Jawaharlal Nehru Jayanti: इजराइल-फिलिस्तीन विवाद पर क्या था नेहरू का रुख? यूएन में किया था कड़ा विरोध
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam1958266

Jawaharlal Nehru Jayanti: इजराइल-फिलिस्तीन विवाद पर क्या था नेहरू का रुख? यूएन में किया था कड़ा विरोध

Jawaharlal Nehru Jayanti: इजराइल और फिलिस्तीन की जंग के पीछे लोगो ंके मन में सवाल है कि आखिर शुरुआत से ही फिलिस्तीन को लेकर भारत का क्या रुख रहा है. आइये जानते हैं पूरी डिटेल

Jawaharlal Nehru Jayanti: इजराइल-फिलिस्तीन विवाद पर क्या था नेहरू का रुख? यूएन में किया था कड़ा विरोध

Jawaharlal Nehru Jayanti: इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जंग जारी है. इस बीच कुछ लोग ऐसे हैं जो इजराइल का समर्थन कर रहे हैं वहीं कुछ लोग फिलिस्तीन की हिमायत में है. ऐसे में सवाल आता है कि भारत का हमेशा से किस मुल्क के लिए स्टैंड रहा है. आज भारत के पहले प्रधान सेवक जवाहर लाल नेहरू की जयंती है, और इस मौके पर हम आपको उनके फिलिस्तीन को लेकर रुख के बारे में बताने वाले हैं. इसके लिए हमें इतिहास में जाना होगा, तो आइये जानते हैं

सयुंक्त राष्ट्र में रिजॉल्यूशन

साल 1947 तारीख 29 नवंबर, यूएन महासभा में रिजॉल्यूशन नंबर 181 पारित किया गया. इस प्रस्ताव में फिलिस्तीन को दो देशों में बांटने की बात की गई थी. यानी अरबों के लिए फिलिस्तीन और यहूदियों के लिए इजराइल. इसके अलावा यरूशलेम और बेथलेहम को एक इंटरनेशनल एरिया घोषित करने का भी प्रस्ताव था. इस प्रस्ताव में अरबों के फिलिस्तीन की आधे से भी ज्यादा जमीन पर यहूदी देश इजराइल का गठन होना था. उस वक्त यहूदियों की आबादी एक तिहाई से भी कम थी और उनके पास 7 फीसद जमीन ही थी.

रिजॉल्यूशन का विरोध

इस रिजॉल्यूशन का यूएन में कड़ा विरोध किया गया, विरोध करने वाले देशों में भारत भी शामिल था. इजराइल और फिलिस्तीन के मसले को हल करने के लिए UNSCOP नाम की एक कमेटी बनाई गई थी. भारत की तरफ से इस कमेटी के सदस्य अब्दुर रहमान ने कहा था कि फिलिस्तीनी लोग अब विकास के उस स्तर पर पहुंच गए हैं, जहां एक आजाद मुल्क के तौर पर उसकी मान्यता में अब देरी नहीं की जा सकती. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि मुल्क को बांट देने से इलाके में हिंसा नहीं रुक पाएगा.

नेहरू और महात्मा गांधी का फिलिस्तीन पर रुख

महात्मा गांधी, मौलाना आजाद और जवाहर लाल नेहरू शुरुआत से ही फिलिस्तीन के बंटवारे के खिलाफ थे. नेहरू इस मामले को काफी जटिल मानते थे. अब्दुर रहमान को लिखे गए एक खत में उन्होंने कहा था कि फ़िलिस्तीन का मुद्दा बहुत जटिल है. हमारी सहानुभूति अरबों के साथ है, और न केवल हमारी सहानुभूति, बल्कि हमारा बौद्धिक विश्वास हमें बताता है कि फ़िलिस्तीन  एक अरब देश है. इसे जबरन किसी और चीज़ में बदलने की कोशिश करना न केवल गलत है बल्कि मुमकिन भी नहीं है. साथ ही हमें यहूदियों के भयानक संकट में उनके प्रति गहरी सहानुभूति है. मुझे लगता है कि यह भी बिल्कुल सच है कि यहूदियों ने फ़िलिस्तीन में बहुत अच्छा काम किया है और रेगिस्तान से ज़मीन वापस हासिल की है.''

1938 में हरिजन में छपे एक आर्टिकल में गांधी जी ने कहा था कि फिलिस्तीन अरबों का है, ठीक वैसे ही जैसे इंग्लैंड इंग्लिश और फ्रांस फ्रेंच लोगों का है. इसके साथ ही गांधी जी ने टू धर्म के आधार पर टू नेशन थ्योरी का भी विरोध किया.

यूएन में पास हुआ प्रस्ताव

इस सब के विरोध के बाद प्रस्ताव यूएन में पास हो गया. इसके हक में 33 वोट पड़े और विरोध में कुल 13 देशों ने वोट डाले. 10 देश ऐसे थे जिन्होंने इस वोटिंग से खुदको अलग कर लिया. फिलिस्तीनियों को कमेटी के जरिए किया गया ये फैसला पसंद नहीं आया और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. कई जगहों पर दंगे हुए, इस प्रस्ताव से खुश यहूदियों ने कई गावों पर हमला किया और आरबों का ये मुल्क गृह युद्ध की आग में जलने लगा. 15 मई 1948 में इजराइल को एक अलग मुल्क का दर्जा मिल गया.

कौन था इस बंटवारे का जिम्मेदार

इस बंटवारे का बीज 1937 में ब्रिटिश पील कमीशन ने बोया था. हालांकि यूएन में काफी कम इलाके के यहूदी राज्य का प्रस्ताव रखा गया था. बाद में यहूदी लॉबी, ब्रिटिश लॉबी और अमेरिका लॉबी ने इसे मिलकर यूएन में पहुंचाया और मरजी के मुताबिक बंटवारे को अंजाम दिया.

भारत ने माना देश

प्रस्ताव का विरोध करने वाले भारत ने 1950 में इजराइल को एक मुल्क के तौर पर मान्यता दे दी. इसको लेकर नेहरू ने कहा था कि भले ही हम यूएन में इजराइल के गठन के खिलाफ थे, लेकिन इस सच्चाई को कभी नकारा नहीं जा सकता है कि दुनिया में इजराइल भी एक देश है. हमें उसे मान्यता देनी होगी. नेहरू और गांधी जी के विरोध से साफ था कि वह टू नेशन थ्योरी के खिलाफ थे. वह नहीं चाहते थे कि जिस तरह हिंदुस्तान का मजहब के आधार पर बंटवारा हुआ है, वैसे ही किसी और मुल्क भी हो.

Trending news