जिन लाशों को लेने से मना कर देते हैं परिवार, उनका सहारा बनते हैं दिल्ली के 'एम्बुलेंस मैन'
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जिन लाशों को लेने से मना कर देते हैं परिवार, उनका सहारा बनते हैं दिल्ली के 'एम्बुलेंस मैन'

मल्होत्रा अस्पताल से शवों को अपनी एम्बुलेंस से शमशान घाट ले जाते हैं और पूरे रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कराते हैं.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में कोरोना से मरने वालों की बढ़ती तादाद के बीच अस्पताल से लाशों को श्मशान घाट तक पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस मिलना दुश्वार हो गया है. ऐसे में जिन लाशों को कोई हाथ नहीं लगा रहा है उनकी दिल्ली के 'एम्बुलेंस मैन' मदद कर रहे हैं.

दिल्ली के करोल बाग निवासी चिरंजीव मल्होत्रा अब तक 1200 लाशों का अंतिम संस्कार कराने में लोगों की मदद कर चुके हैं. हालांकि उनकी बेटी अपने पिता को यह काम करने के लिए रोकती है लेकिन मल्होत्रा का मानना है कि हर कोई घर बैठ जाएगा तो लोगों की मदद कौन करेगा.

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नए कोरोना मामले बढ़ने के बाद से ही मल्होत्रा हर दिन 30 से ज्यादा लाशों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं. इनमें वो लाश भी शामिल हैं, जिनका कोई नहीं होता. साथ ही ऐसी लाशों का भी अंतिम संस्कार कर रहे हैं, जिनके परिवार हाथ लगाने से डरते हैं.

चिरंजीव मल्होत्रा ने बताया कि, "हम अभी तक कोरोना के 500 से 600 शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं. इनके अलावा जो लावारिस लाश होती हैं उनका भी हम ही अंतिम संस्कार करते हैं."

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मल्होत्रा अस्पताल से शवों को अपनी एम्बुलेंस से शमशान घाट ले जाते हैं और पूरे रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कराते हैं. जिन लोगों के पास पैसों की दिक्कत होती है वह उनसे पैसे नहीं मांगते बल्कि सारा अंतिम संस्कार में इस्तेमाल होने वाला सामान खुद दिलाते हैं.

उन्होंने बताया,"पूरे के पूरे परिवार संक्रमित हैं ऐसे में वो तो हाथ लगा नहीं सकते तो हम उनकी मदद कर देते हैं, कई ऐसे लोग भी हैं जो विदेशों में रहते हैं लेकिन यहां किसी परिजन की मौत हो गई तो हम उनका भी अंतिम संस्कार कर देते हैं."

उन्होंने बताया,"हम बीते साल से ही सेवा करना शुरू की है. इसके लिए हेल्पलाइन नम्बर जारी किया हुआ है. हमने एक सन्त शिव सेवा फाउंडेशन के नाम से एनजीओ भी खोला है. हमारी सेवा बिल्कुल मुफ्त है."

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उन्होंने बताया, "हमारे 5 पास एम्बुलेंस हैं जिनका इस्तेमाल सिर्फ अंतिम संस्कार में शवों को लाने के लिए ही किया जा रहा है, अगर किसी लाश को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना है तो उसमें भी हम लोगों की मदद कर रहे हैं."

दरअसल मल्होत्रा की अपनी तार बनाने की फैक्ट्री है लेकिन इस मुश्किल घड़ी में वह लोगों की मदद करने के लिए सब कुछ छोड़ चुके हैं.

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