जेरुसलम. मोदी के प्रिय मित्र बेंजामिन नेतान्याहू ने पीएम मोदी को और इजराइल के मित्र देश भारत को खुशखबरी सुनाई है. अपनी पार्टी के चुनाव में फिर से वे सर्वोच्च पद पर आसीत हुए हैं.
पहले दिया था इज़राइल की जनता ने जनादेश
इस साल हुए इज़राइल के आम चुनावों में नेतान्याहू को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि वे अपनी लोकप्रियता खो चुके हैं और डूबती जनाधार वाली नौका पर सवार हैं. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. मोदी के राष्ट्रवादी मित्र ने जनता से फिर आशीर्वाद प्राप्त किया और अपने देश को ऊंचाइयों पर ले जाने की संवैधानिक ज़िम्मेदारी सम्हाली.
नेतृत्व पर उठे सवालों को निराधार सिद्ध किया
इस साल मार्च में हुए इज़राइल के राष्ट्रीय चुनावों में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. इस कारण न केवल पार्टी के बाहर से बल्कि पार्टी के भीतर से भी बेंजामिन नेतान्याहू की स्वीकार्यता पर सवाल खड़े हो रहे थे. पार्टी के नेताओं को लगा कि देश में बहुमत न जुटा पाने वाले नेता पार्टी के सर्वोच्च नेता बने रहने की योग्यता नहीं रखते. किन्तु पार्टी के चुनावों ने इन सवालों को ही धो डाला और नेतान्याहू अपनी जगह पर अटल रहे- चाहे वो पार्टी का सर्वोच्च पद हो या देश का.
मिले सबसे अधिक मत
पार्टी के नेताओं के अनुमान को निराधार सिद्ध करते हुए बेंजामिन नेतान्याहू ने सबसे अधिक मत अपने पक्ष में जुटाए. यह उनके राष्ट्रवादी होने का ही सुपरिणाम था कि पार्टी ने बहत्तर फीसदी मत दे कर उन्हें विजयी बनाया. बेंजामिन नेतान्याहू की पार्टी लिकुड पार्टी ने फिर से उन्हें बड़ी ज़िम्मेदारी दे कर पार्टी के मंच से देश का कर्णधार नियुक्त किया है.
विरोधियों ने लगाए भ्र्ष्टाचार के आरोप
राष्ट्रवादी नेतान्याहू को किसी और तरह से पराजित करना टेढ़ी खीर है. इस बात को समझ कर उनके विरोधियों ने तरह तरह के पैंतरे आजमाए. उन्होंने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आरोप चस्पा कर दिए. इन आरोपों का देश की जनता पर उतना असर नहीं देखा गया जितना नेतान्याहू की अपनी पार्टी में देखा गया. लिकुड पार्टी में उनके खिलाफ दबी-छुपी जुबान में आवाज़ें उठने लगीं. बाद में उनके विरुद्ध उनकी ही पार्टी के दूसरे बड़े नेता गिदोन सार ने बाकायदा मुहिम भी चला दी. पार्टी के चुनाव में नेतान्याहू के विरुद्ध गिदोन सार ही खड़े हुए थे लेकिन 57000 कार्यकर्ताओं वाली इज़राइल की लिकुड पार्टी में उन्हें मात्र 27 प्रतिशत वोट मिले.