AK-47 को क्यों कहते हैं 'हथियारों की रानी'? रूस ने बनाई और पूरी दुनिया ने खरीदा

AK-47 दुनियाभर की सेनाओं और यहां तक कि आतंकियों की पहली पसंद रही है. जानिए क्यों?

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 20, 2022, 05:35 PM IST
  • जानिए क्यों बनाई गई AK-47 व किसने बनाया?
  • किसने दिया इसका कॉन्सेप्ट और कैसे हुआ निर्माण
AK-47 को क्यों कहते हैं 'हथियारों की रानी'?  रूस ने बनाई और पूरी दुनिया ने खरीदा

नई दिल्ली: हाल में देश में AK-203 असॉल्ट राइफल्स पर खूब चर्चा हुई है. दरअसल, उत्तर प्रदेश के अमेठी में इंडो-रूस ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में 7.5 लाख AK-205 असॉल्ट राइफल्स का निर्माण किया जाना है. ये आयुध फैक्ट्री भारत और रूस का ज्वाइंट वेंचर है. AK-203 रूस की क्लाशनिकोव सीरीज का आधुनिक हथियार है. ये असॉल्ट राइफल दुनियाभर में मशहूर AK-47 असॉल्ट राइफल का अपडेटेड वर्जन है. AK-47 दुनियाभर की सेनाओं और यहां तक कि आतंकियों की पहली पसंद रही है. यही कारण है कि इसे क्वीन ऑफ द आर्म्स या फिर हथियारों की रानी तक कहा जाता है. 

रूस की क्लाशनिकोव की सीरीज की सफलता की पूरी कहानी AK-47 से ही शुरू होती है.  AK-47 के जबरदस्त पॉपुलर होने के बाद ही AKM (1959), AK-74 (1974), AK-74M (1991), AK-101, AK-102 (1995), AK-103, AK-104 (2001), AK-105 (2001), AK-12 (2011), AK-200, AK-205 (2018) जैसी आधुनिकतम बंदूकें सामने आईं. 

क्यों बनाई गई AK-47, किसने बनाया?
एके-47 के निर्माण की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. दरअसल नाजी जर्मनी की एक असॉल्ट राइफल ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तलहका मचा रखा था. इस राइफल का नाम था स्टूर्मगेवेहर 44 ( Sturmgewehr 44 rifle). जर्मन सैनिक इस बंदूक के जरिए दुश्मनों पर कहर बरपा रहे थे. तब सोवियत संघ की टॉप लीडरशिप पर इस बंदूक का गहरा प्रभाव हुआ और इसके जवाब में एक आधुनिक हथियार की बात सोची गई.

15 जुलाई 1943 को सोवियत के रक्षा मंत्रालय के सामने स्टूर्मगेवेहर असॉल्ट राइफल का एक पुराना वर्जन प्रदर्शित किया गया. इस बंदूक से सोवियत इतना प्रभावित हुआ कि उसने तुरंत अपनी एक असॉल्ट राइफल के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी. तब तक सोवियत की सेनाओं द्वारा मुख्य रूप से PPSh-41 सबमशीन गन का इस्तेमाल किया जाता था. 

किसने दिया कॉन्सेप्ट और कैसे हुआ निर्माण
सोवियत आर्मी में लेफ्टिनेंट जनरल रहे मिखाइल क्लाशनिकोव ने एके-47 असॉल्ट राइफल का कॉन्सेप्ट दिया था. मिलिट्री इंजिनियर और छोटे हथियारों के डिजाइनर क्लाशनिकोव ने ही एके-47 का निर्माण किया. यही नहीं बाद में उन्होंने इस राइफल के कई अपडेटेड वर्जन पर भी काम किया जैसे एके-74 जो 1974 में आई. 

'विनाश के लिए नहीं है AK-47'
अपने निर्माण के बाद से ही एके-47 बंदूक दुनियाभर में पसंद की गई. सैनिकों ही नहीं दुनियाभर के आतंकी संगठन भी इस बंदूक का जमकर इस्तेमाल करते हैं. एके-47 के दुनियाभर में अनियंत्रित वितरण ने खुद मिखाइल क्लाशनिकोव को भी दुखी कर दिया था. उन्होंने अपने अविष्कार पर गर्व करते हुए कहा था कि ये हथियार 'बचाव' के लिए विनाश के लिए नहीं.

एके-47 के इस्तेमाल और इतिहास पर आ चुकी है किताब
दुनियाभर के ब्लैक मार्केट में बिकने वाली एके 47 पर न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार सी.जे.शीवर्स ने पूरी किताब लिखी है जिसका नाम है द गन (The Gun). आंकड़ों के मुताबिक क्लाशनिकोव सीरीज की करीब 7.2 करोड़ बंदूकें इस वक्त दुनियाभर में हैं.  

क्यों पसंद की जाती है AK 47
इस असॉल्ट राइफल की बैरल से गोली छूटने की रफ्तार 710 मीटर प्रति सेकंड है. रिलोडिंग महज 2.5 सेकंड में पूरी होती है. इसकी रेंज करीब 800 मीटर की होती है. कहा जाता है कि एके 47 उतनी दूर तक निशाना लगा सकती है जितनी दूर तक आपको दिखाई दे.

4.8 किलो वजन वाली इस राइफल से प्रति मिनट 600 राउंड फायरिंग की जा सकती है. इसकी परफॉर्मेंस पर मौसम का असर नहीं पड़ता. साथ ही इसकी साफ-सफाई और मेंटेनेंस आसान है. सबसे बड़ी बात इसे चलाने के लिए किसी तरह की विशेष ट्रेनिंग की जरूरत नहीं है.

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