नई दिल्ली: बीते कुछ दशकों में श्रीलंकाई नागरिकों ने शायद इससे पहले इतना बुरा दौर न देखा हो, जब उन्हें रोजमर्रा की चीजों के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ा हो. समस्या लाइन में लगने की ही नहीं, बल्कि दूध, दवा, ईंधन के अभाव और उनकी आसमान छूती कीमतों की भी है. लोगों का घरों में बैठना भी मुहाल है, क्योंकि वहां उन्हें घंटों तक कटी बिजली के वापस आने का इंतजार करना होता है.
जी हाँ, भारत के दक्षिणी छोर पर हिंद महासागर में बसा खूबसूरत देश श्रीलंका बेहद संकट में है. अब वह मानवीय संकट की ओर बढ़ रहा है. विदेशी कर्ज ने पहले से उसकी कमर तोड़ रखी है और अब कोरोना महामारी के चलते आय का सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन उद्योग पूरी तरह से तबाह हो चुका है. रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बचे-खुचे पर्यटक भी नहीं आ रहे हैं. राष्ट्रपति के खिलाफ देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और अब तो आपातकाल भी लग चुका है. एक्सपर्ट कह रहे हैं कि श्रीलंका का वित्तीय संकट जल्द ही मानवीय संकट में तब्दील हो सकता है और देश को दिवालियेपन की ओर धकेल सकता है. ऐसे में ये समझना बेहद ज़रूरी है की आख़िर क्यों श्रीलंका इस दौर से गुजर रहा है.
पांच बड़ी वजहें इस आर्थिक संकट की
1. कर्ज
श्रीलंका की इस हालत के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं. विदेशी मुद्रा भंडार का कम होना उसकी इस हालत के लिए सबसे बड़ा कारक माना जा रहा है. तीन साल पहले जहां श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 अरब डॉलर था. वहीं पिछले साल नवंबर में ये गिरकर 1.58 अरब डॉलर हो गया. श्रीलंका पर चीन, जापान, भारत और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का भारी कर्ज है लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण वो अपने कर्जों की किस्त तक नहीं दे पा रहा है. श्रीलंका अपने अधिकतर खाद्यान्नों, पेट्रोलियम उत्पादों, दवाइयों आदि के लिए विदेशी आयात पर निर्भर है. लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण वो आयात भी नहीं कर पा रहा है. इससे देश की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. देश का बिजली संकट भी गहरा गया है और लोगों को दिन में 7-8 घंटे अंधेरे में रहना पड़ रहा है.
2. कोविड-19 महामारी
श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन का काफी बड़ा योगदान है. वहां की GDP में टूरिज्म की हिस्सेदारी 10 फीसदी से ज्यादा है और पर्यटन से विदेश मुद्रा भंडार में भी इजाफा होता है, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से यह सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. कोविड की वजह से वहां के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है.
3. रासायनिक उर्वरक के इस्तेमाल पर बैन लगाना
गिरती मुद्रा और कम होते विदेशी भंडार के बीच श्रीलंका की सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया जिससे खाद्य संकट की स्थिति और ज्यादा खराब हो गई. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पिछले साल घोषणा की थी श्रीलंका 100 फीसदी जैविक खेती वाला दुनिया का पहला देश होगा. यानी सरकार ने खेती में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सुना दिया था जिससे कृषि उत्पादन में कमी आ गई.
4. टैक्स में कटौती
2019 में नवनिर्वाचित राजपक्षे सरकार ने लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ाने के लिए टैक्स कम कर दिया था. इससे सरकार के राजस्व को भारी नुकसान हुआ.
5. रूस-यूक्रेन जंग
रूस-यूक्रेन में छिड़ी जंग से श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो सकती है. रूस श्रीलंका की चाय का सबसे बड़ा आयातक है. रूस और यूक्रेन से बड़ी तादाद में श्रीलंका में पर्यटक भी आते हैं. रूबल की गिरती कीमत, जंग और रूस-यूक्रेन की ओर से चाय की घटती खरीद की वजह से भी इसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है.
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क्या भारत करेगा श्रीलंका की मदद?
श्रीलंका इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. इन हालात में चीन और भारत के साथ इस देश के संबंधों ने दिलचस्प मोड़ लिया है. अब तक श्रीलंका दोनों देशों को संतुलित करने और चीन-भारत के भू-राजनीतिक हितों से लाभ उठाने की कोशिश करता रहा है. अब वह मदद के लिए भारत की तरफ देख रहा है. इन हालात में भारत अपने इस पड़ोसी को एक अरब डालर की क्रेडिट लाइन (आसान कर्ज) देने जा रहा है. साथ ही, विश्व बैंक से कर्ज दिलाने की कोशिश कर रहा है. भारत श्रीलंका को 40 हजार टन ईंधन देगा. विशेषज्ञों के मुताबिक, चीन ने श्रीलंका को कर्ज जाल में फंसा लिया है और उसकी वजह से ही ये आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ है.
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