पठानकोट में पांडव गुफाओं के अस्तित्व को बचाने की मुहिम लाई रंग, प्रशासन ने शुरू किया काम
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पठानकोट में पांडव गुफाओं के अस्तित्व को बचाने की मुहिम लाई रंग, प्रशासन ने शुरू किया काम

पठानकोट के साथ लगते गांव मुकेसरा में पड़ते मुक्तेश्वर धाम जिसमें 5,500 साल पुरानी पांडवो की गुफाएं है. जिसमें पांडवों ने अपने अज्ञात वास के 6 महीने का समय गुजारा था. ऐसे में अब इन गुफाओं का अस्तित्व खतरे में आ गया था, क्योंकि इन गुफाओं के साथ निकलते रावी दरिया के ऊपर बैराज प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है. 

पठानकोट में पांडव गुफाओं के अस्तित्व को बचाने की मुहिम लाई रंग, प्रशासन ने शुरू किया काम

अजय महाजन/पठानकोट: पांडवो की 5,500 साल पुरानी ऐतिहासिक गुफायों और शिव मंदिर का अस्तित्व बचाने की मुहिम रंग लाई है. शाहपुर कंडी में बन रहे बैराज प्रोजेक्ट में 5,500 साल पुरानी गुफाएं डैम प्रशासन ने बचाने के लिए काम शुरू कर दिया है. 

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पठानकोट के साथ लगते गांव मुकेसरा में पड़ते मुक्तेश्वर धाम जिसमें 5,500 साल पुरानी पांडवो की गुफाएं है. जिसमें पांडवों ने अपने अज्ञात वास के 6 महीने का समय गुजारा था. ऐसे में अब इन गुफाओं का अस्तित्व खतरे में आ गया था, क्योंकि इन गुफाओं के साथ निकलते रावी दरिया के ऊपर बैराज प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है.  जिसके कारण ये गुफाएं झील के पानी में डूबने जा रही थीं. जिसको लेकर मुक्तेश्वर महादेव धाम बचाओ समिति और स्थानीय निवासियों की और से लंबे समय तक संघर्ष किया गया और अब उनकी यह मुहिम रंग लाती नजर आ रही है. 

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सरकार और प्रशासन ने लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस महान धाम को बचाने के लिए अब काम शुरू कर दिया है. वहीं, मुक्तेश्वर महादेव प्रबंधक कमेटी के प्रधान भीम सिंह ने बताया कि उनकी ओर से जो लंबे समय तक संघर्ष किया था, उसके कारण की डैम प्रशासन की ओर अब इस धाम को बचाने के लिये भर्ती डालने का काम शुरू कर दिया गया है. भर्ती का काम पूरा हो जाने के बाद दीवार बनाने के लिये टेंडर लगा कर इसका काम भी शुरू हो जाएगा.  उन्होंने कहा कि इस धाम को बचाने का श्रेय केवल उनका ही नहीं हर किसी का है. 

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पंजाब के जिला पठानकोट के अर्धपहाड़ी क्षेत्र धार के गांव डूंग में यह  शिवलिंग पहाड़ों को चीरकर बनाई गई गुफा में स्थापित किया गया है. पठानकोट से इस जगह की दूरी करीब 20 किलोमीटर है. इस स्थान को मुक्तेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है. यह गुफा करीब साढ़े पांच हजार साल से भी ज्यादा समय पहले द्वापर युग मे अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने बनाई थीं. अज्ञातवास के दौरान पांडवों को हर किसी से छिपकर समय बिताना था. इस दौरान पांडव यहां के घने जंगलों में पहुंचे.

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अर्जुन ने अपने तीर से वार करके पहाड़ों को चीर कर यह गुफा बनाई थी. यहां एक नहीं बल्कि कुल पांच गुफाएं बनायीं गयी थीं. मुक्तेश्वर धाम को मिनी हरिद्वार के रूप में भी जाना जाता है. यहां कई लोग अस्थियां प्रवाह के लिए भी आते हैं. शिवरात्रि पर यहां तीन दिवसीय मेला लगता है. इस मेले में भारी संख्या में दूर दराज से भगवान शिव के भक्त पहुंचते हैं.  यहां तीन दिन मन्दिर के किनारे झील में स्नान करने और शिवलिंग का जलाभिषेक करने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है. हर साल इस मेले में 2 लाख के करीब श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं. 

इस संबंधी जानकारी देते हुए डैम के इंजीनियर बलविंदर सिंह ने बताया कि मुक्तेश्वर धाम को बचाने के लिये पहले चरण में धाम के साथ लगती जमीन पर भर्ती डालने का काम शुरू कर दिया गया है.  इसकी फाइनल ड्रॉइंग भी बन कर तैयार हो चुकी है.  इसके बाद यहां पर बनने वाली दीवार के लिए जल्द ही टेंडर भी लगा दिया जाएगा. 

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