रोज पानी लाने में लगते हैं 10 घंटे; इस वजह से स्कूल छोड़ रही हैं धरती के स्वर्ग की लड़कियां
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रोज पानी लाने में लगते हैं 10 घंटे; इस वजह से स्कूल छोड़ रही हैं धरती के स्वर्ग की लड़कियां

जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के भद्रवाह उप-मंडल में मिसराता पंचायत का चेनारा गांव इन दिनों भीषण पेयजल संकट से गुजर रहा है. लोगों के पास पीने के लिए पानी नहीं है. घरों की लड़कियां और महिलाएं दिन भर पानी के इंतजाम में लगी रहती है, जिस वजह से स्कूलों में लड़कियांे का ड्राॅपआउट रेट बढ़ गया है. 

 

अलामती तस्वीर

भद्रवाहः जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के डोडा जिले (Doda District) में पीने के पानी की भारी कमी (Drinking Water Crisis) के बीच कई आदिवासी लड़कियों (Scheduled Tribes Girls )ने पिछले दो वर्षों में अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. चेनारा गांव अंतर्गत आता है, जो डोडा जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर दूर है. यहां गुज्जर आबादी (Gujjar Population) रहती है, जो गरीबी रेखा से नीचे आती है. कम बारिश की वजह से प्राकृतिक जल संसाधनों (Natural Water Resources ) के सूख जाने के चलते यह इलाका पिछले दो सालों से गंभीर जल संकट से जूझ रहा है. लड़कियों ने दावा किया कि पानी की अनुपलब्धता ने उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर किया, जबकि एक अफसर ने कहा कि गांव को जल्द ही जल जीवन मिशन (JJM) के तहत कवर किया जाएगा. हालांकि, अधिकारी ने कहा कि परियोजना को लागू करने और ग्रामीणों को पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने में कुछ वक्त लगेगा.

रोजना मीलों चलकर गंदा पानी लाती है लड़कियां 
ग्रामीणों के मुताबिक, महिलाओं और विशेषकर लड़कियों को अपने और अपने मवेशियों के लिए पानी इकट्ठा करने की खातिर हर दिन घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है. उन्होंने कहा कि कई मौकों पर वे गंदा पानी लेकर लौटती हैं और इसे पीने योग्य बनाने के लिए काफी ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है. रुबीना बानो (18) कहती हैं, ’’मुझे पढ़ाई का शौक है और बड़ी मुश्किल से मैंने 12वीं तक पढ़ाई की. हालांकि, मैंने पिछले साल अपने परिवार की खातिर पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि मुझे हर दिन पानी इकट्ठा करना पड़ता था, जिसके चलते पढ़ाई के लिए माकूल वक्त नहीं मिल पा रहा था.’’ 

पानी का इंतजाम करने में नहीं मिल पाता स्कूल जाने का वक्त 
बानो ने कहा कि उनकी जैसी लड़कियों के पास पढ़ाई छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उन्हें दूर-दराज के इलाकों से पानी खोजने और लाने में हर दिन घंटों खर्च करने पड़ते हैं. बानो की बात से सहमति जताते हुए 16 वर्षीय फातिमा ने कहा कि उसने दो बार आठवीं की परीक्षा दी, लेकिन पढ़ाई के लिए वक्त की कमी की वजह से दोनों मौकों पर पास नहीं हो पाई. गांव की एक तीसरी लड़की फातिमा ने कहा, “मेरे खराब प्रदर्शन का कारण काफी हद तक यह था कि मैं हर दिन पढ़ाई के बजाय पानी लाने पर घंटों खर्च कर देती थी. मैं दोबारा परीक्षा नहीं देना चाहती क्योंकि मुझे नहीं लगता कि मैं इस बार भी कुछ बेहतर कर पाउंगी.’’ 

रोजाना आठ से 10 घंटे पानी लाने में बिताती हैं गांव की लड़कियां 
स्थानीय निवासी अब्दुल राशिद गुज्जर ने कहा कि जब घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति नहीं की जाती, तो इसे लाने का बोझ महिलाओं और बच्चों, खासकर लड़कियों पर ज्यादा पड़ता है. गुज्जर ने कहा कि इन हालात ने लड़कियों की शिक्षा पर गंभीर असर डाला है क्योंकि ऐसी कम से कम 15 लड़कियों ने पिछले दो सालों में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी है. गुज्जर की बेटी नाजिया पांचवीं कक्षा में थी, लेकिन हाल में उसने पढ़ाई छोड़ दी. उन्होंने कहा कि लड़कियां रोजाना लगभग आठ से 10 घंटे पानी लाने में बिताती हैं जो उनके बहुमूल्य समय की भारी बर्बादी है.

स्थानीय नेता ने प्रशासन पर लगाया समस्या को न सुलझाने का इल्जाम 
इस बीच, जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के जिला युवा सद्र राशिद चैधरी ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए गांव के विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों के साथ विभिन्न सरकारी कार्यालयों में जाने का दावा किया. हालांकि, उन्होंने जल शक्ति विभाग पर ग्रामीणों की समस्याओं को ठंडे बस्ते में डालने का इल्जाम भी लगाया है. उन्होंने दावा किया कि हमें हैरात हुई जब जल शक्ति विभाग के संबंधित सहायक कार्यकारी अभियंता ने धैर्यपूर्वक हमारी बात सुनने के बजाय आक्रामक हो गए और चिल्लाते हुए कहा कि उनके पास पानी उपलब्ध कराने के लिए जादू की छड़ी नहीं है.

प्रशासन भी मानता है अपनी नाकामी 
मिसराता पंचायत के सरपंच सतीश कोतवाल ने कहा कि गांव पिछले दो वर्षों से गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है और अब तक स्थानीय निवासियों की पीड़ा को कम करने के लिए अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है. कार्यपालक अभियंता, जल शक्ति विभाग, डोडा हरजीत सिंह ने कहा कि फील्ड स्टाफ की रिपोर्ट के मुताबिक गांव में पाइप से पानी की आपूर्ति नहीं है. उन्होंने कहा कि एक विस्तृत परियोजना के लिए, मैं वहां एक टीम भेजूंगा और जेजेएम के तहत गांव को पीने का पानी उपलब्ध कराने की कोशिश करूंगा, लेकिन परियोजना को लागू करने और उन्हें पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने में कुछ वक्त लगेगा.

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