बीबीसी ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वृत्तचित्र बनाया है. भारत समेत ब्रिटेन में इस पर विवाद हो रहा है. भारत के कई न्यायधीशों और नौकरशाहों ने इसकी निंदा की है.
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बीबीसी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनाई गई वृत्तचित्र श्रृंखला की शनिवार को 302 पूर्व न्यायाधीशों, पूर्व नौकरशाहों और पूर्व सैन्य अधिकारियों के समूह ने निंदा की. उन्होंने कहा कि यह ''हमारे नेता, साथी भारतीय और एक देशभक्त'' के खिलाफ पक्षपातपूर्ण आरोप पत्र है, जिसमें नकारात्मकता और पूर्वाग्रह भरा है.
इन लोगों ने दावा किया कि यह भारत में अतीत के ब्रिटिश साम्राज्यवाद का मूल रूप है, जो खुद को हिंदू-मुस्लिम तनाव को दोबारा जिंदा करने के लिए न्यायाधीश और जूरी को भी इसमें शामिल करता है. यह ब्रिटिश राज की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का हिस्सा था. बीबीसी के दो कड़ियों वाले वृत्तचित्र ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ में दावा किया गया है कि इसमें 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित कुछ खास पहलुओं की पड़ताल की गई, जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे.
सूत्रों के मुताबिक, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी के यूट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट साझा करने वाले विभिन्न लिंक को अवरुद्ध करने के निर्देश जारी किए हैं. तेरह पूर्व न्यायाधीशों, राजनयिकों सहित 133 पूर्व-नौकरशाहों और 156 पूर्व सैन्य अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया है कि यह वृत्तचित्र एक तटस्थ समालोचना नहीं है. इसमें कहा गया, "अब तक हमने जो देखा है, उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि बीबीसी की श्रृंखला भ्रमपूर्ण और स्पष्ट रूप से असंतुलित रिपोर्टिंग पर आधारित है. यह एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक राष्ट्र, एक राष्ट्र जो भारत के लोगों की इच्छा के अनुसार कार्य करता है, के रूप में भारत के अस्तित्व के 75 साल पुराने ढांचे के आधार पर सवाल उठाता है."
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, पूर्व गृह सचिव एल सी गोयल, पूर्व विदेश सचिव शशांक, रॉ के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठी और एनआईए के पूर्व निदेशक योगेश चंद्र मोदी शामिल हैं.
बयान में कहा गया, "भले ही आपने एक भारतीय के रूप में किसी को भी वोट दिया हो, भारत के प्रधानमंत्री आपके देश, हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं. हम उनके बारे में किसी को भी खोखले तर्क देने और पूर्वाग्रह से पूर्ण बात करने की अनुमति नहीं दे सकते." इसमें आरोप लगाया गया कि बीबीसी की श्रृंखला पक्षपात से प्रेरित, निराधार और नापाक है. बयान में कहा गया कि वृत्तचित्र में इस मुख्य तथ्य को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है कि भारत का उच्चतम न्यायालय 2002 के गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की किसी भी भूमिका को स्पष्ट रूप से खारिज कर चुका है, और तत्कालीन राज्य सरकार पर लगे मिलीभगत और निष्क्रियता के आरोपों को भी खारिज कर चुका है. उच्चतम न्यायालय ने वर्षों की जाँच के बाद, उसके द्वारा नियुक्त विशेष जाँच दल की ‘क्लोजर रिपोर्ट’ को बरकरार रखा था.
बयान में कहा गया कि अदालत ने आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट सहित तत्कालीन पुलिस अधिकारियों और भाजपा नेता हरेन पंड्या द्वारा किए गए "अति-सनसनीखेज खुलासे" के आधार पर मोदी और अन्य के खिलाफ लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया था. इसमें उल्लेख किया गया है कि अदालत ने कहा था कि यह "झूठ से भरा होने के बावजूद मामले को सनसनीखेज और राजनीतिक बनाने के लिए किया गया था."
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