नई शिक्षा नीतिः कोशिश होगी कि बोर्ड न बने हौव्वा, कोचिंग की अनिवार्यता से मुक्ति

डॉ. कस्तूरी रंगन ने इस नई नीति के लिए कहा है कि लागू होने जा रही शिक्षा नीति बेरोजगार तैयार नहीं करेगी. स्कूल में ही बच्चे को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 30, 2020, 03:00 PM IST
    • लागू होने जा रही शिक्षा नीति बेरोजगार तैयार नहीं करेगी. स्कूल में ही बच्चे को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी.
    • छठी कक्षा से ही बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी. स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी.
नई शिक्षा नीतिः कोशिश होगी कि बोर्ड न बने हौव्वा, कोचिंग की अनिवार्यता से मुक्ति

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने जो नई शिक्षा नीति तैयार की है, इसका उद्देश्य कम और सीखने वाली उम्र से ही छात्रों में व्यवहार कुशल शिक्षा और कौशल को विकसित करना है. इससे आदे चलकर किसी भी बच्चे को अपने लिए रोजगार का क्षेत्र चुनने में परेशानी न हो. कुल मिलाकर यह है कि पढ़ाई का पुरातन बोझ खत्म होगा और छात्र पढ़कर लिखकर अफसर बनने के बजाय खुला व अन्य विकल्प भी देख पाएगा. 

डॉ. कस्तूरी रंगन (जो कि शिक्षा नीति का ड्रॉफ्ट तैयार कर रही समिति के नेतृत्व कर रहे थे) ने इस नई नीति के लिए कहा है कि लागू होने जा रही शिक्षा नीति बेरोजगार तैयार नहीं करेगी. स्कूल में ही बच्चे को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी.  व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा. उनके इस कथन के मुताबिक, छात्र में नई चीजें सीखने का रुझान छठवीं कक्षा में शुरू हो जाता है. 

इसलिए, छठी कक्षा से बदला जाएगा पैटर्न, होगी रोजगार परक शिक्षा
डॉ. कस्तूरीरंगन ने कहा, अब छठी कक्षा से ही बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी. स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी. इसके तहत बच्चों का पाठ्यक्रम अधिक से अधिक प्रयोगात्मक कार्यों के अनुकूल बनाया जाएगा.

वे कौशल से जुड़े अलग-अलग कार्यों का बकायदा प्रशिक्षण लेंगे और बारीक अध्ययन करेंगें. कला-शिल्प का दायरा बढ़ाया जाएगा. 

रटन्त विद्या की समाप्ति की कोशिश
बड़े होते बच्चों में सर्वांग विकास के लिए कोशिश होगी कि वह रटन्त विद्या से बचें और समझपरक शैली में अध्ययन करेंगे. इसके साथ ही अब बोर्ड परीक्षा हौव्वा नहीं बनेगी, बल्कि इनके महत्व को कम करते हुए ज्ञान के महत्व पर जोर दिया जाएगा. सुझाव है कि साल में दो बार परीक्षाएं कराना, दो हिस्सों वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) और व्याख्त्मक श्रेणियों में परीक्षाओं को बांटना, परीक्षा का दबाव कम करने पर जोर रहेगा. 

कोचिंग ठीक है, लेकिन इन पर पूरी निर्भरता ठीक नहीं
आखिर क्या वजह है कि स्कूल में शिक्षा के बावजूद भी कोचिंग आजकल अनिवार्य हो चुकी है. कोचिंग की अनिवार्य होती मानसिकता को खत्म करने पर जोर होगा. बोर्ड परीक्षाओं को लेकर छात्र हमेशा दबाव में रहते हैं और ज्यादा अंक लाने के चक्कर में कोचिंग पर निर्भर हो जाते हैं, निकट भविष्य में उन्हें इससे मुक्ति मिल सकती है.

आने वाले समय में बोर्ड परीक्षाओं के प्रैक्टिकल मॉडल तैयार करेंगे. जैसे वार्षिक, सेमिस्टर और मोड्यूलर बोर्ड परीक्षाएं.  

 

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