सनातनियों के सिर पर शिखा क्यों होनी चाहिए?

सिर के पिछले हिस्से में शिखा रखने की परंपरा भारत में सदियों पुरानी है. आज भी सनातन परंपरा को मानने वाले बहुत से लोग अपने सिर पर शिखा धारण करना पसंद करते हैं. आईए आपको बताते हैं कि इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है?  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 14, 2020, 04:06 PM IST
    • शिखा रखने के पीछे का विज्ञान
    • मस्तिष्क के सबसे अहम हिस्से को सुरक्षित और गर्म रखने के लिए रखी जाती है शिखा
    • सुषुम्ना नाड़ी को सुरक्षितर रखती है शिखा
    • शिखा रखने से ज्ञान और बल की प्राप्ति
सनातनियों के सिर पर शिखा क्यों होनी चाहिए?

मानव खोपड़ी के पीछे के अंदरूनी भाग को संस्कृत में 'मेरुशीर्ष' और अंग्रेजी में "Medulla Oblongata" कहते हैं. इसे मनुष्य के शरीर का सबसे ज्‍यादा संवेदनशील हिस्सा माना जाता है. मेरुदंड की सब शिराएं यहीं पर मस्‍तिष्‍क से जुड़ती हैं. यह हिस्सा इतना संवेदनशील है कि मानव खोपड़ी के इस भाग का कोई ऑपरेशन नहीं हो सकता. प्राचीन परंपराओं के मुताबिक देह में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवेश यहीं से होता है.

भू-मध्य में आज्ञा चक्र इसी का प्रतिबिम्ब है. यानी आज्ञाचक्र(दोनो भौहों के बीच का हिस्सा) के ठीक पीछे खोपड़ी का हिस्सा मेरुशीर्ष कहा जाता है. योगियों को नाद की ध्वनि भी यहीं सुनाई देती है. सिर का यह हिस्सा ग्राहक यंत्र (Receiver) का काम करता है. इसीलिए शिखा रखने की प्रथा बनाई गई. जो कि रिसीविंग एंटीना का कार्य करती है.  शिखा धारण करने से यह भाग अधिक संवेदनशील हो जाता है.

योग और अध्यात्म को समझते हुए जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में शोधकार्य किया गया तो, चोटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रोचक वैज्ञानिक तथ्य निकलकर सामने आए.

असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है. यानी आज्ञाचक्र और मेरुशीर्ष के बीच एक रेखा खींची जाए तो उसके ठीक बीच में सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है. खोपड़ी के अंदर और शरीर के बीचोबीच.

शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्‍ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.  शिखा रखने की परंपरा सुषुम्‍ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को ग्रहण भी करती है.

योगशास्त्र में भी इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों की चर्चा होती है.  इनमें सुषुम्ना सबसे अहम है, क्योंकि यह ज्ञान और क्रियाशीलता की नाड़ी मानी जाती है.  यह मेरुदंड (स्पाईनल कॉड) से होकर मस्तिष्क तक पहुंचती है.  इस नाड़ी के मस्तिष्क में मिलने के स्थान पर शिखा बांधी जाती है.  शिखा बंधन मस्तिष्क की ऊर्जा तरंगों की रक्षा कर आत्मशक्ति बढ़ाता है.

जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है.  शिखा, मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है.

शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है.  शिखा रखने से मनुष्य की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है.

शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है.  यजुर्वेद में शिखा को इन्द्रयोनि कहा गया है.  ब्रह्मरन्ध्र ज्ञान, क्रिया और इच्छा इन तीनों शक्तियों की त्रिवेणी है.  यह मस्‍तिष्‍क के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मरन्‍ध्र को अधिक ठंडा रखा जाता है. बाहर ठंडी पड़ने पर शिखा रुपी केशराशि आपके ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त गर्मी बनाए रखती है.
ब्रह्मरन्ध्र की ऊष्णता और पीनियल ग्लेंड्स की संवेदनशीलता को बनाए रखने हेतु शिखा रखने की परंपरा स्थापित की गई है.

पूजा-पाठ के समय शिखा में गांठ लगाकर रखने से मस्तिक में संकलित ऊर्जा तरंगें बाहर नहीं निकाल पाती है.  इनके अंतर्मुख हो जाने से मानसिक शक्तियों का पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति, वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोत्तरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अवसाद से बचाव, अनिष्टकर प्रभावों से रक्षा, सुरक्षित नेत्र ज्योति, कार्यों में सफलता तथा सद्गति जैसे लाभ भी मिलते हैं.

संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मन्त्र के साथ शिखा बंधन का विधान है। इसके पीछे एक संकल्प और प्रार्थना है। किसी भी साधना से पूर्व शिखा बंधन गायत्री मन्त्र के साथ होता है, यह एक सनातन परम्परा है.

मन्त्र उच्‍चारण और अनुष्‍ठान के समय शिखा को गांठ मारने का विधान है.  इसका कारण यह है कि गांठ मारने से मन्त्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली उर्जा शरीर में ही एकत्रित होती है और शिखा की वजह से यह उर्जा बाहर जाने से रुक जाती है. जिससे हमें मन्त्र और जप का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता है.

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