वह मुसलमान क्रांतिकारी जिसने अंग्रेजों के खिलाफ जारी किया था फतवा, हुई थी काला पानी की सजा
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam1291110

वह मुसलमान क्रांतिकारी जिसने अंग्रेजों के खिलाफ जारी किया था फतवा, हुई थी काला पानी की सजा

कई मुस्लिम स्वतंत्रा सेनानिओं ने देश की आजादी के लिए कई तरह से आपना योगदान दिया था. अल्लामा फ़ज़ले-हक़ खैराबादी भी उनमें से एक हैं. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ फतवा जारी किया था. उन्होंने कहा था कि 'अंग्रेजों का देश में रहना हराम है."

Fatwa

अंग्रेजों के अत्याचारों से परेशान हो कर मुसलमानों को जागरुक करने के लिए अल्लामा फज़ले हक खैराबादी ने अंग्रेजों के खिलाफ पहला फतवा जारी किया था. फतवे में अल्लामा ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे विद्रोहों में शामिल होने की अपील की.

अल्लामा फ़ज़ले-हक़ खैराबादी 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारी थे. अल्लामा तर्कशास्त्री, उर्दू अरबी और फारसी के प्रसिद्ध शायर भी थे. अल्लामा का जन्म 1797 में उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के खैराबाद में हुआ था.

उन्होंने धार्मिक रीति रिवाजों से शिक्षा प्राप्त की थी. फिर खैराबाद में अध्यापन कार्य करने लगे थे. 19 साल की आयु में 1816 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार में नौकरी शुरू कर दी. पर 1831 आते आते उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और दिल्ली के मुग़ल दरबार में कामकाज देखने लगे.

लेकिन 1857 के दौर में उन्होंने कुछ ऐसा किया जिससे उनका नाम इतिहास के पन्नों में जुड़ गया. 1857 के दौरान जब अंग्रेजों की बनाई ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने अत्याचारों का बांद तोड़ दिया. तब अंग्रेजों के खिलाफ हिन्दुस्तान के राजा-महाराजाओं, महारानियो तथा मौलवियों ने अपनी कमान संभाली. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की योजना शुरू की. यह विद्रोह मुग़ल सम्राट बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में हो रहा था. लेकिन इस विद्रोह में महत्वपुर्न भुमिका  अल्लामा फज़ले हक खैराबादी ने निभाई थी.

यह भी पढ़ें: Jagdeep Dhankhar: जानें कौन हैं उपराष्ट्रपति पद के मजबूत दावेदार जगदीप धनखड़

मौलाना ने अंग्रेजों के खिलाफ मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए एक फतवा जारी किया, फतवे में लिखा कि अंग्रेजों का देश में रहना हराम है. इस फतवे ने आग में घी डालने का काम किया और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. हालांकि इसका फायदा मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर व अन्य विद्रोही नेताओं को मिला. और मौलाना को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा, अंग्रेज उनके पीछे पड़ गए और उनकी तलाश करने लगें.

1857 की क्रांति असफल होने के बाद मौलाना किसी तरह बचते बचाते दिल्ली से खैराबाद पहुंचे. लेकिन 30 जनवरी 1859 को खैराबाद में ही अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. मौलाना के ऊपर लखनऊ सेंशन कोर्ट में मुकदमा चला. मुकदमें की पैरवी मौलाना ने खुद की और कहा- हॉ वह फतवा सही है, वह मेरा लिखा हुआ था और आज भी मैं अपने फतवे पर कायम हूं.

आरोपों को कुबुल करने के कारण उन्हें काला पानी की सज़ा सुना दी गई और उनकी सारी जायदाद ज़ब्त कर ली गई. लगभग दो साल कैद में रहने के बाद 20 अगस्त 1861 को अंडमान निकोबार (सेलुलर जेल) में उनका निधन हो गया.

इसी तरह की और खबरों को पढ़ने के लिए Zeesalaam.in पर विजिट करें.

Trending news