Mulayam Death:अखाड़े से लेकर सियासत के मैदान तक विरोधियों को पटखनी देते रहे मुलायम
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam1389222

Mulayam Death:अखाड़े से लेकर सियासत के मैदान तक विरोधियों को पटखनी देते रहे मुलायम

Mulayam Singh Yadav Death: 1965 में  एक कुश्ती मुकाबले ने मुलायम सिंह की ज़िंदगी बदल कर रख दी थी.  मुलायम सिंह यादव सियासी जिंदगी की शुरुआत में माली हालात से मजबूत नहीं थे. पहलवानी और मास्टरी छोड़ने के बाद उन्होंने पूरी तरह से सियासत में आने का फैसला लिया था..
 

मुलायम सिंह यादव

लखनऊ:  समाजवादी पार्टी (SP) के  संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav)  सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आखिरी सांस ली. कभी कुश्ती के अखाड़े के महारथी रहे मुलायम सिंह यादव बाद में  सियासी अखाड़े के भी माहिर पहलवान साबित हुए.  वो अपने समर्थकों के बीच हमेशा ‘नेता जी’ के नाम से मशहूर रहे. 
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में एक किसान परिवार में 22 नवंबर 1939 को पैदा हुए मुलायम सिंह यादव ने राज्य का सबसे प्रमुख सियासी कुनबा भी बनाया. वो 10 बार विधायक रहे और सात बार सांसद चुने गए. तीन बार (वर्ष 1989-91, 1993-95 और 2003-2007) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और 1996 से 98 तक देश के रक्षा मंत्री भी रहे. एक वक़्त में उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा गया था.  उनका पूरा जीवन संघर्षों और विविधताओं से भरा रहा. उनकी आम  ज़िन्दगी से लेकर सियासत के किस्से हमेशा उनके चाहने वालों को प्रेरित करते रहेंगे. यहां पेश है नेता जी की ज़िन्दगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से; 

मुलायम सिंह ने इंस्पेक्टर को उठाकर मंच पर पटक दिया था
1960 में मैनपुरी के जैन इंटर कॉलेज में शायरों की तकरीब में शायर दामोदर सरकार के खिलाफ कविता पढ़ रहे थे. आडियंस  के बीच बैठा 21 साल का पहलवान दौड़ते हुए मंच पर पहुंचा.10 सेकेंड में इंस्पेक्टर को उठाकर मंच पर पटक दिया. ये नौजवान कोई और नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव थे.

महज़ 28 की उम्र में एमएलए बन असेंबली पहुंचे
1967 में नत्थू सिंह यादव ने मुलायम सिंह को चुनाव लड़वाने के लिए अपनी जसवंतनगर की सीट छोड़ दी थी.1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर सबसे कम उम्र में उन्होंने विधायक बनकर दमदार तरीके से अपने सियासी करियर का आग़ाज़ किया. महज़ 28 की उम्र में वो विधायक बन विधानसभा पहुंचे.नत्थू सिंह यादव को मुलायम सिंह का सियासी उस्ताद भी कहा जाता है.

लोहिया को अपना आइडियल मानते थे मुलायम सिंह
मुलायम सिंह यादव का राजनीति में बचपन से ही रूझान रहा, सकारात्मक प्रतिभा के धनी मुलायम सिंह यादव समाजवादी नेता लोहिया की बातों को बड़ी गौर से सुना करते थे. इसलिए मुलायम ने बचपन से ही लोहिया को अपना आदर्श मान लिया था. मुलायम सिंह यादव लोहिया के भाषणों को पूरी गहराई के साथ पढ़ते और सुनते थे. लोहिया के समर्थन में होने वाली रैलियों में हिस्सा लेते थे, इतना ही नहीं सियासत में साख जमाने के लिए मुलायम सिंह यादव पार्टी विधायकों के शागिर्द बनकर राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने लेगे. उस दौरान जब फर्रुखाबाद में लोकसभा का चुनाव हुआ तो मुलायम सिंह यादव ने लोहिया के प्रचार के लिए भी आगे आए. तब पहली बार राम मनोहर लोहिया मुलायम सिंह से प्रभावित हुए और उन्हें अपना शिष्य बना लिया..

राममनोहर लोहिया के भरोसे पर खरे उतरे मुलायम सिंह
मुलायम सिंह ने राममनोहर लोहिया के भरोसे पर खरा उतर कर दिखाया. और दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के खास को अपने पहले ही चुनावी बिगुल में करारी शिकस्त दी. कम ही लोग जानते हैं कि नन्हें नेपोलियन का खिताब चौधरी चरण सिंह ने ही मुलायम से को दिया था..

1967 में मुलायम ने छुआछूत की मुख़ालिफ़त की थी
1967 में जब छुआछूत चरम पर थी, तब मुलायम ने इस व्यवस्था का जमकर विरोध किया था. उस दौरान राजनीति में सक्रिये भूमिका निभाते हुए मुलायम सिंह यादव जसवंत नगर सीट पर 1968, 1974 और 1977 में हुए मध्यावधि चुनाव में सामने वाले प्रतिद्वंदी को धूल चटा दी थी. तब मुलायम सिंह के राजनीतिक गुरु और जसवंत नगर के पूर्व विधायक नाथू सिंह ने नेताजी को धरतीपुत्र के नाम से नवाजा था..

1980 में फ़र्ज़ी एनकाउंटर के ख़िलाफ़ थे मुलायम
1980 में वीपी सिंह की सरकार जब डकैतों के ख़िलाफ़ मुहिम चला रही थी. तब फ़र्ज़ी एनकाउंटर के नाम पर कई लोगों को निशाना बनाया गया. उस वक्त मुलायम ने इसके खिलाफ आवाज उठाई. इसी वजह से वो काफ़ी परेशान भी रहे. तब चरण सिंह ने उनको दो बड़े ओहदे से नवाजा, लीडर अपोजिशन और रियासती सद्र बनाया. उन्होंने मुलायम को अपना एग्जक्यूटिव भी माना.

मुलायम सिंह ने खुद के क़त्ल का किया था ऐलान
एक बार मुलायम सिंह ने खुद के कत्ल का ऐलान कर दिया था. 4 मार्च 1984 की बात है. रैली के बाद वो मैनपुरी में अपने एक दोस्त से मिलने गए.. उनकी गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई.. नेताजी तुरंत समझ गए कि उनके कत्ल की साजिश की गई है. उन्होंने अपने हिमायतियों से कहा कि वो जोर-जोर से चिल्लाएं 'गोली लग गई. नेताजी नहीं रहे.' जब नेताजी के सभी हिमायतियों  ने ये चिल्लाना शुरू किया तो हमलावरों को लगा कि नेताजी सच में मर गए. मुलायम सिंह को मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां चलाना बंद कर दीं और वहां से भागने लगे.

1990 में मुख़ालिफ़ीन ने मुलायम को ‘मुल्ला मुलायम’ कहा
1990 में VHP और बजरंग दल कारकुनान ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा की. 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई. कारसेवक पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे. मुलायम सिंह ने सख्त फैसला लेते हुए इंतजामिया को गोली चलाने का आर्डर दिया. जिसमें कई कारसेवकों की मौत हो गई. कारसेवकों पर गोली चलवाने के फैसले ने मुलायम को हिंदू मुखालिफ बना दिया. मुखालिफीन ने उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ बता डाला.

 'मिले मुलायम और कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम'
1992 में बाबरी के तबाही के बाद मुलायम ने लोहिया के प्लान को अमल में लाने का काम शुरू किया. मुलायम ने कांशीराम के साथ इत्तेहाद का ऐलान कर दिया. मुलायम के इस मास्टर स्ट्रोक का असर चुनावी रिजल्ट पर भी दिखा. 422 सीटों वाली विधानसभा में सपा-बसपा इत्तेहाद को 176 सीटें मिली.. जबकि बीजेपी बहुमत से दूर हो गई. मुलायम ने दीगर छोटे दलों को साथ मिलाकर इक्तेदार में वापसी कर ली. तब एक स्लोगन काफी चर्चा में रहा- 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम'.

कांग्रेस के नस्लवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की
समाजवादी पार्टी के बानी मुलायम सिंह यादव का सियासी सफर बहुत दिलचस्प रहा.1980 के दशक में मुलायम सिंह यादव ने अपने सियासी आका चरण सिंह के साथ मिलकर कांग्रेस के नस्लवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की. ये वो दौर था जब पूरे देश में कांग्रेस का दबदबा था. उस दौर में राष्ट्रीय लोकदल में मुलायम सिंह यादव का जबरदस्त असर था, लेकिन अजित सिंह को पार्टी की कमान देने से मुलायम सिंह यादव काफ़ी नाराज़ थे. इसके बाद लोकदल से अलग हुए एक धड़े के साथ पिछड़ों, दलितों और मज़दूर-किसानों के मुद्दों पर सियासत करने के वादे के साथ 4 अक्टूबर को उन्होंने पार्टी बनाई.

ऐसी ही दिलचस्प खबरों के लिए विजिट करें zeesalaam.in 

Trending news