पुण्यतिथि पर खास: ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
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पुण्यतिथि पर खास: ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया

रफी साहब (Mohammed Rafi) जब 11-12 बरस के रहे होंगे तो उनकी आवाज में वह सिर्फ सिफ्त थी कि आस-पास के गांव के लोग भी उनकी आवाज़ को सुनने चले आया करते थे. 

File Photo

मौहम्मद सुहेल​/नई दिल्ली: बहुमुखी गायकों के धनी मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) मौसीकी की बगिया के ऐसे फूल थे जिस के बिखर जाने से मौसीकी का चमन सचमुच ही वीरान सा लगता है. लेकिन उस फूल की खुश्बु आज भी उनके होने का एहसास कराती रहती है. आज हमारे बीच रफी साहब जैसी अजीम शख्सियत भले ही नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज ता कयामत तक कायम रहेगी और यह कहकर पुकारेगी कि,

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे 
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे

रफी साहब जब 11-12 बरस के रहे होंगे तो उनकी आवाज में वह सिर्फ सिफ्त थी कि आस-पास के गांव के लोग भी उनकी आवाज़ को सुनने चले आया करते थे. आस-पास के उनकी आवाज के हमेशा चर्चे हुआ करते थे. उस वक्त लोगों ने दिमाग में सहगल साहब की आवाज का जादू भी छाया हुआ था, लोग उनकी आवाज के दीवाने थे. रफी साहब खुद बी की उनकी आवाज को बहुत पसंद किया करते थे. एक दिन लाहौर में सहगल साहब एक प्रोग्राम में शिरकत करने वाले थे इत्तेफाकन वहां बिजली चली गई. अब सहगल साहब बिना माइक के नहीं गा पाते थे. वहां पर आए लोगों का हुजूम शोर मचाने. जिसके बाद ऑर्गनाइजर्स भी परेशान हो गए.

नन्हे रफी साहब की सहगल साहब को सुनने के लिए अपने भाई के दोस्त के साथ यहां आए थे उन्होंने ऑर्गनाइजर्स से गुजारिश की कि जब तक बिजली नहीं आती तब तक एक छोटे लड़के को गाने का मौका दे दिया जाए. इस बात पर आर्गनाइजर्स राजी हो गए और जब मोहम्मद रफी साहब ने गाया तो ऐसा समां बांधा कि लोग उनकी आवाज को सुनकर दंग रह गए सहगल साहब ने भी उनकी आवाज सुनकर उनको दुआएं दीं और कहा कि लड़का बड़ा होकर बड़ा गायक बनेगा.

रफी साहब जब फिल्मों में गाना शुरू किया तो उनकी आवाज़ का कोई सानी नहीं था. 1950 की दहाई में रफी साहब की आवाज हर इंसान के दिल में अपनी जगह बना चुकी थी उनकी आवाज़ में बहुत दर्द जोश तलब थी जिसका जवाब नहीं चाहे वह शास्त्रीय संगीत हो, गजल हो, भजन हो, देश प्रेम की ज्वाला हो रही सभी में मौजूद थे. वह जिस मोड में गाते थे उसी में हो जाया करते थे. उनकी आवाज का जादू बड़े-बड़े मौसीकारों ने इस्तेमाल किया. नौशाद साहब, ओपी नैयर, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन, शंकर जयकिशन, रौशन और न जाने कितने.

करीब 40 साल तक उन्होंने 26,000 से ज्यादा नग्मे गाए. जिन्हें आज भी लोग बार-बार सुनने की हसरत रखते हैं. आवाज के साथ-साथ रफी साहब एक बेहतरीन शख्सियत के मालिक भी थे. उन्होंने कभी अपने आप को बड़ा गायक नहीं समझा. लोग कहते थे कि जब कोई रफी साहब के गीत की तारीफ करता तो वो कहते थे कि यह सब अल्लाह की मेहरबानी है मेरा क्या है इसमें? 

रफी साहब हमेशा लोगों की मदद किया करते थे. कहा जाता है कि स्टेज प्रोग्राम जो इनकम हुआ करती थी वो उसको हॉस्पिटल में दे दिया करते थे. जिससे वहां मशीनें लगाई जा सकें. वह एक बहुत शर्मीले किस्म के इंसान थे. साथ ही खाने पीने की शौकीन और लोगों की दावत करने का भी बहुत शौक था.

आज ही की तारीख की एक बदनसीब शाम ने हिंदुस्तान के इस बेहतरीन गायक को हम लोगों से छीन लिया. रफी साहब का दिल का दौरा पड़ने से इंतकाल हो गया. रफी साहब के सम्मान में भारी बारिश के बावजूद पूरी फिल्म इंडस्ट्री और मुंबई के लोग सड़कों पर उतर आए और उनकी आखिरी रसूमात में शामिल हुए. उस दिन मुंबई में इतनी बारिश थी कि मानो रफी साहब के गम में आसमान भी रो रहा था. उनके जाने से मौसीकी की दुनिया में जो जगह खाली हुई है उसको भरना नामुमकिन है.

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