`बिकाऊ` इमरान को उइगर मुसलमानों की फिक्र नहीं!
इमरान खान (Imran Khan) दुनिया भर के मुसलमानों के हिमायती दिखने की कोशिश करते हैं लेकिन चीन में उइगर मुसलमानों (uighur muslims) के अत्याचार पर चुप्पी साध लेते हैं. वहीं, अमेरिका (America) ने उइगर मुसलमानों के हक में बिल पास किया है.
नई दिल्ली: पाकिस्तान (Pakistan) के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) पूरी दुनिया में मुसलमानों के मसीहा बने घूमते हैं लेकिन आज हम पूरी दुनिया के मुसलमानों को बताएंगे कि मुसलमानों का ये मसीहा बिकाऊ है. इमरान खान ने मुसलमानों से गद्दारी की है. जी हां, ये 100 फीसदी सही खबर है.
इमरान खान (Imran Khan) ने मुसलमानों के ईमान को कौड़ियों के भाव बेच दिया है. उनका मुस्लिम (Muslim) प्रेम फर्जी है. उन्हें तो बस कैश से मोहब्बत है. इमरान खान ने 20 लाख मुसलमानों की जिंदगी का सौदा किया है. पाकिस्तान के बड़बोले भिखारी प्रधानमंत्री ने 20 लाख मुसलमानों का मुस्तकबिल चीन के तानाशाह शी जिनपिंग (Xi Jinping) के हाथों गिरवी रख दिया है.
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एक तरफ अमेरिका (America) उइगर मुसलमानों के हक के लिए चीन से भिड़ गया है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान (Pakistan) का तथाकथित मुस्लिम रहनुमा इमरान खान (Imran Khan) उइगरों के आंसूओं पर हंसता है क्योंकि इमरान बिकाऊ है.
चीन में मुसलमानों का 'नर्कलोक'
शी जिनपिंग (Xi Jinping) के 'टॉर्चर' सेल में 20 लाख उइगर मुसलमान हैं. सोते-जागते, खाते-पीते इमरान खान को बस कश्मीर (Kashmir) दिखाई देता है. चौबीसों घंटे वो कश्मीर की रट लगाता है. विदेश में हो, पाकिस्तान में हो या फिर अपने किसी ऐशगाह में इमरान की काली जुबान पर हर वक्त कश्मीर का नाम रहता है. अमन-चैन और तरक्की की राह पर चल रहे कश्मीर में इमरान खान को मुसलमान परेशान दिखाई पड़ते हैं लेकिन पाकिस्तान के पड़ोस में चीन के शिनजियांग (Xinjiang) प्रांत में उइगरों के आंसू इमरान को दिखाई नहीं पड़ते.
ये सबसे बड़ा सबूत है कि इमरान का मुस्लिम भाईजान वाला कार्ड फर्जी है और वो सिर्फ मुसलमानों के नाम पर दुनियाभर से खैरात बटोरना चाहते हैं. कश्मीर में आतंकवाद का खूनी खेल खेलने वाले इमरान खान को कोई हक नहीं है कि वो अपनी जुबान पर जन्नत का नाम ले. उसे कोई हक नहीं है कि वो कश्मीर के मुसलमानों पर बोले. एक ऐसे शख्स को कैसे कश्मीर के मुसलमानों पर बोलने का हक हो सकता है जो चीन के उइगरों (uighur) पर जुबान नहीं खोल सकता.
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ये जानते हुए भी कि उसका दोस्त जिनपिंग शिनजियांग के रहने वाले मुसलमानों का जीनोसाइड करने में लगा है. ये जानते हुए कि शिनजियांग से जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी मुसलमानों का नाम मिटाना चाहती है. ये जानते हुए भी कि उइगरों से शिनजियांग (Xinjiang) में उनके हक छीन लिए गए हैं फिर भी इमरान खान (Imran Khan) की जुबान से उइगरों के लिए एक शब्द नहीं फूटता लेकिन वो कश्मीर के मुसलमानों का रोना रोते हैं.
उसे ये कहते हुए जरा भी शर्म नहीं आती कि उइगरों पर हो रहे जुल्मो-सितम पर वो सिर्फ इसलिए नहीं बोल सकते क्योंकि चीन उनका दोस्त है. लेकिन सच्चाई ये है कि इमरान खान ने दोस्ती के लिए जुबान पर ताला नहीं डाला बल्कि जिनपिंग की खैरात पाने के लिए उन्होंने शिनजियांग के 50 लाख मुसलमानों की जिंदगी का सौदा कर लिया है.
‘इमरान खान’ खैरात पर जिंदा
दरअसल हकीकत यही है कि पाकिस्तान (Pakistan) कंगाल हो चुका है न आवाम को इमरान रोटी खिला सकते हैं , न युवाओं को रोजगार दे सकते हैं न इमरान विदेश से पाकिस्तानी आवाम की जान बचाने के लिए कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) मंगा सकते हैं क्योंकि ये सब करने के लिए पैसा चाहिए और इमरान को अब न सऊदी अरब पैसा दे रहा है न दूसरे देश. ऐसे में उनके पास चीन के आगे भीख मांगने के सिवा कुछ नहीं बचा है.
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इसीलिए इमरान खान (Imran Khan) को उइगरों पर अत्याचार नहीं दिखाई पड़ता क्योंकि उसकी आंखों पर चीन (China) का चश्मा चढ़ा है जिसमें उइगरों के रोने- चीखने की तस्वीरें दिखती ही नहीं. इमरान की तरह वहां के कई राजनयिक भी आए दिन कश्मीर का रोना रोते रहते हैं लेकिन उइगरों के नाम पर ऐसे तर्क गढ़ते हैं जिससे उनके जहनी दिमाग पर तरस आता है.
अब्दुल बासित जो पहले दिल्ली में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके हैं अब कश्मीर के नाम पर अपनी दुकान चला रहे हैं लेकिन उइगरों पर अत्याचार पर उनकी जुबान भी इमरान की तरह बंद हो जाती है और कहते हैं ये चीन का अंदरूनी मामला है.
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मुसलमानों के फर्जी 'मसीहा'!
इमरान खान की तरह मलेशिया के राष्ट्रपति महाथिर मोहम्मद (Mahathir Mohamad)और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन जो कश्मीर के मुद्दे पर इमरान की हां में हां मिलाते रहते हैं लेकिन उइगर मुसलमानों पर जुबान नहीं खोलते. मुसलमानों का खलीफा बनने का ख्वाब देखने वाले एर्दोगन ने तो कश्मीर में सीरिया के आतंकी भेजने का प्लान बना लिया था लेकिन उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर उनकी जुबान बंद है जबकि चीन से भागे हजारों उइगर तुर्की में शरण लिए हुए हैं.
फिर भी एर्दोगन को उनका दर्द नहीं दिखाई पड़ता. दरअसल बात सीधी सी है चीन से तुर्की को डर लगता है इसलिए जबान हलक में ही सूख जाती है. मलेशिया के बड़बोले राष्ट्रपति महाथिर मोहम्मद से जब उइगर मुसलमानों के बारे में सवाल किया गया तो बोले कि चीन एक शक्तिशाली राष्ट्र है अगर किसी ने उइगरों की बात की तो चीन एक्शन लेने में सक्षम है इसीलिए कोई भी मुस्लिम देश इस मामले में चीन से दुश्मनी नहीं लेना चाहता. दुनिया की 24 फीसदी आबादी इस्लाम को मानती है.
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दुनिया में मुसलमानों की 180 करोड़ आबादी है. 50 देश ऐसे हैं जहां इस्लाम सबसे बड़ा धर्म है. जहां आए दिन उनकी कट्टरता के दर्शन होते हैं. पाकिस्तान में ही आए दिन अल्पसंख्यक हिंदुओं और ईसाइयों पर जुल्म ढाए जाते हैं. कभी मंदिर तोड़ दिया जाता है तो कभी किसी लड़की का जबरन धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है लेकिन फिर भी ये देश हिन्दुस्तान में मुसलमानों के हालात का रोना रोते रहते हैं जबकि चीन से इस कदर डरते हैं कि उइगर शब्द भी जुबान पर लाने से परहेज करते हैं.
अमेरिका (America) में रह रहीं उइगर सामाजिक कार्यकर्ता रुसन अब्बास भी मुस्लिम मुल्कों के इस रवैये से परेशान हैं . उनका कहना है कि चीन के जुल्मोसितम हद से ज्यादा बढ़ गए हैं लेकिन मुस्लिम देशों में कहीं गुस्सा नहीं दिखाई पड़ता. उन्हें उइगरों का साथ देना चाहिए तो फिर सवाल ये उठता है कि क्या मुसलिम मुल्क कश्मीर का रोना सिर्फ प्रोपेगेंडा के लिए करते हैं और उइगरों के दर्द से उन्हें कोई सरोकार नहीं है. या यूं कहें कि चीन की ताकत से डरे मुसलिम देशों ने उइगरों को उनके हाल पर छोड़ दिया है.
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चीन (China) का उइगर प्रदेश शिनजियांग पाकिस्तान से 1.5 गुना बड़ा है. यहां 45 फीसदी उइगर मुसलमान हैं जबकि 55 फीसदी हान समुदाय को मानने वाले लोग हैं. शिनजियांग की सीमाएं 8 देशों से मिलती हैं जिनमें 5 मुस्लिम देश हैं. फिर भी चीन उइगरों का अंत करने पर तुला है. चीन के उइगर मुसलमान रमजान में रोजा नहीं रख सकते. महिलाएं बुर्का नहीं पहन सकती. चीन ने यहां की दर्जनों मस्जिदों को तोड़कर उनकी जगह शौचालय बना दिया है. चीन की वर्तमान सरकार उइगर मुसलमानों की पहचान खत्म कर उन्हें हान समुदाय में मिलाना चाहती है जो कम्मुनिस्ट पार्टी के कट्टर समर्थक हैं और जिनपिंग के आदेशों को मानते हैं. जो उइगर ऐसा करने से मना करते हैं उन्हें जबरन कंसन्ट्रेशन कैंपों में डाल दिया जाता है.
चीन की सरकार उइगरों के दाढ़ी रखने और उनके इस्लामिक वेशभूषा पर भी रोक लगाती है. चीन ने उइगरों की पहचान मिटाने के लिए बड़े- बड़े स्कूल खोले हैं जिनमें बच्चों को चीनी भाषा पढ़ाई जाती है. उन्हें मां-बाप से अलग रखा जाता है ताकि धीरे-धीरे वो इस्लाम को भूल जाएं और उनकी उइगर पहचान खत्म हो जाए. इसके अलावा उन्हें जबरन फैक्ट्रियों में काम कराया जाता है. चीन मे उइगरों की हालत गुलामों जैसी है और जो उइगर गुलामी करने से मना करता है उसका अंजाम मौत भी हो सकता है या फिर उसे टॉर्चर कैंप में मरने के लिए डाल दिया जाता है.
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अमेरिका ने चीन से पूछा सवाल
अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार (Trade war) अब उइगर मुसलमानों तक आ पहुंची है. अमेरिका ने चीन को घेरने के लिए उइगरों पर अत्याचार को बड़ा मुद्दा बना दिया है. अमेरिकी सीनेट (United States Senate) ने शिनजियांग में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के खिलाफ एक विधेयक पारित किया है जिसमें चीनी अधिकारियों पर पाबंदी लगाने का अधिकार दिया गया है. सीनेट में विधेयक के पक्ष में 413 और विपक्ष में 1 वोट पड़ा जिससे एक बात साफ है कि अमेरिका में इस बात पर एक राय है कि उइगरों के मुद्दे पर चीन को घेरा जाए.
अमेरिका की प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैन्सी पलोसी (Nancy Pelosi) ने कहा कि अगर अमेरिका कारोबारी हितों को तरजीह देते हुए मानवाधिकार उल्लंघनों पर कुछ नहीं कहेगा तो हम दुनिया में किसी भी स्थान पर नैतिकता के तहत कुछ कहने का अधिकार खो देंगे. वहीं रिपब्लिकन नेता और चाइना टास्क फोर्स के अध्यक्ष माइकल मैककॉल ने कहा कि शिनजियांग में चीन जो कुछ उइगरों के खिलाफ कर रहा है वो सांस्कृतिक नरसंहार से कम नहीं है.
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मानवाधिकार समूहों का कहना है कि कम से कम दस लाख उइगर और अन्य तुर्की मूल के मुस्लिमों को चीन के उत्तर-पश्चिम स्थित शिंजियांग प्रांत के डिटेंशन सेंटर में रहने को मजबूर किया गया है. इन कैंपों में उनके साथ मारपीट और तरह-तरह के अत्याचार किए जाते है.डिटेंशन कैंप में रह चुकी एक महिला ने बताया कि उसे बिजली का करंट लगाया जाता था.
चीन ने उइगर मुसलमानों को रखने के लिए जो डिटेंशन सेंटर बनाए हैं वो आमतौर पर 5 मंजिला होते हैं. उन्हें बिजली के तारों से घेर दिया जाता है और साथ में गेट में चीनी सेना के हथियारबंद जवान तैनात रहते हैं हालांकि चीन इन्हें डिटेंशन कैंप नहीं बल्कि सुधार गृह कहता है लेकिन जानकार मानते हैं कि यहां उइगरों की जबरन नसबंदी की जाती है ताकि वो बच्चे पैदा करने के लायक न रहे और उनकी आबादी पर कंट्रोल किया जा सके.
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