नई दिल्ली: आखिरकार अमेरिकी वैज्ञानिकों की मेहनत बच ही गई. इसके साथ ही चीन का सबसे खतरनाक षडयंत्र बेपर्दा हो गया. जिसका मकसद अमेरिका की मेडिकल लैब में कोरोना वैक्सीन पर हो रहे रिसर्च की चोरी करना था.
चीनी सेना का अधिकारी अमेरिका में गिरफ्तार
अमेरिका के लॉस एंजिलिस एअरपोर्ट पर 7 जून 2020 को चीनी सेना के एक मेजर को गिरफ्तार किया गया. जिसने अमेरिका में प्राइवेट मेडिकल रिसर्चर बताकर गुप्त घुसपैठ की थी. ये चीनी सैन्य अधिकारी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-सैन फ्रांसिस्को यानी UCSF में साइंटिफिक रिसर्चर के रुप में घुसने में कामयाब हो गया था.
इसके बाद यह अपनी साजिश पूरी करके 7 जून की दोपहर चीन के तिजियांग जानेवाली फ्लाइट में सवार होने के लिए पूरी तरह से तैयार था. इसमें सिर्फ 30 मिनट का वक्त बचा था, तभी उसे एफबीआई और यूएस बॉर्डर पेट्रोल एजेंट्स ने हिरासत में ले लिया.
कौन है ये चीनी सैन्य अधिकारी
अमेरिका में घुसपैठिया बनकर आए चीनी सैन्य अधिकारी का नाम शिन वांग था. जो कि अमेरिका की UCSF मेडिकल लैब में रिसर्च करने के नाम पर आया था. लेकिन असलियत ये थी कि यह चीनी सेना में मेजर रैंक का अधिकारी है. जो कि अमेरिकी रिसर्च को चोरी करके चीन भेजने की साजिश रच रहा था.
यह चीनी मेजर 14 महीने से अमेरिका में अपनी पहचान छिपाकर रह रहा था. 26 मार्च 2019 को अमेरिका पहुंचा ये चीनी जासूस UCSF के कई बड़े
प्रोजेक्ट से वाकिफ हो चुका था. इसने अपने सीनियर अमेरिकी वैज्ञानिकों को पूरा भरोसा हासिल कर रखा था. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि शिन वांग चीनी सेना में मेजर की रैंक रखता है और ये चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी में लेवल 9 का टेक्नीशियन है.
पहचान छिपाकर रह रहा शिन वांग अमेरिकी अधिकारियों की आंख में महीनों तक धूल झोंकता रहा. चीन ने जिस मिशन के तहत इसकी यूएस में घुसपैठ कराई थी. उसे पूरा करने के लिए ये दिन रात जुटा हुआ था. शिन वांग लैब की हर गतिविधि की जानकारी ये चीन पहुंचा रहा था. खास बात ये है कि इसी लैब में कोरोना की वैक्सीन पर भी रिसर्च चल रही है. अंदेशा है कि चीनी मेजर ने उसकी भी जासूसी की है.
शिन वांग को था गिरफ्तारी का अंदाजा
शिन वांग को शायद अंदेशा हो गया था कि अब उसका भांडा कभी भी फूट सकता है. इसलिए वो चीन फरार होने वाला था. लॉस एंजिलिस एअरपोर्ट पर अपनी गिरफ्तारी से पहले उसने सोशल साइट वी-चैट के जरिए चीन भेजी गई लगभग सभी जानकारियां और ईमेल के ब्यौरे को पूरी तरह नष्ट कर दिया था. अब अमेरिकी जांच एजेंसियां इससे जुड़ा डेटा हासिल करने में जुटी हैं.
फर्जी पासपोर्ट पर अमेरिका घुसा
अमेरिका जैसे देश बेहद सुरक्षित माने जाने वाले देश में चीनी मेजर फर्जी पासपोर्ट के आधार पर दाखिल हुआ था. इसने जे-1 इमिग्रेंट वीजा एप्लिकेशन में इसने खुद को मेडिकल रिसर्चर बताते हुए कहा था कि 2016 में उसकी पीएलए की सर्विस खत्म हो चुकी है. लेकिन ये सफेद झूठ था. दरअसल चीनी सेना का मेजर अमेरिकी लैब पर गुप्त सर्जिकल स्ट्राइक के लिए यहां पहुचा था. ये चीन के मिशन 420 का बड़ा मोहरा था.
कोरोना वैक्सीन की जासूसी का शक
कोरोना पर वैक्सीन बनाने को लेकर इस वक्त चीन और अमेरिका के बीच जबर्दस्त रेस चल रही है. अमेरिका की बड़े लैब्स में वैज्ञानिक दिन-रात इस कोशिश में जुटे हैं कि जल्द से जल्द कोविड-19 को पूरी तरह से खत्म करने वाली वैक्सीन बना ली जाए. लेकिन चीन अमेरिका के इस मिशन को हर हाल में नाकाम करना चाहता है. चीन का मकसद है कि सबसे पहले वो कोरोना की वैक्सीन तैयार करे. जिसके बाद उसे मनमाने दामों में दुनिया को बेच सके.
पहले से सतर्क था अमेरिका
दुनिया भर में कोरोना फैलाने वाले चीन की इस साजिश से अमेरिका पहले से सावधान था. इसलिए उन तमाम चीनी और चीन मूल के मेडिकल और दूसरे रिसर्चर्स पर नजर रखी जा रही थी. जो वैक्सीन पर रिसर्च कर रही किसी भी लैब से जुड़े थे. इसी दौरान जांच एजेंसियों के रडार पर चीन का मेजर शिन वांग आया। और फिर जो खुलासा हुआ उससे पूरे अमेरिका में हड़कंप मचा हुआ है.
अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक गिरफ्तार वांग ने पूछताछ में कबूल किया है कि उसे चीन के मिलिट्री डायरेक्टर ने अमेरिकी लैब की जासूसी का निर्देश दिया था.
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-सैन फ्रांसिस्को की जिस लैब में चीन के मेजर ने अपना अड्डा बना रखा था. इस लैब को अमेरिकी सरकार मेडिकल रिसर्च से जुड़े बड़े प्रोजेक्ट के लिए ग्रांट भी देती है. यहां कोरोना वैक्सीन से जुड़ी रिसर्च होने की भी बात चर्चा में है.
चीनी मेजर ने पूछताछ में ये भी कबूला है कि वो जिस प्रोफेसर के अंदर काम कर रहा था उनकी रिसर्च भी वो चोरी करके चीन भेज चुका है. इससे समझा जा सकता है कि चीन ने अमेरिका की वैक्सीन पर किस तरह गुप्त सर्जिकल स्ट्राइक शुरू कर रखी है. अमेरिकी राष्ट्रपति पहले से ही चीन पर ऐसी साजिश का आरोप लगाते रहे हैं.
वीजा फ्रॉड और जासूसी के आरोप में शिन वांग पर अब अमेरिका में मुकदमा चलेगा. इस आरोप के साबित होने पर इसे 10 साल की सजा और ढाई लाख डॉलर का जुर्माना हो सकता है. पूरे मामले पर इस वक्त चीन चुप है, और वो इस मुद्दे से दूरी बनाता दिख रहा है.