मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को सरकार ने किया भंग; हाईकोर्ट ने कहा इसमें कोई गलती नहीं
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मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को सरकार ने किया भंग; हाईकोर्ट ने कहा इसमें कोई गलती नहीं

Maulana Azad Education Foundation: मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को भंग करने के सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले को सही बताते हुए इस याचिका को रदद कर दिया. 

मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को सरकार ने किया भंग; हाईकोर्ट ने कहा इसमें कोई गलती नहीं

Maulana Azad Education Foundation: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन (Maulana Azad Education Foundation ) को भंग करने के केंद्र सरकार के फैसले को ये कहते हुए बरकरार रखा कि सरकार उनके लिए बहुत सी योजनाए चला रही है, ऐसे में सरकार के फैसले पर सवाल उठाना ठीक नहीं है. शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 1989 में इस संस्था की स्थापना की गई थी. 

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ ने सैयदा सैय्यदैन हमीद, जॉन दयाल और दया सिंह की जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि  अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के जरिए अल्पसंख्यक समुदायों के लिए कई कल्याण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इस संस्थान को भंग करने की वजह से अल्पसंख्यक समुदाय की तरक्की में बाधा पैदा हो रही है. 

कोर्ट ने कहा कि एमएईएफ को भंग करने का फैसला एमएईएफ की आम सभा द्वारा लिया गया है और कोर्ट को उस फैसले पर पहुंचने के लिए उस आम सभा द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में कोई गलती या अनियमितता नहीं मिली है. 

अदालत ने कहा, “यह अदालत वर्तमान याचिका में कोई योग्यता नहीं पाती है और उत्तरदाताओं द्वारा लिए गए निर्णय में हस्तक्षेप करने की इच्छुक नहीं है. इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है.“
केंद्र ने अदालत में अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि एमएईएफ “अप्रचलित“ हो गया है जब एक समर्पित मंत्रालय अल्पसंख्यकों के लाभ के लिए योजनाओं को समग्र रूप से क्रियान्वित कर रहा है, तो ऐसे में किसी अन्य संस्था की क्या जरूरत है? 

मंत्रालय का आदेश एमएईएफ को बंद करने के लिए 21 जनवरी को केंद्रीय वक्फ परिषद (सीडब्ल्यूसी) से मिले एक प्रस्ताव के संदर्भ में जारी किया गया था.इस मामले में कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद 13 मार्च को जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

याचिकाकर्ताओं ने अपनी जनहित याचिका में कहा था कि मंत्रालय का आदेश न सिर्फ योग्य छात्रों, विशेषकर लड़कियों को एमएईएफ की योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित करता है, बल्कि अधिकार क्षेत्र के बिना, पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण, मनमाना है. वकील फ़ुज़ैल अहमद अय्यूबी के जरिए दायर याचिका में दावा किया गया है कि लगभग चार दशक पुरानी संस्था को खत्म करने और इसकी संपत्ति और धन को ख़त्म करने के इस तरह के “अचानक, अपारदर्शी और पूरी तरह से मनमाने फैसले से लोगों की जिंदगी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़न सकता है. 
अपने 30 पन्नों के फैसले में, अदालत ने कहा कि सार्वजनिक हित के अधिकार क्षेत्र में, उसे “बड़ी तस्वीर“ को देखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से अल्पसंख्यक छात्राओं के मुद्दे पर पूर्वाग्रह न हो. वर्तमान मामले में, कहा गया है, मंत्रालय द्वारा उन समुदायों की लड़कियों सहित अल्पसंख्यक समुदायों की विशिष्ट शैक्षिक और व्यावसायिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं. मंत्रालय ने अल्पसंख्यक समूहों की शैक्षिक और कौशल विकास आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए विभिन्न कार्यक्रम पेश किए हैं. 

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