नई दिल्ली: Diwali Kavita: दिवाली का पर्व बेहद विशेष होता है. हिंदू धर्म में ये साल का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. इस दिन सभी लोग भगवान राम के वनवास से लौटने की खुशी मनाते हैं. घी के दीपक जलाए जाते हैं. इस दिन को और विशेष बनाने के लिए आप अपने घर के लोगों को दिवाली पर कुछ कविताएं सुना या भेज सकते हैं. आइए, दिवाली के विशेष मौके पर पढ़ते हैं दो शानदार कविताएं.
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ- हरिवंश राय बच्चन
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,
है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए,
रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,
आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
मैं तपोमय ज्योति की, पर, प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,
स्नेह की दो बूंदे भी तो तुम गिराओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूंगा,
कल प्रलय की आंधियों से मैं लडूंगा,
किन्तु आज मुझको आंचल से बचाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
आओ फिर से दिया जलाएं- अटल बिहारी वाजपेयी
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्त्तमान के मोह-जाल में
आने वाला कल न भुलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएं
आओ फिर से दिया जलाए
Disclaimer: यहां पर दी गई दोनों कविताएं Zee Bharat ने इंटरनेट से ली हैं.
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