युद्धों में होता रहा है रासायनिक और जैविक हथियारों का इस्तेमाल! पढ़ें, इतिहास

कोरोना वायरस को एक प्रकार का Biochemical Terrorist Attack का जरिया बताया जा रहा है. लेकिन क्या इसका इस्तेमाल पहली बार किया जा गया है. अगर नहीं, तो क्या है इस रासायनिक और जैविक हथियारों से हमले का इतिहास? जानिए यहां

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Mar 30, 2020, 03:14 AM IST
    1. युद्धों में रासायनिक और जैविक हथियारों का इस्तेमाल
    2. इन हथियारों के इस्तेमाल का क्या है इतिहास?
    3. हमलों में सीरिया में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी
    4. 9 साल पहले आई फिल्म Contagion की कहानी
    5. कई फिल्मों के अलावा किताबों में वायरस का जिक्र
युद्धों में होता रहा है रासायनिक और जैविक हथियारों का इस्तेमाल! पढ़ें, इतिहास

नई दिल्ली: अब तक इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि कोरोना वायरस प्राकृतिक है या मैन मेड. अमेरिका का आरोप है कि चीन ने कोरोना वायरस लैब में बनाया, तो चीन का आरोप है कि अमेरिका की आर्मी ने चीन में कोरोना वायरस को प्लांट किया है.

युद्धों में रासायनिक और जैविक हथियारों का इस्तेमाल

बात हैरानी की नहीं है, दुनिया में पहले भी रासायनिक और जैविक हथियारों का युद्धों के दौरान इस्तेमाल किया जा चुका है. द्वितीय विश्व युद्ध में बड़े पैमाने पर दोनों तरफ से जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था.

इन हथियारों के इस्तेमाल का क्या है इतिहास?

  • 1939 में जापान ने टायफॉयड वायरस रूस की पानी की पाइप लाइनों में मिलाया
  • 1980 के दशक में इराक ने ईरान में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था
  • 1988 में कुर्दों के खिलाफ मस्टर्ड गैस और नर्व एजेंट का इस्तेमाल किया गया था
  • 1995 में टोक्यो मेट्रो में सरीन गैस के हमले में 12 लोगों की मौत हुई थी
  • 2013 में घौतू में एक रासायनिक हमले में 1000 लोगों की मौत हो गई थी
  • 2014 से 2017 के बीच सीरिया में जैविक और रासायनिक हथियारों का जमकर इस्तेमाल किया गया

इन हमलों में सीरिया में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी... 

2020 में दुनिया कोरोना नाम के वायरस से युद्ध लड़ रही है. लेकिन कोरोना जैसे वायरस की जैविक हथियार के रूप में वर्षों पहले कल्पना कर ली गई थी. कोरोना दुनिया के 125 देशों में फैल चुका है. जिसके बारे में कहा जा रहा है कि ये नेचुरल नहीं मैन मेड है और इस पर तो कई फिल्में बन चुकी हैं. किताबें लिखी जा चुकी हैं, यानी कोरोना जैसे वायरस के अटैक की कल्पना पहले ही कर ली गई थी.

Truth is stranger than fiction यानी कल्पना हकीकत से ज़्यादा अजीब होती है. हकीकत कोरोना वायरस है और कल्पना कोरोना जैसे वायरस पर हॉलीवुड में बनी फिल्में हैं. कुछ किताबें हैं, जिनमें कोरोना जैसे ख़तरनाक वायरस की कल्पना की गई है.

9 साल पहले आई फिल्म Contagion की कहानी

अब से करीब 9 साल पहले हॉलीवुड में Contagion नाम की फिल्म बनाई गई थी. फिल्म में बेथ एहॉफ और उसके बेटे की मौत हो जाती है. जांच के बाद पता चलता है कि मौत का कारण एक घातक वायरस है. अमेरिका का पूरा सिस्टम वायरस को फैलने से रोकने के लिए युद्ध स्तर पर संघर्ष करते हैं. ये 2011 में आई फिल्म की कहानी है.

वर्ष 2020 में कोरोना वायरस एक हकीकत है, जो करीब करीब फिल्म में दिखाए गए वायरस के संक्रमण से मेल खाता है. वायरस की दहशत का चित्रण जैसे फिल्म में दिखाया गया है उसी तरह आज कोरोना वायरस की दहशत दुनिया भर में है. 

कई फिल्मों के अलावा किताबों में वायरस का जिक्र

Contagion एक अकेली फिल्म नहीं है जिसमें वायरस को एक जैविक हथियार की तरह दिखाया गया है. कई फिल्में हैं और सिर्फ फिल्म ही नहीं किताबें भी हैं जिनमे कोरोना जैसे वायरस की कल्पना की गई है. सोशल मीडिया पर अमेरिकी लेखक डीन कून्ट्ज के उपन्यास 'द आईज़ ऑफ डार्क सीक्रेट' के कुछ पन्ने खूब वायरल हो रहे हैं.

दावा है कि 1981 में प्रकाशित हुई इस उपन्यास में कोरोना वायरस के बारे में पहले ही बता दिया गया था और यह चीन द्वारा विकसित किया गया जैविक हथियार था, तो क्या कोरोना वायरस सचमुच मैन मेड है नेचुरल नहीं है.

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सोशल मीडिया के दावे को कुछ लोग गलत बता रहे हैं. कहा जा रहा है डीन कून्ट्ज के उपन्यास के वर्ष 1981 के एडिशन में वुहान का जिक्र ही नहीं है. इस फिक्शन नॉवेल में जैविक हथियार को 'गोर्की-400' कहा गया है कून्ट्ज वाले वायरस की उत्पत्ति रूस में हुई थी. बताया गया है कि वर्ष 1989 में शीत युद्ध की समाप्ति के वक्त बुक को दोबारा जारी किया गया, तब इसमें वुहान को जोड़ा गया था. यानी वर्ष 1989 की कल्पना वर्ष 2020 में सच साबित हो रही है.

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