Dharmveer Bharti Birthday Special: 'गुनाहों का देवता' से प्रेम की नई परिभाषा गढ़ने वाला एक कालजयी रचनाकार
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Dharmveer Bharti Birthday Special: 'गुनाहों का देवता' से प्रेम की नई परिभाषा गढ़ने वाला एक कालजयी रचनाकार

Dharmveer Bharti Birthday Special: यूं तो साहित्य में प्रेम का हमेशा विशेष दर्जा हासिल रहा हैं, दुनिया की तमाम महान रचनाएं इसी प्रेम के इर्द-गिर्द रची गई हैं. मगर उन सारी रचनाओं में "गुनाहों के देवता" अलहदा रचना है. 

फाइल फोटो

Dharmveer Bharti Birthday Special: धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों के देवता को पढ़ने के बाद ही प्रेम और वासना के वास्तविक अंतर को समझा जा सकता हैं. यूं तो साहित्य में प्रेम को हमेशा विशेष दर्जा हासिल रहा हैं, दुनिया की तमाम महान रचनाएं इसी प्रेम के इर्द-गिर्द रची गई हैं. मगर उन सारी रचनाओं में "गुनाहों के देवता" अलहदा रचना है. धर्मवीर भारती ने "गुनाहों का देवता" जैसा क्लासिक उपन्यास रच उसके एक-एक पात्र को अमर कर दिया. आज भी हिंदी जानने वाला शायद कोई विरला ही प्रेमी होगा, जिसने इस रचना को पढ़ ना रोया हो. एक बार इस कथा में धंसने वाला शायद ही उससे आजतक बाहर निकल पाया हो. 

यह धर्मवीर भारती के शब्दों का जादू ही है.
सुधा, चंदर और विनती की काल्पनिक दुनिया में आदमी वास्तविक इलाहाबाद ढूंढता है. यही है धर्मवीर भारती की विशेषता. मात्र 23 साल की उम्र में धर्मवीर भारती ने इस कालजयी रचना को रच दिया. 1949 में पहली बार प्रकाशित यह उपन्यास हर पीढ़ी के युवा को समान रुप से लुभाती है. ‘गुनाहों का देवता’ वर्षों  से हिंदी की पांच सर्वाधिक बिकने वाली किताबों में शुमार होती रही है. जबकि भारती जी इसे अपनी "कलात्मक अपरिपक्वता" मानते थे. बकौल उनके इस उपन्यास को लिखना उनके लिए वैसा ही रहा हैं जैसे पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना. धर्मवीर भारती हिंदी के उन चुनिंदा रचनाकारों में से हैं जो गद्य और पद्य  पर समान रूप से अधिकार रखते थे.

चिरंजीव लाल वर्मा और चंदा देवी के पुत्र धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर 1926 में इलाहाबाद में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी हाईस्कूल में हुई थी और उच्चशिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पूरी की. डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध साहित्य पर शोध प्रबंध लिखकर उन्होंने पीएचडी पूरी की. कालेज में पढ़ाई के दौरान ही धर्मवीर भारती ने अभ्युदय और संगम नामक संस्थागत पत्रिका में दो साल काम किया. यहीं से उनके लिखने और पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो  जीवनपर्यंत चला. इस दौरान उन्होंने शैली, कीट्स, वर्डसवर्थ, टेनीसन, एमिली डिकिन्सन, एमिल जोला, गोर्की, क्युप्रिन, बालजाक, चार्ल्स डिकेन्स, दोस्तोयव्स्की, तोल्सतोय को पढ़ा.

धर्मवीर भारती का अध्ययन बहुत ही विस्तृत था.
उन्होंने अस्तित्ववाद तथा पश्चिम के दर्शनों का विशद अध्ययन किया. भारतीय दर्शन के साथ कार्ल मार्क्स की दार्शनिक रचनाएं, रिल्के की कविताओं, कामू के लेख और नाटकों, ज्यां पॉल सार्त्र की रचनाएं. साथ ही साथ महाभारत, गीता, विनोबा और लोहिया के साहित्य का भी गहराई से अध्ययन किया. गांधीजी को नई दृष्टि से समझने की कोशिश की. भारतीय संत और सूफी काव्य कबीर, जायसी और सूर को भी समझा. नाथ परंपरा और सिद्ध साहित्य को भी पढ़ा था. छात्र जीवन में परिमल जैसी साहित्यिक संस्था से भी जुड़े थे.  इस दौरान इन पर शरतचंद, जयशंकर प्रसाद और ऑस्कर वाइल्ड का बहुत प्रभाव था.

धर्मवीर भारती का बचपन आर्थिक कठिनाइयों में बीता. शायद इसी तंगहाली ने उन्हें संवेदनशील और प्रायोगिक बना दिया. धर्मवीर भारती ने अपने जीवन में विस्तृत अध्ययन और लंबी यात्रा की. दोनों का सदुपयोग उन्होंने अपनी रचनाओं में बखूबी किया. कई पुरस्कारों से सम्मानित धर्मवीर भारती को 1989 में सर्वश्रेष्ठ नाटककार का पुरस्कार, 1990 में भारत-भारती पुरस्कार और 1972 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया. 4 सितंबर, 1997 को उनकी मृत्यु हो गई.

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हिंदी साहित्य में धर्मवीर भारती की कुछ कालजयी रचनाएं हैं, जो बहुत ही चर्चित और लोकप्रिय हैं जिनमें गुनाहों का देवता, सूरज का सातवां घोड़ा, कनुप्रिया और और अंधायुग प्रमुख हैं. इन रचनाओं से शायद ही कोई साहित्य प्रेमी अपरिचित हो. धर्मवीर भारती की हर रचना अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण हैं, चाहे वह कहानी संग्रह बंद गली का आखिरी मकान हो या निबंध संग्रह ठेले पर हिमालय या जेपी पर लिखी कविता मुनादी.

किसी के लिए एक विधा में महारत हासिल करना फ़क्र की बात होती है. मगर धर्मवीर भारती एक अद्वितीय कवि, बेजोड़ कहानीकार और उत्कृष्ट उपन्यासकार होने के साथ-साथ एक सफल संपादक भी थे. उनकी संपादकीय कुशलता में ‘धर्मयुग’ हमेशा के लिए एक किंवदंती बन गई. आज भी उनके द्वारा बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की गई रिपोर्टिंग पत्रकारिता के छात्रों के लिए एक नजीर है. 1971 में अपने “धर्मयुग” साप्ताहिक के लिये बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के कवरेज के लिए वह बंग्लादेश गए थे. हिन्दी पत्रकारिता में वार रिपोर्टिंग के उन्होंने तब नये मानक गढ़ दिए थे, जिसका अनुसरण उन दिनों अंग्रेजी सहित अन्य भाषा वाले भी कर रहे थे.

धर्मयुग के जरिए अपने संपादन काल में भारती जी ने हर एक विषय को जैसे धर्म, राजनीति, साहित्य, फिल्म, कला को एक नया प्रतिमान दिया. कोई भी विषय उनसे अछूता नहीं था. धर्मयुग अपने समय के एक सफलतम पत्रिकाओं में शुमार होती थी, जिसको पढ़ने के लिए पाठक बेसब्री से इंतजार करते थे. यह हर वर्ग और आयु में लोकप्रिय थी. धर्मवीर भारती की विशेषता उनकी विविधता थी. इतनी विविधता कम ही रचनाकारों में देखने को मिलती है- कविता, कहानी, नाटक, यात्रा संस्मरण, निबंध ,आलोचना और संपादन हर विधा में उन्होंने अपना उत्कृष्ट दिया. संवेदनशीलता का तो कहना ही नहीं. एक सर्जक के रूप में उन्होंने हर विधा में क्लासिक रचा. धर्मवीर भारती का काव्य नाटक– ‘अंधा युग’ महाभारत के अंतिम दिनों की झलक दिखाती यह रचना हिंदी साहित्य की सफलतम कृतियों में से एक हैं. ठीक उसी प्रकार लघु उपन्यास 'सूरज का सातवां घोड़ा' में उनके कहानी कहने का तरीका विलक्षण है. कथानक, देशकाल और शैली की दृष्टि से यह हिंदी साहित्य का अनुपम प्रयोग था. प्रसिद्ध निर्देशक श्याम बेनेगल ने इसी शीर्षक से फिल्म भी बनाई.

 ए.निशांत

लेखक, पत्रकार और शोधार्थी हैं.

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