नई दिल्ली. पहले चल रही थी अमेरिका और चीन के बीच व्यापार की जंग जिसको शांत करने की दिशा में आधा काम तो इन दोनों देशों ने आपस में ट्रेड एग्रीमेंट करके समाप्त करने का प्रयास किया था और बाकी आधा काम कोरोना की मार और चीन की आर्थिक हार से हो गया है. लेकिन अब शुरू हुई तेल की बड़ी जंग जो रूस ने छेड़ी है अमेरिका के खिलाफ.
अमेरिकन तेल कंपनियों के लिए खतरा
एक पंक्ति में कहीं तो रूस ने अमेरिका को नुकसान पहुंचाने के लिए ऑयल प्राइस वॉर की शुरुआत कर दी है. रूस तेल के उत्पादन के मामले में इतना सशक्त है कि उसने हद से भी ज्यादा तेल की कीमतें काम कर दीं और अपनी अर्थव्यवस्था को सम्हाले रखा. लेकिन इससे हुआ ये कि रूस की पहल के कारण क्रूड ऑयल की कीमतें इतनी नीचे चली गई हैं कि कई अमेरिकी तेल कंपनियों को विवश हो कर अपना प्रोडक्शन कम करना पड़ा है. कई अमरीकी तेल कंपनियों के सर पर तो बर्बादी का संकट मंडराने लगा है.
तेल व्यापार को लेकर पुतिन की जिद
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सीधे तौर पर अमेरिका के खिलाफ तेल मूल्य युद्ध छेड़ दिया है. पुतिन ने ठान ली है कि अमेरिका की ऑयल कंपनियों को बर्बाद करके रहेंगे. उनको पता है कि अमरीकन तेल कंपनियां पहले से ही घाटे में चल रही हैं और कर्ज में डूबी ये ऑयल कंपनियां इस वक्त बेहद मुश्किल दौर से गुजर रही हैं. ऐसे दौर में रूस ने इन ऑयल कंपनियों को और भी घाटे में लाने की कसम खा ली है.
शुरुआत हुई सऊदी अरब से
रूस ने तेल को लेकर पहले की अपनी रणनीति को एकदम से बदल लिया और अमरीकी कंपनियों को खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम उठा लिया और अपनी तरफ से तेल की कीमतों में जबरदस्त कमी कर डाली. इसके लिए उसे सही मौक़ा तब मिल गया जब सऊदी अरब ने ऑयल का प्रोडक्शन कम करने का फैसला किया. बस फिर क्या था रूस ने मौके का फायदा उठा और कीमतों का रुख नीचे की तरफ मोड़ दिया.
रूस की नज़र अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार पर
रूस को पता है कि अमेरिका की तेल कंपनियां कर्ज के बोझ तले दबी हैं जिनको फायदे में आने के लिए कम कीमत पर क्रूड ऑयल चाहिए और समानांतर रूप से तेल की कीमतें ऊंची भी चाहिए. तेल की कीमतें पिछले दिनों काफी कम हुई हैं और इस समय तेल का तीसरा बड़ा खिलाड़ी रूस मौके का फायदा उठाकर तेल के कारोबार में अपने कदम आगे बढ़ाने की दिशा में बढ़ निकला है. अब वह तेल के अंतरराष्ट्रीय बाजार पर अपना एकाधिकार जमाने की कोशिश में है.
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