नेहरू का वो माफीनामा जो साबित करता है कि सावरकर वीर क्यों हैं?

साल 1923 में नाभा रियासत में गैर कानूनी ढंग से प्रवेश करने पर औपनिवेशिक शासन ने जवाहरलाल नेहरू को 2 साल की सजा सुनाई गई थी. तब नेहरू ने भी कभी भी नाभा रियासत में प्रवेश न करने का माफीनामा देकर दो हफ्ते में ही अपनी सजा माफ करवा ली थी. 

Written by - Ravi Ranjan Jha | Last Updated : Feb 25, 2021, 08:10 AM IST
  • सुविधाओं के बीच देहरादून जेल में जाने वाले बन गए आजादी के मसीहा
  • काले पानी की सजा भुगतने वाले, यातनाएं सहने वालों को मिली गुमनामी
नेहरू का वो माफीनामा जो साबित करता है कि सावरकर वीर क्यों हैं?

नई दिल्लीः क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर को महात्मा गांधी ने तो वीर बता दिया था. साथ ही उनके कैद में रहने पर चिंता भी जताई थी. उन्होंने कहा था 'अगर भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा, तो मुझे डर है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र (सावरकर के बड़े भाई भी कैद में थे) सदा के लिए हाथ से चले जाएंगे.

एक सावरकर भाई (विनायक दामोदर सावरकर) को मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं. मुझे लंदन में उनसे भेंट का सौभाग्य मिला है'. ये विडंबना ही है कि गांधी को मानने वाले वामपंथी महात्मा की ही बात नहीं मानते. नहीं तो आजादी के इतने साल बाद भी सावरकर की वीरता पर ऐसे प्रश्नचिह्न नहीं ही लगाए जाते. 

सावरकर की माफी पर शोर, नेहरू की माफी पर चुप्पी
इसी के साथ इस ओर भी ध्यान दिलाना जरूरी है जो लेफ्ट लिबरल गैंग सावरकर के माफीनामे पर शोर मचाता है वह नेहरू के माफीनामे पर एक दम चुप्पी साध लेता है.

अब सवाल ये है कि सावरकर जैसे महान क्रांतिकारी को कायर और अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने वाला साबित करने की साजिश क्यों रची गई?

ये थी अंग्रेजों की साजिश
दरअसल काले पानी की सजा काट रहे सावरकर को इस बात का अंदाजा हो गया था कि सेल्युलर जेल की चारदीवारी में 50 साल की लंबी जिंदगी काटने से पहले की उनकी मौत हो जाएगी.

ऐसे में देश को आजाद कराने का उनका सपना जेल में ही दम तोड़ देगा. लिहाजा एक रणनीति के तहत उन्होंने अंग्रेजों से रिहाई के लिए माफीनामा लिखा. 

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बहुत से लोगों ने मांगी माफी
इसी माफीनामे को आधार बनाकर सावरकर को कायर साबित करने की दम भर कोशिश वामपंथियों ने की पर लेफ्ट लिबरल गैंग के दोमुंहेपन को उजागर करना जरूरी है.

क्योंकि सावरकर के अलावा बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने ये काम किया था लेकिन चूंकि वैसे सेनानी इनकी विचारधारा के लिए मुफीद हैं लिहाजा वे उनपर आपराधिक चुप्पी साधे रहते हैं. 

जब नेहरू ने माफ करवा ली सजा
आपके लिए ये जानना जरूरी है कि साल 1923 में नाभा रियासत में गैर कानूनी ढंग से प्रवेश करने पर औपनिवेशिक शासन ने जवाहरलाल नेहरू को 2 साल की सजा सुनाई गई थी. तब नेहरू ने भी कभी भी नाभा रियासत में प्रवेश न करने का माफीनामा देकर दो हफ्ते में ही अपनी सजा माफ करवा ली और रिहा भी हो गए. 

इतना ही नहीं जवाहर लाल के पिता मोती लाल नेहरू उन्हें रिहा कराने के लिए तत्कालीन वायसराय के पास सिफारिश लेकर भी पहुंच गए थे. पर नेहरू का ये माफीनामा वामपंथी गैंग की नजर में बॉन्ड था और सावरकर का माफीनामा कायरता थी.

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वामपंथियों का एकपक्षीय लेखन
हिन्दुस्तान के इतिहास लेखन की ये बहुत बड़ी विंडबना है कि जिन क्रांतिकारियों ने सेल्युलर और मांडला जेल में यातनाएं झेली उनपर गुमनामी की चादर डाल दी गई जबकि जो क्रांतिकारी सारी सुख सुविधाओं के बीच देहरादून की जेल में जाते थे वो आजादी के मसीहा करार दिए गए. 

मतलब ये कि स्वतंत्रता संग्राम का जो इतिहास हम वामपंथियों की कलमकारी के जरिए पढ़ते जानते हैं वो ना सिर्फ एक पक्षीय है बल्कि गुमनामी के अंधेरे में रहकर आजादी के लिए यातनाएं झेलने और अपने प्राणों की आहूति देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान भी है.

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