठ बोलने से अच्छा है मैं मर जाऊं. वह अपने बयान पर कायम रहे. उन्होंने बीबी लाल के बयान का पूर्ण समर्थन किया साथ ही कई ऐसे साक्ष्य भी सामने रखे जो कि जोर -शोर से गवाही देते थे कि विवादित स्थल के नीचे का ढांचा एक प्राचीन कालीन मंदिर था. 

जुनूनी और ऐतिहासिक सत्य के प्रति निष्ठावान
केके मुहम्मद पुरातत्वविद तो थे ही साथ ही उनमें प्राचीनता को लेकर गहरा रुझान था. उन्होंने कई प्राचीन मंदिर और स्थल जो कि आक्रमण की आंधी में जमींदोज थे उन्हें खोजकर बाहर निकाला. उनका यह जुनून उन्होंने अयोध्या ले गया और वह बीबी लाल की टीम में शामिल हुए.

वैचारिक खुलापन और उत्कृष्ट सोच का ही नतीजा था कि सच को उन्होंने छिपने नहीं दिया और किसी भी तरह के प्रलोभन और डर से ऊपर अपने काम के ईमान को रखा. 

अयोध्या प्रकरण पर लिखी है किताब
अयोध्या प्रकरण और खुदाई के पूरे विवरण को समेटते हुए केके मुहम्मद ने किताब की शक्ल भी दी है. नाम है 'मैं हूं भारतीय'. इस किताब में उन्होंने बारीकियों से मिट्टी की परत दर परत हटाई है और धूल के एक-एक कण के नीचे जो छिपा था उसे सामने रखा.

वह लिखते हैं कि प्रो बीबी लाल की अगुवाई में अयोध्या में खुदाई करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट टीम में दिल्ली स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के 12 छात्रों में से एक मैं भी था. 

कथित ढांचे में मंदिर के स्तंभ
अपनी किताब में महम्मद सबसे पहला जिक्र करते हैं कि 1976 की खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, इनमें 52 मजदूर मुस्लिम समाज से थे. खुदाई शुरू हुई और शुरुआती ही कुछ चोट में परतें उधड़ने लगी. वह लिखते हैं कि मैं हैरान हूं कि कथित बाबरी की दीवारों में मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखते थे.

यह खंभे ब्लैक बसाल्ट पत्थरों से बने थे और इनके निचले भाग में पूर्ण कलश बने हुए थे. मंदिर निर्माण कला में पूर्ण कलश ऐश्वर्य चिह्नों की प्रतीक हैं. यह निर्माण 11वीं-12 सदी की तरह ही था.  

वामपंथी इतिहासकारों पर लगाए आरोप
इसी किताब में उन्होंने वामपंथी इतिहासकारों पर खुलकर आरोप लगाए हैं. लिखा है कि वह शुरू से ही निष्पक्ष नहीं थे और उनकी सारी खोज बतौर इतिहास कार नहीं, बल्कि एकतरफा प्रतिनिधि के तौर पर थी.

इस पूरी खुदाई की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक मजिस्ट्रेट भी कर रहे थे. और जब हाईकोर्ट ने मंदिर के पक्ष में अपना फैसला रखा तो भी वामपंथी इतिहास कार अपनी भूल-गलती मानने को तैयार नहीं हुए. 

जीवन परिचय की झलक
डॉ. केके मुहम्मद ने एक साधारण परिवार में जन्म लेकर कड़े परिश्रम व लगन से इतनी उपलब्धियां हासिल कीं. इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा केरल के केलीकट में हुई थी. यह नगर उनका जन्मस्थल भी है. वहां 01 जुलाई 1952 को उनका जन्म हुआ था.

इन्होंने 1973-1975 के दौरान अलीगढ़ मुश्लिम विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में एमए की डिग्री हासिल की. 1976-77 में इन्होंने दिल्ली स्थित पुरातत्व अन्वेषण विभाग से डिप्लोमा प्राप्त किया.

पद्मश्री से हुए सम्मानित
केके मुहम्मद इस पूरे दौरान अडिग रहे और सुप्रीम कोर्ट से मंदिर के पक्ष में फैसला आने तक उनका सच के प्रति यही रुख सहयोगी बना. साल 2012 में वह सेवानिवृत्त हुए. अपनी निष्ठा और ताउम्र तमाम सफल सटीक खोजों के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया. 

आज जब मंदिर का सदियों पुराना स्वप्न हकीकत की धरती पर है तो इस दिव्य दिन केके मुहम्मद और उनके सत्य को नमन.. 

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