25 तोपों की सलामी, गौरी परिवार ने की झंडे की रस्म अदायगी, इस दिन आगाज होगा गरीब नवाज का 813वां उर्स
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25 तोपों की सलामी, गौरी परिवार ने की झंडे की रस्म अदायगी, इस दिन आगाज होगा गरीब नवाज का 813वां उर्स

Khwaja Garib Nawaz 813th Urs: सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमातुल्लाह अलैह के 813वें उर्स की परचम कुशाई की रस्म अदा की गई. 25 तोपों की सलामी के साथ झंडे की रस्म का जुलूस दरग़ाह गेस्ट हाऊस से शुरू हुआ. ख्वाज़ा साहब का सालाना उर्स मुबारक़ 10 जनवरी तक चलेगा.

25 तोपों की सलामी, गौरी परिवार ने की झंडे की रस्म अदायगी, इस दिन आगाज होगा गरीब नवाज का 813वां उर्स

Khwaja Garib Nawaz 813th Urs: दुनियाभर में अजमेर शरीफ दरग़ाह के नाम से मशहूर सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमातुल्लाह अलैह के 813वें उर्स की परचम कुशाई की रस्म अदा की गई. भीलवाड़ा के गौरी ख़ानदान ने इस झंडे की रस्म को बुलंद दरवाजा पर अदा किया. रस्म अदायगी के वक़्त मौरूसी अमला और दरग़ाह कमेटी के नुमाइंदे मौजूद रहे.  मुग़लिया रिवायत के मुताबिक़ 25 तोपों की सलामी के साथ झंडे की रस्म का जुलूस दरग़ाह गेस्ट हाऊस से शुरू हुआ. ख्वाज़ा गरीब नवाज के उर्स के झंडे की रस्म में बर्रे सग़ीर से ज़ायरीन अजमेर पहुंचे थे.

इस दौरान अक़ीदतमंद  ख़ुशी के अश्क़ के साथ दुआएं मांगते नज़र आए. झंडे की रस्म अदायगी के बाद उर्स की विधिवत शुरुआत रजब का चाँद दिखाई देने के बाद से की जायेगी और 31 दिसम्बर को शाही संदल की रस्म और 1 जनवरी को जन्नती दरवाज़ा खोल दिया जाएगा. ख्वाज़ा साहब का सालाना उर्स मुबारक़ 10 जनवरी तक चलेगा.

अकीदतमंदों ने अपनी मन्नत को लेकर चूमे झंडे
बता दें कि, गरीब नवाज के  झंडे का जुलुस असर की नमाज के बाद गरीब नवाज गेस्ट हाउस से रवाना हुआ, जिसमें कई बड़े कव्वालों व बैंड बाजों के साथ जुलुस लंगरखाना गली, निजाम गेट होते हुए दरगाह के मुख्य द्वार निजाम गेट से अंदर एंट्री किया.  जुलसू के पहुंचते ही निजाम गेट पर शादियाने बजाए गए . इस रस्म के दौरान अकीदतमंदों ने अपनी मन्नत को लेकर झंडे चूमे.

भीलवाड़ा के गौरी परिवार ने क्या कहा?
भीलवाड़ा से आये गौरी परिवार के मुताबित यह रिवायत काफी अरसे से चली आ रही है, जो साल 1928  फखरुद्दीन गौरी के पीर मुर्शिद अब्दुल सत्तार बादशाह ने शुरू की थी. इसके बाद 1944 से उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई. उनके इंतकाल के बाद 1991 से बेटे मोईनुद्दीन गौरी यह रस्म निभाने लगे और साल 2007 से फखरुद्दीन इस रस्म को अदा कर रहे हैं.

बताया जाता है रस्म अदायगी के बाद झंडा दूर-दराज के गांवो तक नजर आता था. उस वक्त मकान छोटे-छोटे थे. इसी वजह से बुलंद दरवाजा काफी दूर से नजर आता था.  दरवाजे पर झंडा देखकर ही लोग समझ जाते थे की पांच दिनों बाद गरीब नवाज का उर्स शुरू होने वाला है. 

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