जानिए जयद्रथ के जीवन का रहस्य जिसकी वजह से मारा गया अभिमन्यु, ऐसे हुआ वध

महाभारत में जयद्रथ वध युद्ध को एक नया और रोचक मोड़ देता है. इसके बाद ही युद्ध का खाका बिल्कुल बदल जाता है और दोनों पक्षों के योद्धा जो अब तक धर्म और संयम के साथ लड़ रहे होते हैं, इसका साथ छोड़ क्रोध और अनीति का भी प्रयोग करने लगते हैं. 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : May 9, 2020, 05:38 PM IST
    • जयद्रथ को महादेव ने दिया था चार पांडवों को हराने का वरदान
    • उसके पिता ने दिया था श्राप, जिसके कारण जयद्रथ को मारने वाले का भी वध हो जाता
जानिए जयद्रथ के जीवन का रहस्य जिसकी वजह से मारा गया अभिमन्यु, ऐसे हुआ वध

नई दिल्लीः लॉकडाउन में इस वक्त रामायण-महाभारत और श्रीकृष्णा धारावाहिक चर्चा बटोर रहे हैं. लोग इन सीरियलों को देखकर पुराने दिनों की यादें ताजा कर रहे हैं. रामायण का प्रसारण दूरदर्शन पर समाप्त हो चुका है, अब यह स्टारप्लस पर एचडी में आ रही है. महाभारत का प्रसंग अभी चर्चा में जारी है. युद्ध के दौरान अभिमन्यु का वध एक तरह से रोचक मोड़ जैसा है. धृतराष्ट्र भी इस पर शोक 

व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हे संजय, आज अभिमन्यु का वध करके मेरे पुत्रों ने पांडवों से संधि का सारे द्वार बंद कर दिए. अब कोई मार्ग शेष नहीं कि युद्ध रुक सके. यह विनाश के बिना नहीं रुकेगा. 

ऐसे हुआ अभिमन्यु का वध, जयद्रथ बना कारण
अभिमन्यु का वध चक्रव्यूह में घुसने के कारण हुआ, जहां सात महारथियों ने घेर कर उसे मारा. दरअसल, योजना थी कि अर्जुन को बहाने से कुरुक्षेत्र के दूसरी ओर ले जाया जाएगा. उनके जाते ही आचार्य द्रोण ने गरुण व्यूह तोड़कर चक्रव्यूह का निर्माण कर दिया. पांडवों में श्रीकृष्ण और अर्जुन के अलावा कोई और चक्रव्यूह तोड़ना नहीं जानता था.

उन्हें चिंतित देखकर अभिमन्यु ने कहा- मैंने मां के गर्भ में ही व्यूह भेदना सीख लिया था, लेकिन माता के सो जाने के कारण चक्रव्यूह से बाहर निकलना नहीं जानता. आचार्य द्रोण ने व्यूह के बाहर जयद्रथ को लगा दिया था. 

जयद्रथ ने किसी को अंदर नहीं जाने दिया
भीम ने कहा-तुम बस व्यूह में घुसने का मार्ग बनाना, हम सब तुम्हारे पीछे-पीछे ही घुस आएंगे. इस पर सभी सहमत हो गए. अभिमन्यु व्यूह तोड़ता हुआ प्रथम द्वार से अंदर प्रवेश कर जाता है, लेकिन इतने में ही जयद्रथ आगे आकर अन्य पांडवों को व्यूह के बाहर ही रोक लेता है.

अभिमन्यु अकेला ही व्यूह तोड़ते हुए सारे द्वार तोड़कर मध्य में पहुंच जाता है. जयद्रथ, आज किसी दिव्य शक्ति से सज्जित था. उसके आगे युधिष्ठिर का भाला, भीम की गदा और नकुल-सहदेव की तलवारें कोई जौहर नहीं दिखा सकीं. दो पहर इस तरह बीत गए. 

जयद्रथ को मिला था महादेव का वरदान
दरअसल, जयद्रथ को महादेव ने वरदान दिया था. उसने पांचों पांडवों के वध का वर मांगा था, लेकिन महादेव ने कहा कि तुम अर्जुन को छोड़ केवल 4 पांडवों को ही परास्त कर सकते हो, अर्जुन के पास अमोघ पाशुपतास्त्र है. पांडवों से जयद्रथ की इस जलन की वजह उनके वनवास में घटी एक घटना थी.

वनवास के दौरान जयद्रथ, दुर्योधन के कहने पर द्रौपदी का हरण करने जाता है, लेकिन पांडव उसे पकड़ कर अपमानित करते हैं. भीम उसका सिर मूंडकर केवल पांच शिखाएं छोड़ देते हैं. इसलिए महादेव का तप करके जयद्रथ ने वरदान मांगा था. 

वीरगति को प्राप्त हुआ अभिमन्यु
इसी कारण जयद्रथ चारों भाइयों को चक्रव्यूह के बाहर रोक पाने में सफल हो पाता है. इधर अभिमन्यु सातों महारथियों से युद्ध करता रहता है. उसका रथ टूट जाता है. धनुष काट दिए जाते हैं. ढाल तोड़ दी जाती है. इसके बाद भी वह वीर हिम्मत नहीं हारता है और टूटे रथ का चक्का उठाकर ही प्रहार करता है.

अंत में द्रोण, कृप, कर्ण, अश्वत्थामा, शकुनि, दुःशासन और दुर्योधन एक साथ घेर कर उसे मार देते हैं. जयद्रथ को दिया महादेव का वरदान फलीभूत हो जाता है.

अर्जुन ने ली कठिन प्रतिज्ञा
इधर अर्जुन को लौटने पर अभिमन्यु वध का पता चलता है तो वह आपा खो देता है. वह युधिष्ठिर-भीम आदि सभी भाइयों से पूछता है कि यह कैसे हुआ तो सभी इसका कारण जयद्रथ को बताते हैं. इस पर क्रोधित अर्जुन प्रतिज्ञा कर लेता है मैं कल सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध कर दूंगा, ऐसा नहीं किया तो अग्नि स्नान (आग में जल जाना) कर लूंगा. यह प्रतिज्ञा सुनकर कौरव खेमे में खुशी की लहर दौड़ जाती है. 

कौरव जयद्रथ को मोहरा बना लेते हैं
इस प्रतिज्ञा पर कृष्ण असंतोष जताते हैं. वह कहते हैं कि युद्ध में तो जयद्रथ वध होना ही था, आज नहीं तो कभी, तुमने खुद को प्रतिज्ञा में बांधकर ठीक नहीं किया. तुम उसे सामान्य तरीके से नहीं मार सकते. अर्जुन इसका कारण पूछते हैं तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि महादेव का वरदान तो सिर्फ एक दिन के लिए था, लेकिन जयद्रथ के साथ एक श्राप भी चल रहा है. जो उसकी रक्षा कर रहा है. महादेव से केवल चार पांडवों पर विजय का वरदान प्राप्त करने के बाद वह अपने वानप्रस्थ ले चुके पिता वृद्धक्षत्र के पास गया. वह वन में तपस्या कर रहे थे. 

पिता ने पहनाया श्राप का कवच
जयद्रथ ने उनसे शांतनु और गंगापुत्र भीष्म की तरह तप के फल से इच्छामृत्यु का वरदान मांगा. पिता ने ऐसा वरदान देने में असमर्थता जताई, लेकिन पुत्र मोह के कारण उन्होंने जयद्रथ को एक श्राप में बांध दिया. उन्होंने कहा कि जो भी कोई तुम्हारा कटा सिर भूमि पर गिराएगा खुद उसके सिर में भयंकर विस्फोट हो जाएगा और वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा.

इसिलिए अर्जुन जरा तीखे और तीव्र बाण ही चलाना कि एक बार सिर कटते ही उसके पिता की गोद में जा गिरे. इसी श्राप के कारण कौरव अर्जुन की प्रतिज्ञा से खुश थे. वह जानते थे कि अर्जुन प्रतिज्ञा जरूर पूरी करेगा, लेकिन उसकी भी मृत्यु निश्चित है. अगर जयद्रथ को नहीं मार पाया तो अग्नि स्नान कर लेगा. 

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इस तरह मारा गया जयद्रथ
अगले दिन गुरु द्रोण ने कमल व्यूह बनाकर जयद्रथ को भीतर छिपा लिया. अर्जुन दिन भर युद्ध करते रहे लेकिन उस तक नहीं पहुंच सके. इधर सूर्यास्त होने में कुछ घड़ी ही शेष थी. इतने में श्रीकृष्ण ने माया से सूर्य को छिपा दिया और सूर्यास्त का भ्रम होने लगा. निराश अर्जुन अग्नि स्नान करने ही जा रहा था कि जयद्रथ खुद सामने आ गया और खुशी से नाचने लगा. उसके सामने आते ही बादल छंट गए और कृष्ण की आवाज गूंजी, अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो अर्जुन.

स्थिति बदली देखकर अर्जुन ने तुरंत गांडीव उठाया और आंजनेय अस्त्र से जयदर्थ की सिर काटकर दूर तप  में बैठे पिता की गोद में गिरा. बदहवासी में वह उठे और जयद्रथ का सिर भूमि पर गिर पड़ा. गिरते ही वृद्धक्षत्र के सिर में भयंकर विस्फोट हो गया. इस तरह पिता-पुत्र दोनों का वध हो गया. 

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