भारत ने खुलकर किया विरोध, तो WHO ने HCQ के ट्रायल पर लिया यू-टर्न: मंजूरी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के कोरोना वायरस ट्रायल पर यू टर्न लेते हुए परिक्षण को फिर से शुरू करने के लिए कहा है. बता दें, भारत ने WHO के उस फैसले का खुलकर विरोध किया था, जिसमें उसने ट्रायल पर द लैंसेट की रिपोर्ट का हवाला देते हुए रोक लगा दी थी..

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 4, 2020, 10:47 AM IST
    • हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के ट्रायल पर WHO का यू-टर्न
    • HCQ के ट्रायल पर पिछले हफ्ते लगा था बैन
    • भारत ने भी WHO के फैसले का किया था विरोध
    • भारत के विरोध के बाद WHO का यू-टर्न
भारत ने खुलकर किया विरोध, तो WHO ने HCQ के ट्रायल पर लिया यू-टर्न: मंजूरी

नई दिल्ली: वो दवा जो पूरी दुनिया में संजीवनी की तरह काम कर रही है, उसे भारत ने कई देशों को उपलब्ध कराया था. हाइड्रोक्सीक्लोरक्वीन यानी HCQ, जो कि मलेरिया की दवा है, वो कोरोना के मरीजों पर भी कारगर साबित हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के कोरोना वायरस ट्रायल को फिर से शुरू करने के लिए कहा है.

HCQ के ट्रायल पर WHO का यू-टर्न

अमेरिका समेत दुनिया के कई मुल्कों ने कोरोना के संक्रमितों पर HCQ का इस्तेमाल किया और इसका प्रभावी असर देखने को मिला. हालांकि पिछले दिनों एक स्टडी रिपोर्ट के आधार पर सेफ्टी का हवाला देते हुए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी WHO ने HCQ के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी, लेकिन अब WHO ने यू-टर्न ले लिया है और कोरोना के मरीजों पर HCQ के ट्रायल की फिर से मंजूरी दे दी हैय

पहले WHO ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) पर रोक लगाने का निर्णय स्वास्थ्य क्षेत्र की फेमस पत्रिका ‘द लैंसेट’ की एक रिपोर्ट के आधार पर किया था. जिसमें ये दावा किया गया था कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल से Covid-19 संक्रमितों की मृत्युदर में इजाफा हो जाता है. ये शोध तकरीबन 15 हजार मरीजों पर किया गया है.

HCQ के ट्रायल पर पिछले हफ्ते लगा था बैन

पिछले हफ्ते ही WHO ने कोरोना संक्रमितों पर HCQ के ट्रायल पर रोक लगाया था और इसके पीछे ‘द लैंसेट’ की इसी रिपोर्ट का हवाला दिया था. लेकिन इस पत्रिका की इस स्टडी पर कई रिसर्चर्स ने गंभीर सवाल उठा दिय, जिसके बाद मामला गहरा गया.

रिसर्चर्स ने दावा किया कि ‘द लैंसेट’ ने गंभीर हालत में पहुंच चुके मरीजों पर स्टडी की थी. इससे इस बात के कोई खास सबूत नहीं हैं कि इन मरीजों की मौत HCQ के कारण हुई है. बगैर परीक्षण के HCQ को पूरी तरह से समझा भी नहीं जा सकेगा, और पहले ही ट्रायल पर रोक लगया जाएगा त परीक्षण नहीं हो पाएगा.

भारत ने भी WHO के फैसले का किया था विरोध

‘द लैंसेट’ की रिपोर्ट के आधार पर HCQ के ट्रायल पर बैन लगाने के WHO के फैसले का भारत ने भी खुलकर विरोध किया था और कड़ा खत लिखा था.

भारत ने चिट्ठी में लिखा था कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर फैसला लेने से पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ICMR से बात करने की भी जरूरत नहीं समझी. यहां तक कि ICMR से संपर्क भी नहीं किया, जो कि हिन्दुस्तान में HCQ के ट्रायल की अगुवाई कर रहा है.

भारत के विरोध के बाद WHO का यू-टर्न

ICMR ने भी WHO के फैसले पर सवाल उठाए थे और HCQ को लेकर स्थिति साफ की थी.

ICMR ने कहा कि भारत में कोरोना से बचाव के मकसद से HCQ के इस्तेमाल को लेकर जो परीक्षण हुए हैं उसमें बड़े दुष्प्रभाव के कोई सबूत नहीं मिले हैं. हालांकि फायदे के संकेत साफ-साफ मिले हैं.

HCQ के ट्रायल पर लगाई गई रोक पर जब WHO को चौतरफा आलोचना और विरोध का शिकार होना पड़ा तब उसे यू-टर्न लेना पड़ा. WHO के इस फैसले के बाद HCQ के फिर से कोरोना मरीजों पर ट्रायल का रास्ता खुल गया है.

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आपको बता दें कि HCQ का उत्पादन करने वाली सबसे ज्यादा कंपनियां भारत में ही हैं और भारत से ही कई देशों में इस दवा का निर्यात होता है. पहले भारत सरकार ने HCQ के निर्यात पर बैन लगा रखा था, हालांकि बाद में अमेरिका की गुहार के बाद ये पाबंदी हटा ली गई. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने HCQ की सप्लाई की गुजारिश खुद पीएम नरेंद्र मोदी से की थी. जिसके बाद भारत ने न सिर्फ अमेरिका को बल्कि कई और देशों को भी हाइड्रॉक्सीक्लोक्वीन दवा एक्सपोर्ट की थी.

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