नई दिल्ली: इस बार की महाशिवरात्रि भक्तों के लिए बेहद खास है. क्योकि इस बार ना तो तिथियों का हेर फेर है और ना ही दिन और प्रहर का कोई भ्रम. इस बार महाशिवरात्रि(Mahashivratri 2020) के मौके पर पूरे 117 बार सभी ग्रह अनुकूल स्थिति में हैं.
ये है शुभ मुहुर्त
इस साल यानी 2020 में महाशिवरात्रि 21 फरवरी को है. सूर्योदय के बाद से ही महादेव की पूजा शुरु हो जाएगी. त्रयोदशी तिथि शाम को 5 बजकर 20 मिनट तक रहेगी. इसके बाद चतुर्दशी शुरु हो जाएगी. जो कि शनिवार को शाम सात बजकर 2 मिनट तक रहेगी. इसी दौरान निशीथ काल में भोलेनाथ की उपासना की जाएगी. निशीथ काल रात्रि में 12.09 बजे से 12.52 बजे तक रहेगा. इसी दौरान भगवान शिव की पूजा करना सबसे अधिक फलदायी होगा.
हालांकि गृहस्थ, स्त्रियां और बालक जो रात्रि जागरण करने में असमर्थ हैं. वह 21 फरवरी यानी शुक्रवार को पूरे दिन में कभी भी पूजा कर सकते हैं. 22 फरवरी यानी शनिवार को पंचक शुरु हो जाएगा. इसलिए 21 फरवरी को ही पूजन संपन्न कर लें.
शुद्ध मन है महादेव की प्रसन्नता के लिए पहली शर्त
महादेव सरल देव हैं. उनकी पूजा के लिए भारी भरकम कर्मकांड या फिर नियम और विधान की जरुरत नहीं होती. वह मात्र एक लोटा जल डाल देने से ही प्रसन्न हो जाते हैं. क्योंकि वह परमब्रह्म परमात्मा का साकार स्वरुप हैं. दुनिया की हर वस्तु उनसे ही उत्पन्न है. इसलिए उन्हें किसी तरह के भोग या चढ़ावे से विशेष मतलब नहीं होता.
लेकिन महादेव शुद्ध हृदय से आकर्षित होते हैं. सात्विक विचारों से युक्त शुद्ध हृदय भगवान शिव का निवास होता है. इसलिए जब भी महादेव के सामने जाएं तो बाहरी शुद्धि के साथ आंतरिक शुद्धि भी करके जाएं. अन्यथा महादेव की उपासना निष्फल हो जाएगी.
इस तरह करें भोलेनाथ की पूजा
महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहुर्त में उठें. स्नान करके साफ कपड़ें धारण कर लें और व्रत तथा पूजन का संकल्प धारण करें. इसके बाद मंदिर जाकर पीतल या स्टील के लोटे से गंगाजल या शुद्ध जल अर्पित करें. जल झटके से ना डालें. बल्कि एक धार से धीरे धीरे डालें. जल अर्पित करते समय मन ही मन 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करें.
जल अर्पित करने के बाद शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, अपराजिता या कनेर के फूल अर्पित करें. श्रद्धानुसार भगवान को भांग, धतूरे का फल, ऋतुफल, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, घी, इत्र, मौली, जनेऊ और मिष्टान्न भी अर्पित कर सकते हैं. भगवान के सामने प्रकाश के लिए तिल के तेल या घी का दीपक भी जला सकते हैं.
लेकिन सबसे आवश्यक है कि भगवान शिव का ध्यान और पूजन करते समय मन में किसी तरह का विकार नहीं रखें. यदि शुद्ध चित्त से पूजा की जाए तो आपको किसी और वस्तु की आवश्यता नहीं पड़ेगी.
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