नई दिल्ली: पाकिस्तान को एक के बाद एक मार पड़ने का सिलसिला लगातार जारी है. बलूचिस्तान में स्थानीय विद्रोही गुट के हमले में पाकिस्तान के 16 सैनिकों के मारे जाने की खबर है. बलूचिस्तान फ्रीडम फाइटर्स ने पाकिस्तान आर्मी की एक पोस्ट और वहां खड़े दो ट्रकों को निशाना बनाया है.
पाकिस्तान के 16 सैनिकों को 'मार डाला'
इस चौतरफा पिटाई से पाकिस्तान इस कदर सन्नाटे में चला गया है कि ऐसी खबरों पर पाकिस्तान की मीडिया और पाकिस्तान की सेना ने चुप्पी साध ली है. कोई कुछ नहीं बोल रहा है, क्योंकि इमरान-बाजवा के 16 सैनिक खल्लास हो गए हैं.
पाकिस्तान के खिलाफ बलूचिस्तान का ऐलान-ए-जंग तेज होता जा रहा है. बाजवा की सेना पर घात लगाकर किया गया सबसे बड़ा हमला है यानी बलूचिस्तान फ्रीडम फाइटर्स का वो जबरदस्त अटैक है. जिसके बाद परमाणु युद्ध की गीदड़भभकी देने वाले पाकिस्तान को सांप सूंघ गया है.
सूत्रों के मुताबिक
'बलूचिस्तान के डेरा बुगती जिले से कुछ दूर सिंगसिला इलाका है. यहां पाकिस्तानी फौज की एक बड़ी पोस्ट थी. मंगलवार दोपहर पाकिस्तानी सेना के दो ट्रक यहां रसद और हथियार लेकर पहुंचे थे. इसी दौरान बलूचिस्तान फ्रीडम फाइटर्स ने सेना पर घात लगाकर हमला बोल दिया. गोलीबारी दोनों तरफ से हुई और इसी गोलीबारी में पाकिस्तान के 16 सैनिक मार गिराये गए.'
बलोच फ्रीडम फाइटर्स को इतने से ही शांति नहीं मिली, इस दौरान उन्होंने सेना के दोनों ट्रकों को आग के हवाले कर दिया. पाकिस्तानी सैनिकों के हथियार और गोला बारूद भी लूट ले गए.
आप इसे बलोच के हाथों पाकिस्तानी सेना की करारी शिकस्त भी मान सकते हैं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस हमले पर पूरे पाकिस्तान ने चुप्पी साध ली है. ना ही पाकिस्तान की मीडिया में कोई चर्चा है, ना ही वहां की सेना ने कोई बयान जारी किया है. इस्लामाबाद से कराची लाहौर तक हर जगह चुप्पी छाई है.
जहां तक बलूचिस्तान की बात है, तो पाकिस्तान को बदले में वही मिला है जो कांटे आज तक उसने बलूचिस्तान में बोये हैं. दशकों के ज़ुल्म, दर्द यातनाओं का ये पाकिस्तान से बदला है.
क्या है बलूचिस्तान का इतिहास?
वैसे, बलूचिस्तान संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है. 1947 स्वतंत्रता के बाद से इस्लामाबाद खुले तौर पर 5 बार बलूच विद्रोहियों के साथ संघर्ष में आया. पहला संघर्ष 1948-52 के बीच हुआ, दूसरा 1958-60, तीसरा 1962-69, चौथा 1973-77 और पांचवा संघर्ष 2005 से लेकर अबतक जारी है.
पहला संघर्ष: 1948-52
15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान बनने के एक दिन बाद कलात के खान ने कलात की स्वतंत्रता की घोषणा की कलात की स्वतंत्र स्थिति को पाकिस्तान मुस्लिम लीग द्वारा कई बार पुष्टि की गई. इसके बावजूद बलूचिस्तान में "रियासत" पर 1 अप्रैल, 1948 को आक्रमण किया गया. खान के भाई, प्रिंस अब्दुल करीम और उनके 700 के मिलिशिया ने इस आक्रमण का विरोध किया लेकिन उन्हें कुचल दिया गया.
दूसरा संघर्ष: 1958-60
1958 में दूसरा संघर्ष शुरू हुआ जब इस्लामाबाद ने पूर्वी पाकिस्तान की ताकत जो बाद में बांग्लादेश बन गया उसका मुकाबला करने के लिए चार प्रांतों को "एक इकाई" में मिला दिया. इसके बाद बलूचिस्तान के मीर घाट पहाड़ों में एक बड़ी "विरोधी एक इकाई" आंदोलन भड़क उठा, जिसका नेतृत्व ज़हरी जनजाति के प्रमुख नवाबउरोज़ खान ज़हरी ने किया था, जिसमें उनके 1000 लोग थे. उसके बाद नवाबीजहरी को सेना द्वारा एक कुरान की शपथ दिलाई गई. उन्होंने मई, 1959 में आत्मसमर्पण कर दिया. अंततः वादे टूट गए और उन्हें अपने रिश्तेदारों के साथ कैद कर लिया गया. उनके बेटों सहित उनके रिश्तेदारों को फांसी दे दी गई और जेल में उनकी मृत्यु हो गई.
तीसरा संघर्ष: 1962-69
तीसरा संघर्ष 1962 में शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने बलूचिस्तान में सैन्य ठिकाने स्थापित करने के अपने इरादे की घोषणा की. शेर मोहम्मद मैरी द्वारा इसका विरोध जारी रखा गया था. संघर्ष विराम समझौते के साथ समाप्त हुआ कि बलूचों को अधिक स्वायत्तता दी जाएगी. लेकिन फिर से वादे पूरे नहीं किए गए.
चौथा संघर्ष: 1973-77
बलूचिस्तान की चुनी हुई एनएपी (राष्ट्रीय अवामी पार्टी) सरकार को ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो द्वारा भंग कर दिए जाने पर यह संघर्ष शुरू हो गया था. उस वक्त सरदार अतुल्लाह, नवाब अकबर खान बुगती, सहित सभी प्रमुख बलूच नेताओं को सलाखों के पीछे डाल दिया गया था. आरोप लगाया गया कि बलूचिस्तान में सरकार ने बलूचिस्तान को पाकिस्तान और ईरान दोनों से अलग करने के लिए इराक और सोवियत संघ के साथ समझौता किया था.
इस संघर्ष के दौरान असद रहमान, मीर मोहम्मद अली तालपुर, दिलीप दास, रशीद रहमान, अहमद रशीद और नजमसेठी जैसे जाने-माने समाजवादी व्यक्ति और पत्रकार बलोच में शामिल हुए. वे पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बलोच छापामारों से लड़े. दिलीप दास और नजम सेठी को गिरफ्तार कर लिया गया. सेठी को रिहा कर दिया गया था, लेकिन दिलीप दास को सैन्य रन कालकोठरी में मौत के घाट उतार दिया गया.
1977 में स्थिति सामान्य हो गई जब 1977 में जनरल जिया-उल-हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो को पदच्युत कर दिया और बलोच प्रमुख नेताओं और उनके युद्धरत जनजातियों को सामान्य माफी दी.
पांचवा संघर्ष: 2005
1990 के दशक के उत्तरार्ध में पांचवां और वर्तमान संघर्ष शुरू हुआ. यह 2004 में उस समय हुआ था जब डेरा बुगती में एक महिला चिकित्सक का सेना के एक अधिकारी ने बलात्कार किया था. नवाब अकबर खान बुगती ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और बलात्कारियों के लिए सजा की मांग की क्योंकि चिकित्सक उनके "बहोत" (संरक्षण) में थे.
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किसी ने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया. इसके विपरीत सेना ने डेराबुग्ती पर हमला किया. जवाब में बलोच गुरिल्लाओं ने बलूचिस्तान के कोहलू में जनरल परवेज मुशर्रफ के हेलीकॉप्टर पर रॉकेट दागे.
नवाब अकबर खान बुगती की हत्या
26 अगस्त, 2006 को इस संघर्ष को हवा दी गई, जब नवाब बुगती की एक सैन्य हमले में तरतानी के पहाड़ों में हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या ने बलूचिस्तान की परिस्थितियों को जबरदस्त रूप से बदल दिया. प्रांत में सेना का पूरा अभियान शुरू हुआ हजारों बलोच कार्यकर्ता लापता हो गए. मुशर्रफ शासन ने दमनकारी कदम उठाया.
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