Ramadan 2024: इस्लाम में रोजा किसी भी हालत में माफ नहीं है, ऐसे में अगर किसी वजह से रोजे छूट जाते हैं, तो उसकी कजा या कफ्फारा है. आइए इसके बारे में जानते हैं.
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Ramadan 2024: रमजान का पाक महीना चल रहा है. तकरीबन हर मुसलिम रोजा रह रहा हैं. इस्लाम में रोजों की बड़ी फजीलत है. इस्लाम की बुनियाद जिन चीजों पर टिकी है, उनमें से रोजा एक है. रोजा हर मुसलमान पर फर्ज है. लेकिन इंसान के साथ कुछ ऐसे मसाएल आ जाते हैं, जिसके चलते इंसान को रोजा छोड़ना पड़ जाता है. रोजा छोड़ने पर उसकी कजा है, इसके साथ इसका कफ्फारा यानी कि दंड भी अदा करने होता है. आइए इसके बारे में जानते हैं.
रोजे की भरपाई
अगर कभी सफर, बीमारी या माहवारी की वजह से रोजा छूट जाता है, तो इन रोजों को रमजान के बाद एक फर्ज रोजे के बदले एक रोजा रहने का हुक्म दिया गया है. इसके लिए तसलसुल जरूरी नहीं. यानि कि गैप करके भी रोजा रह सकते हैं.
इन मामलों में रोजों की कजा जरूरी नहीं
अगर कोई शख्स जिंदा है और वह रोजा रखने की कुव्वत नहीं रखता है, तो उसके बदले रोजाना एक गरीब को खाना खिलाना तो जरूरी है, लेकिन अगर वह मर जाता है, तो उसकी तरफ से रोजों की कजा जरूरी नहीं है.
वारिस रखें रोजे
अगर किसी शख्स के जिम्मे नजर के रोजे यानी मन्नत के रोजे हों और वह जिंदगी में न रह सके, तो उसकी कजा उसके वारिसों के लिए जरूरी है. इस बारे में एक हदीस है कि "जो शख्स मर जाए और उसके जिम्मे रोजे हों तो वारिस उसकी तरफ से रोजे रखे."
इस हालत में कजा जरूरी
अगर किसी शख्स ने बीमारी की वजह से रमजान के रोजे छोड़ दिए लेकिन उसने सेहतमंद होकर भी रमजान के बाद रोजे रखने में सुस्ती की और मर गया तो उसके वारिस को रोजा रखना होगा. इसी तरह से जिसने सफर की वजह से रोजा छोड़ा और रमजान के बाद उसे रखने में सुस्ती की और मर गया उसकी अदाएगी भी उनके वारिस करेंगे.
कफ्फारा अदा करें
मुफ्ती मोहम्मद इरफान बताते हैं कि जिस शख्स पर रोजे फर्ज होने की शर्त है, लेकिन उनकी जानकारी में उसके जिस्म में ताकत और कुव्वत देने वाली कोई गिजा-दवा चली गई या फिर हमबिसतरी की, तो उनको इसका कफ्फारा अदा करना होगा. इसके लिए रमजान के बाद बिला नागा 60 दिन तक रोजे रखने होंगे या फिर 60 गरीबों को खाना खिलाना होगा.