नई दिल्ली. अमेरिका के हालात कितने विकट हैं, इसको वो ही समझ सकता है जो खुद अमेरिका में हो. लगभग सभी बड़े शहरों में व्यवस्था के विरुद्ध प्रदर्शन चल रहे हैं इसलिये जाहिर है राष्ट्रपति निशाने पर हैं. रंगभेद के नाम पर किया जा रहा यह प्रदर्शन प्रशासन के खिलाफ अधिक लगता है और खास तौर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ तो ये बनाया गया मोर्चा लगता है. कोरोना काल में इस मुद्दे को तूल दिया जाना, जाहिर ही है कि सामान्य घटना या आन्दोलन नहीं है और इसके कारणों में इस वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनावों का होना भी शामिल है.
हालात बुरे हैं अमेरिका के
अमेरिका में चल रहे देशव्यापी फ्लायड-प्रदर्शन में दर्जनों लोग मारे जा चुके हैं. देश भर में कई सरकारी भवनों और यहां तक कि दुकानों में भी आग लगा दी गई है और हॉलीवुड फिल्म्स की तरह ही रैम्पेज और प्लंडर सड़कों पर नज़र आ रहा है. लोग दुकानों और घरों में घुसकर सामान लूटते दिखाई दे रहे हैं. ट्रंप ने प्रदर्शन के नाम पर अराजकता फैला रहे लोगों को लाठियों और गोलियों से धमकाया है, दस साल की जेल का भी डर दिखाया है और राज्यों के मेयर्स और राज्यपालों पर भी अपनी भड़ास निकाली है. लेकिन अधिक फर्क पड़ता नहीं दिखा तो अंत में सेना के जवानों को सड़क पर उतारना पड़ा है.
ये पुराना दर्द है अमेरिका का
ये पुराना दर्द है अमेरिका का जो ये बताता है कि अमेरिका-जैसे संपन्न और सुशिक्षित देश में यह सब क्यों हो रहा है. काले-गोरे का विरोध दशकों से नहीं बल्कि शताब्दियों से चला आ रहा है इस क्षेत्र में. 2014 में भी एरिक गेमर नामक एक अश्वेत की मौत इसी तरह पुलिस के हाथों हुई थी. तब भी बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा किया गया था जो आज भी खड़ा किया गया है. तब भी इसमें गोरे-काले दोनो शामिल थे और आज भी हैं.
आम अमरीकी जीवन में अलगाव कहीं नहीं है
मुझे अमेरिका में और खासकर अमेरिका की सेना में रहने का अवसर मिला है. ये बात आज से लगभग तीस साल पुरानी है. मैने न्यूयॉर्क जैसे महानगर में जनजीवन देखा है और जिया भी है और इसके अतिरिक्त अमेरिकी सेना के सैन्य-जीवन को भी देखा है और जिया भी है. दोनो ही जगह मैने इन दो वर्गों में अनेकता नहीं देखी न ही अलगाव का कोई कारण देखा. आज से लगभग तीस बरस पहले का अमेरिका तो आज की अपेक्षा कुछ अधिक रूढ़िवादी था. उस दौरान मैने देखा था कि गोरे-काले के विरोध के बीच भी जन-जीवन सुचारु था यथावत था और निर्बाध था. गोरे-काले का भेद लोगों के भीतर तो थोड़ा बहुत था परन्तु ऊपर कहीं देखने को नहीं मिलता था.
बनाया गया है यह आन्दोलन
यद्यपि तब भी और आज भी अश्वेतों के मन में ये भाव प्रायः कहीं न कहीं अस्तित्वमान है कि वे अश्वेत हैं इसलिये श्वेत उनसे कुछ दूरी बनाते हैं और कुछ भेदभाव करते हैं. जबकि अमरीकी जीवन का स्थायी भाव ये नहीं है. अमरीकी जीवन में गोरे और काले हर जगह हर स्थान और हर समय साथ जीवन जीते थे और आज भी जीते हैं. अमरीकी जीवन को सहजीविता की सहज आदत पड़ गई है और उसमें किसी तरह का विरोध, विद्रोह या विरोधाभास कदापि दिखाई नहीं देती. ऐसे में आज इतना बड़ा आन्दोलन समझ में आने वाली बात नहीं लगती है.
नौ दिन पूर्व हुई थी घटना
इस तथाकथित आन्दोलन को जन्म हुआ आज से नौ दिन पहले. हुआ ये था कि यह कि 25 मई की रात मिनियापोलिस के एक गोरे पुलिस अफसर ने एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लाएड को जमीन पर गिरा कर उसके गले को घुटने से इतनी देर तक दबाए रखा कि उसकी जान चली गई. फ्लायड चिल्लाता रहा कि उसका दम घुट रहा है पर कुछ देर में उसकी चीखों का भी दम घुट गया. इस घटना का वीडियो वायरल हो गया और फ्लायड के दम घुटने वाली बात को स्लोगन बना कर 'आई कैन्ट ब्रीद' आन्दोलन शुरू कर दिया गया. 2014 में न्यूयॉर्क में मारे गये एरिक गेमर के मामले में भी 'आई कैन्ट ब्रीद' नारे को आन्दोलन की शक्ल दे कर हंगामा किया गया था. जाहिर है, पुलिस और प्रशासन के विरोधी तत्वों को अवसर की तलाश रहती है और अवसर मिलते ही मामले को आसमानी बना दिया जाता है. इस बार निशाने पर ट्रम्प और उनकी सरकार थी.
अपराधियों को काबू में करने का तरीका है ये
सच तो ये है कि इस देश में तथा दुनिया के कई देशों में पुलिस क्रूर अपराधियों पर काबू पाने के लिये यही तरीका अख्तियार करती है. अमेरिका की पुलिस के लिये भी भारत की भांति ही अपराधियों पर गोली चलाना असंभव बना दिया गया है. गोली सिर्फ अंतिम विकल्प के तौर पर प्राणरक्षार्थ ही चलाई जा सकती है. ऐसे में भयंकर अपराधियों पर नियंत्रण पाने के लिये पुलिस को इसी तरह के शारीरिक हथकंडे अपनाने पड़ते हैं. सारा अमेरिका जानता है कि दशकों से पुलिस इसी तरह दुर्दान्त और घातक अपराधियों को नियंत्रित करती है औऱ इसके पीछे उनके प्रति किसी घृणा या भेदभाव की भावना काम नहीं करती. फिर ऐसे में यदि दुर्भाग्य से ऐसी घटना घट जाती है तो इसकी जिम्मेदारी अमेरिका के शांत और मिलनसार समाज पर तो नहीं डाली जा सकती. और जो लोग ये कार्य कर रहे हैं वे अमेरिका विरोधी हैं.
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