नई दिल्लीः यह प्रासंगिकताओं का दौर है. दौर इसलिए क्योंकि यहां हर एक घटनाक्रम अतीत के पन्नों से साझेदारी करते ही आगे बढ़ता है, फिर चाहे वह घटनाएं एक सी हों या अलग-अलग. इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि दिल्ली के रास्तों पर किसान अड़ा हुआ है, वह अपने फायदे के लिए बनाए गए कानूनों का विरोध कर रहा है. इसी घटना की साक्षी तारीख यानी 23 दिसंबर के दिन को किसान दिवस के तौर पर बता रही है.
किसान दिवस, यानी वह दिवस जो उस एक राजनीतिक व्यक्तित्व की जयंती का दिन है, जिसे प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और दूसरे प्रधानमंत्री शास्त्री जी की विरासत का प्रतिनिधि बताया गया. जिसे भारत की प्रशंसा में निबंधों में लिखी पहली पंक्ति भारत एक कृषि प्रधान देश है,
उसे सार्थक करने वाला बताया गया, जिसे किसानों का अगुआ नेता कहा गया, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की माटी का लाल जो संसद में किसानों की आवाज लेकर पहुंचा, देश उन पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती मना रहा है.
चौधरी चरण सिंह की विरासत को समझने के लिए कुछ सालों के नहीं बल्कि आजादी मिलने के पहले के सालों की ओर झांकना होगा.
यह 1937 का समय था. ब्रिटानी हुकूमत का समय. देश में इस वक्त तक चुनावी प्रक्रिया शुरू हो गई थी, लेकिन दिखावे से अधिक उसका मतलब न था. उस दौर में चौधरी चरण सिंह बागपत से विधानसभा के लिए चुने गए.
तब उनकी उम्र 34 वर्ष कुछ की थी. किसानों की प्रति अपनी पहली जिम्मेदारी समझते हुए उन्होंने किसानों के अधिकार रक्षा और फसल की बिक्री से संबंधित बिल विधानसभा में पेश किया.
छपरौली-बागपत से रहे विधायक
इस इकलौते बिल ने देश और किसानों में विश्वास तो भरा ही, साथ ही कांग्रेस में भी नई जान फूंक दी जो कि ब्रिटिश हूकूमत में चुनाव लड़़े जाने को लेकर चौतरफा विरोध झेल रही थी. इसी चुनाव से आजादी के बाद का कांग्रेस का ग्राउंड तैयार हुआ. जिसे चरण सिंह ने खेत की तरह उपजाऊ बनाया और कांग्रेस ने कई साल तक फसल काटी.
1937 से 1977 तक वह छपरौली-बागपत से विधायक रहे और इस पूरे दौरान किसान उनके दिल के करीब.
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जब हिंडन किनारे नमक बनाने पहुंचे
किस्से और कहानियों के तो कई क्रम हैं जो जीवन के बढ़ते हुए सालों के साथ अनुभव और उपलब्धि बनकर दर्ज होते गए. फिर चाहे आत्मविश्वास की बात कर लीजिए, जब युवा चरण सिंह ने हिंडन किनारे नमक बनाया और जेल गए. या फिर बात कीजिए कि वह कांग्रेस में ही रहकर सर्वेसर्वा नेहरू के विरोधी बने रहे.
सादी धोती-कुर्ता, एक छड़ी और सहज मुस्कान में गंभीर चेहरा लिए यह इकहरा बदन वाला राजनेता कभी घबराया, हिचकिचाता नहीं दिखा. 23 दिसंबर 1902 को जन्मे चरण सिंह 29 मई 1987 को परलोक सिधारे.
लेखपालों का पद बनाया, इसके पीछे ऊंची सोच थी
1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी. भारतीय क्रांति दल नाम से अपनी पार्टी बना ली. राम मनोहर लोहिया का साथ था. उत्तर प्रदेश में पहली बार कांग्रेस हारी. चरण सिंह मुख्यमंत्री बने. 1967 और 1970 में. 1952 में ही उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा खत्म हुई.
लेखपाल का पद बना था. तय था कि जमींदारी खत्म कर किसानों की मदद करनी है. इसी के साथ अपने मुख्यमंत्री काल में चरण सिंह ने एक ब़ड़ा निर्णय लेते हुए खाद पर से सेल्स टैक्स हटा लिया.
फिर वह बने प्रधानमंत्री
इमरजेंसी के बाद इंदिरागांधी की बुरी तरह हार हुई. देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई. जनता पार्टी की सरकार में मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने और चौधरी चरण सिंह इस सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे.
लेकिन पार्टी में आंतरिक कलह का नतीजा हुआ कि सरकार गिर गई. बाद में कांग्रेस के ही सपोर्ट से चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री बने. 14 जनवरी 1980 तक उनका कार्यकाल रहा.
किसान कब समझेंगे सरकार की मंशा
कहते हैं कि अगर वह प्रधानमंत्री बने रहते तो कृषि प्रधान देश में किसान सिर्फ निबंधों तक ही नहीं सिमटे होते. आज उनके लिए कई कल्याणकारी योजनाएं हैं. उनकी आय को दोगुना करने के वादे के साथ नया कृषि कानून है.
सरकार अपनी ओर से वादा कर रही है वह किसान कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है. आंदोलन के बीच चौधरी चरण सिंह की जयंती मन रही है. किसान सरकार की मंशा से कितने वाकिफ होंगे... अभी तो अंधेरे में ही है.
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