1 मिनट में 600 गोलियां, आतंकी-पुलिस-आर्मी सबकी फेवरेट है ये असॉल्ट राइफल, पुकारते हैं मौत का दूसरा नाम

AK-47 ऐसी बंदूक है जो दुनिया के हर कोने में इस्तेमाल की जाती है. यह बंदूक कई देशों में सेना और पुलिस की पसंद तो है ही उसके साथ ही आंतकी भी इसका जमकर इस्तेमाल करते हैं. यही कारण है कि बंदूकों की तस्करी के मामले में इस असॉल्ट राइफल का पहला नंबर है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 23, 2023, 05:55 PM IST
  • AK-47 बनने की पूरी कहानी
  • AK-47 बंदूक की खासियत
1 मिनट में 600 गोलियां, आतंकी-पुलिस-आर्मी सबकी फेवरेट है ये असॉल्ट राइफल, पुकारते हैं मौत का दूसरा नाम

नई दिल्ली: जब भी दुनिया में घातक बंदूकों की बात होती है तो उसमें AK-47 का नाम सबसे पहले आता है. AK-47 ऐसी बंदूक है जो दुनिया के हर कोने में इस्तेमाल की जाती है. यह बंदूक कई देशों में सेना और पुलिस की पसंद तो है ही उसके साथ ही आंतकी भी इसका जमकर इस्तेमाल करते हैं. यही कारण है कि बंदूकों की तस्करी के मामले में इस असॉल्ट राइफल का पहला नंबर है. आखिर क्यों इस असॉल्ट  राइफल को इतना पसंद किया जाता है? जबकि इसके बाद AK सीरीज के ही कई अपडेट सामने आ चुके हैं. इसके अलावा भी दुनिया में कई तरह की आधुनिक असॉल्ट राइफल तैयार की जा चुकी हैं. फिर सेना, पुलिस, अपराधियों और आतंकियों के बीच AK-47 का कल्ट क्यों कायम है?

किसने बनाई AK-47 बंदूक

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सामान्य बंदूकों का जमाना पुराना पड़ने लगा था और सेमी ऑटोमेटिक राइफल्स सैनिकों के बीच इस्तेमाल की जाने लगी थीं. उस वक्त बेहद शक्तिशाली सोवियत संघ को भी अपने सैनिकों के लिए एक ऐसी बंदूक की जरूरत थी जो बेहद घातक हो और युद्ध क्षेत्र में दुश्मनों को धूल चटाने में मददगार हो. उस वक्त हिटलरशासित जर्मनी के पास Sturmgewehr 44 जैसी असॉल्ट राइफल आ चुकी थी जिसके मुरीद सोवियत में भी मौजूद थे. सबमशीन गन स्टाइल की यह असॉल्ट राइफल मारक क्षमता से सोवियत आर्म्स एक्सपर्ट भी प्रभावित थे. फिर क्या था, कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है. अपने कट्टर दुश्मन देश जर्मनी के पास ऐसी असॉल्ट राइफल होना सोवियत को भी अखर रहा था. और यहीं से शुरुआत हुई AK-47 बनाने की.

1947 में सोवियत के आर्म एक्सपर्ट ने बनाया

AK-47 का आविष्कार 1947 में Mikhail Kalashnikov ने किया था. इसका पहला मिलिट्री ट्रॉयल 1947 में हुआ, जिसके बाद इसको सोवियत की सेना में शामिल कर लिया गया. Mikhail की इस बंदूक को पूरी दुनिया में पसंद किया गया. AK-47 का आविष्कार करने वाले Mikhail ने कभी अपने इससे पैसा नहीं कमाया. 1947 से अब तक कई वर्जन आ चुके हैं. जिनमें AKM (1959), AK-74 (1974), AK-74M (1991), AK-101, AK-102 (1995), AK-103, AK-104 (2001), AK-105 (2001), AK-12 (2011), AK-200, AK-205 (2018) जैसी आधुनिक बंदूकें शामिल हैं.

क्या हैं AK-47 की खासियत

इस बंदूक को आप किसी भी मौसम में इस्तेमाल कर सकते है. साथ ही इसे चलाने के लिए किसी ट्रेनिंग की जरूरत भी नहीं होती हैं. 4.8 किलो की इस राइफल से प्रति मिनट 600 राउंड की फांयरिंग की जा सकती है. इस बंदूक में एक बार में 30 गोलियां भर सकते हैं. बदूंक से गोली छूटने पर इसकी रफ्तार 710 मीटर प्रति सेकंड होती है. AK-47 इतनी पावरफुल बंदूक है कि यह कुछ दीवारों और कार के दरवाजे को भी भेद कर उसके पीछे बैठे इंसान को मार सकती है. 

AK-47  के अब तक कई वर्जन आ चुके है जिसमें इसका AKM वर्जन इस समय दुनिया की सबसे हल्की राइफल है. पूरी तरह से लोड होने के बाद भी इसका वजन मात्र 4 किलो होता है. इस बंदूक को साथ रखना भी आसान होता हैं. ऐसा कहा जाता है कि AK-47 से 800 मीटर तक की दूरी तक निशाना लगाया जा सकता हैं.

ऐसे होती है तस्करी

AK-47 दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले हथियार के रूप में जानी जाती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय में दुनिया में करीब 10 करोड़ AK-47 हैं. रूस के अलावा AK-47 को बनाने और सप्लाई करने का लाइसेंस 30 अन्य देशों को भी प्राप्त है, जिसमें भारत का नाम भी शामिल हैं.  वहीं AK-47 दुनिया में सबसे ज्यादा अवैध रूप से बिकने वाली बदूंकों में से भी एक है. रिपोर्ट के मुताबिक ये बंदूकें, रूस से कजाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान और फिर नेपाल होती हुई भारत आती हैं. बांग्लादेश के रास्ते और पंजाब में पाकिस्तान के रास्ते भी एके-47 भारत पहुंचती हैं. 

देश में इसको लेकर सख्त हैं नियम

भारत में बंदूकों को लेकर काफी सख्त नियम हैं. भारत में AK-47 का इस्तेमाल केवल आर्मी और पुलिस की स्पेशल फोर्स ही करती हैं. आम आदमी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता है, अगर यह बंदूक किसी आम आदमी के पास मिलती है तो उस पर सीधा देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाता हैं.

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