नई दिल्लीः भारतीय प्राचीन तिथि विधान इतना वैज्ञानिक और अनुशासित है कि इसके एक-एक पल की गणना लाभ-हानि के नजरिए से की जा सकती है. बल्कि हर एक तिथि को इसी आधार पर निर्धारित भी किया गया है. जिसमें शुभ-अशुभ का विचार समाहित है.
धार्मिक नजरिए से न भी देखें तो यह तिथि गणना पृथ्वी व चंद्रमा की गतियों पर आधारित है. हालांकि सौर वर्ष की काल गणना सूर्य की गति (सूर्य एक तारा है और स्थिर है) पर आधारित है, जिसमें राशि प्रवेश मुख्य स्थान रखते हैं.
14 मार्च यानी आज से मलमास की शुरुआत हो रही है. यानी यह पूरा माह (14 अप्रैल तक) अधिकमास, अधिमास या पुरुषोत्तम मास कहलाता है. इसमें शुभ कार्य वर्जित हैं, लेकिन विष्णु पूजा सबसे अधिक फलदायी है, आइए, आसान भाषा में मलमास को समझते हैं.
एक पौराणिक कथा, ऐसे पड़ा पुरुषोत्तम नाम
विष्णु पुराण में इस कथा का वर्णन किया गया है. सूर्य-चंद्र की परिक्रमा गणना के अनुसार महीनों के दिन निर्धारित कर दिए गए. दोनों के बीच काल गणना में कुछ अंतर हो गया. इसमें सामंजस्य बिठाने के लिए अधिमास की उत्पत्ति की गई. यह चंद्र वर्ष के हिस्से में आया और इस तरह प्रत्येक 3 साल में चंद्रवर्ष के 13 महीने हो गए.
निर्धारित 12 मासों के तो अलग-अलग अधिपति नियुक्त थे, लेकिन इस अधिमास का कोई अधिपति न होने के कारण वह दुखी रहने लगा और यज्ञ-तीर्थ में भाग न मिलने के कारण मलिन भी होता रहा. इस तरह उसका नाम मलमास भी पड़ गया.
फिर वैकुंठ में मलमास को मिला वरदान
इसी तरह दुखी होकर एक दिन वह वैकुंठ पहुंचा और श्रीहरि विष्णु की स्तुति कर अपनी उत्पत्ति का कारण पूछा. अधिमास ने कहा- मेरे इस उद्देश्यहीन जीवन का क्या अर्थ है.
तब श्रीहरि ने उसकी पीड़ा समझकर उसे आश्वासन दिया. उन्होंने कहा- दुखी मत हो अधिमास, मैं खुद को तुम्हारा अधिपति घोषित करता हूं. इस तरह उन्होंने वरदान दिया कि मेरे ही सारे गुण तुम्हारे गुण कहलाए जाएंगे.
इस तरह अब तुम मेरे ही एक सर्वोत्तम नाम पुरुषोत्तम से जाने जाओगे. इसलिए पुरुषोत्तम मास में विष्णु पूजा का अधिक फलदायी होती है. इस मास में भगवान का कीर्तन, भजन, दान-पुण्य करने वाले मृत्यु के बाद हरि धाम को प्राप्त होते हैं.
भगवान श्रीकृष्ण ने एक भालू की बेटी से भी विवाह किया था
ऐसी है सूर्य और चंद्र की काल गणना
भारतीय पद्धिति में काल गणना सूर्य और चंद्रमा दोनों से ही की जाती है. सूर्य के चारों ओर पृथ्वी का चक्कर सौर वर्ष का आधार है, जिससे ऋतुएं बनती हैं. इस तरह बहुत बारीक गिनती के आधार पर एक वर्ष में 365.256363 दिन होते हैं. हिंदी महीनों में हर महीने एक संक्रांति पड़ती है. इस तरह सूर्य के एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति तक का समय पूरा करना एक मास कहलाता है.
अब आते हैं चंद्रमा की गति पर. तिथियों की गिनती हम चंद्रकलाओं से करते हैं. इस तरह एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा या एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या का समय एक माह बनता है. हर माह में दो पक्ष (कृष्ण और शुक्ल) होते हैं.
इसलिए बन जाता है अधिमास
हर माह में एक अमावस्या और एक पूर्णिमा होती है. 15-15 दिनों का यह बंटवारा प्रत्येक तिथि को आसानी से समझने के अनुकूल है. इसी तरह सौर काल ऋतु गणना को समझने के अनुकूल है.
अब इसमें समस्या यहां आती है कि चंद्रमा के आधार पर वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं. आसान भाषा में भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है.
दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है.
इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है.
आराधना: यहां संतोषी मां के सिर पर है शेषनाग की छाया
इसी आधार पर स्पष्ट हैं पंचांग
भारतीय मनीषा ने खगोलीय वैज्ञानिक विधि से चंद्र और सौर मानकों में सामंजस्य करने के लिए 'अधिमास' या 'मलमास' जोड़ने की विधि का विकास किया. इससे हमारे व्रत, पर्व-उत्सव आदि का जुड़ाव ऋतुओं और चंद्र तिथियों से ही बना रहा.
यह पद्धति वैदिक काल से ही विकास करती आ रही है. पुराने कई आख्यानों में बारह मासों के साथ तेरहवें मास की कल्पना स्पष्टतया प्राप्त होती है.
उस समय में भी सौर और चन्द्र मास थे. वर्ष गणना का सरलीकरण ऋतुओं के एक पूरे परिभ्रमणकाल को समझने और मास गणना का सरलीकरण चंद्रमा के दो बार पूर्ण होने के समय के आधार पर किया गया है. यही चंद्र-सौर प्रणाली विकसित रूप में हमारे परम्परागत पंचांगों में मिलती है.
एक मास के लिए शुभ कार्य वर्जित
दरअसल इस अधिमास में राशि और नक्षत्र गणना न होने के कारण शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. (हालांकि शुभ कार्य में देरी कैसी) विवाह, गृहप्रवेश जैसे कार्य नक्षत्र अधिपतियों की उपस्थिति में ही किए जाते हैं, इसी आधार पर उनकी तिथि निकाली जाती है.
लेकिन राशि-तारा, नक्षत्र का लोप होने के कारण यह स्थिति नहीं बन पाती है. इसलिए शुभ कार्य वर्जित होते हैं.
वैज्ञानिक-आध्यात्मिक पक्ष यह भी है कि हर तीन वर्ष के अंतराल पर यह समय आत्म चिंतन और आत्म शुद्धि की लंबी प्रक्रिया का होता है. इस तरह मनुष्य जीवन के उद्देश्य का चिंतन कर सकता है.
आत्म चिंतन का समय है मलमास
सूर्य आत्मा का कारक है जो तेज को बढ़ाता है. प्रकाश की ओर ले जाता है. अतः मलमास की अवधि में मनुष्य को अपने समस्त दूषित कर्म, अहंकार, द्वेष, वासना को त्याग कर देना चाहिए और जीवन का आंकलन करना चाहिए.
भगवत भजन कर स्वयं की सद्गति को साध लेना चाहिए. एकाग्रता के लिए यह अच्छा समय है.
ध्यान-साधना के लिए भी यह समय अनुकूल है. छात्रों-विद्यार्थियों के लिए भी वैचारिक दृष्टिकोण से अच्छा समय होता है. मलमास की अवधि में निरंतर अपने इष्ट देवता का जाप, तप, स्वाध्याय, दान, हवन, गौ सेवा, तीर्थाटन, संत दर्शन आदि किए जा सकते हैं.