सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयन्तीः कौन उठाएगा नेता जी की मौत के रहस्य से पर्दा?
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सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयन्तीः कौन उठाएगा नेता जी की मौत के रहस्य से पर्दा?

Netaji Subhash Chandra Bose Birthday Anniversary: नेता जी एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी चर्चा उनकी जिंदगी से ज्यादा उनकी मौत के बाद हो रही है. इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित करने का केंद्र सरकार का फैसला, ऐसे वक्त में आया हैं, जब पूरे देश में आजादी का अमृत उत्सव महोत्सव मनाया जा रहा हैं. 

सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयन्तीः कौन उठाएगा नेता जी की मौत के रहस्य से पर्दा?

Subhas Chandra Bose 125th birth anniversary: नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आज यानी 23 जनवरी को 125वीं जयन्ती है. केंद्र की भाजपा सरकार ने नेता जी की याद और उनके सम्मान में पिछले साल 2021 में हर साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 जनवरी 2022 को नई दिल्ली में इंडया गेट के पास नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण करेंगे. यहां 28 फीट ऊंची और 6फीट चैड़ी नेताजी की प्रतिमा स्थापित की जाएगी और यह व्यवस्था तब तक रहेगी जब तक ग्रेनाइट की स्थाई प्रतिमा स्थापित न हो जाए. 

ऐसे नेता जिनकी चर्चा उनकी जिंदगी से ज्यादा उनकी मौत के बाद हो रही 
नेता जी एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी चर्चा उनकी जिंदगी से ज्यादा उनकी मौत के बाद हो रही है. इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित करने का केंद्र सरकार का फैसला, ऐसे वक्त में आया हैं, जब पूरे देश में आजादी का अमृत उत्सव महोत्सव मनाया जा रहा हैं. 

सुभाष चंद्र बोस के हवाई दुर्घटना का सच क्या हैं ? 
सुभाष चंद्र बोस भारतीय इतिहास के एक ऐसे नायक हैं, जिनका जिंदगी के किस्से और कहानियां हर पीढ़ी के लोगों में एक कौतुहल के साथ रोमांच पैदा करता रहा है. हालांकि ये भी सच है कि उनसे जुड़ी घटनाओं में भ्रांतियां और अफवाहों का भी समावेश रहा है. उनसे जुड़े राज आज भी हर पीढ़ी को रोमांचित कर एक नई बहस को जन्म देते रहे हैं. नई पीढ़ी आज भी जानना चाहती हैं, आखिर सुभाष चंद्र बोस के हवाई दुर्घटना का सच क्या हैं ? यह एक महज हादसा था या एक सुनियोजित षड्यंत्र? अगर यह एक घटना थी तो ताइवान सरकार का वह दावा कि उस दिन उसके हवाई क्षेत्र में कोई वारदात ही नहीं हुई थी या फ्रांसीसी खुफिया एजेंसी का वह दावा कि नेताजी हवाई दुर्घटना में नहीं मरे; इनमें कौन सही है?  कुछ साल पहले फ्रेंच इतिहासकार जे बी पी मोरे ने, 11 दिसंबर 1947 की एक फ्रेंच सीक्रेट सर्विस रिपोर्ट के आधार पर कहा था कि, नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि वे 1947 तक जिंदा थे. रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि वह भारतीय स्वतंत्रता लीग के पूर्व प्रमुख थे और एक जापानी संगठन हारीरी किकान के सदस्य भी थे, जबकि ब्रिटिश और फिर भारत सरकार नेता जी के विमान हादसे में मौत को ही सच मानती हैं. हालांकि फ्रांसीसी सरकार ने कभी इन दावों का समर्थन नहीं किया. नेताजी के परिवार की भारत की खुफिया एजेंसियों द्वारा जासूसी संबंधित दस्तावेज और भारतीय नागरिकों द्वारा आजाद हिंद फौज को दान किए गए सोना और पैसा, जिसकी उस समय अनुमानित कीमत तकरीबन दो करोड़ थी, के भी 9 अक्टूबर 1978 को जांच का मामला उठाया गया लेकिन यह सच भी कभी सामने नहीं आ पाया. इन सबके अलावा लंबे समय तक फैजाबाद के गुमनाम बाबा को भी नेताजी से जोड़कर देखा जाता रहा. चश्मदीदों के मुताबिक गुमनाम बाबा फराटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और जर्मन बोलते थे. 1985 में जब गुमनाम बाबा मरे तो, उनका सामान देखकर सब दंग रह गए. उनकी निजी वस्तुओं में महंगी सिगरेट, शराब, रोलेक्स की घड़ी, आजाद हिंद फौज का यूनिफार्म, उस दौरान के अखबारों और पत्रिकाओं में छपे नेताजी से संबंधित कतरनों के साथ-साथ नेताजी की निजी तस्वीर भी मिली. यह तमाम बातें किसी भी आम आदमी को सोचने पर मजबूर कर देती हैं, कि आखिर वह कौन सा राज हैं, जो नेताजी के साथ ही दफन हो गया?

चर्चा में नेताजी
दिल्ली चलो का नारा देने वाले नेताजी को खुद दिल्ली पहुंचने में 75 वर्ष लग लग गए. नेताजी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने आजाद हिंद फौज के सैनिकों को ’दिल्ली चलो’ का नारा दिया था और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व काॅमनवेल्थ सेना से जमकर मोर्चा लिया था. उस वक्त आजाद हिंद के सैनिक इंफाल और कोहिमा तक पहुंच गए थे और अंडमान निकोबार को भी अपने कब्जे में ले लिया था. ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर क्लिमेंट एटली ने स्वीकार किया था और कहा था कि नेताजी के आक्रामक मुहिम के कारण ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत को आजाद करने का प्रस्ताव रखाना पड़ा था. नेताजी ने भारत की आजादी के लिए विदेशी नेताओं से ब्रिटिश सरकार पर दबाव डलवाने के लिए इटली के मुसोलिनी और जर्मनी के हिटलर जैसे चर्चित फासिस्ट नेताओं से मुलाकात की थी. वह आयरलैंड के एमान डे वालेरा समेत वहां दुनिया भर के कई प्रसिद्ध नेताओं और बुद्धिजीवियों के संपर्क में थे. नेताजी जापानी सेना के साथ मिलकर जिस कूटनीतिक ढंग से ब्रिटिश हुकूमत को दुनिया भर में घेर रहे थे, उससे  वह अंग्रेजों के निशाने पर आ गए थे. उस वक्त रूसी नेता स्टालिन भी उनसे नाराज हो गए थे. चर्चित नेता सुब्रमण्यम स्वामी नेताजी की हत्या में स्टालिन का हाथ बताते रहे हैं और पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी कटघरे में खड़ा करते रहे हैं. इस बात को बल इसलिए मिलता हैं कि, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन पंडित विजयालक्ष्मी का वह बयान ,जिसे कभी सार्वजनिक नहीं होने दिया गया. विजयलक्ष्मी पंडित 1947 से 1949 तक सोवियत संघ में भारत की राजदूत थीं.

कई आयोग का गठन हुआ
16 जनवरी 2014 (गुरुवार) को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने नेता जी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये विशेष पीठ के गठन का आदेश दिया था. सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक, सुभाष चंद्र बोस की मौत 18 अगस्त 1945 को एक विमान हादसे में हुई. कहा जाता हैं कि सुभाष चंद्र बोस जिस विमान से मंचुरिया जा रहे थे, वह रास्ते में लापता हो गया. जापान के एक विमान हादसे में नेताजी शिकार हो गए तब जापान अधिकृत फोरमोसा में हुई थी, जो वर्तमान ताइवान हैं.  उनके विमान के लापता होने से ही कई सवाल खड़े हो गए कि क्या विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था? क्या सुभाष चंद्र बोस की मौत एक हादसा थी या यह सुनियोजित राजनीतिक हत्या? नेताजी की मौत के रहस्य को लेकर तीन बार आयोग का गठन हो चुका है मगर नतीजा सिफर ही रहा. 1956 में गठित शहनवाज कमेटी, 1970 में बनी खोसला आयोग, 1999 में गठित मुखर्जी आयोग और इस विषय को लेकर तमाम किताबें, डॉक्यूमेंट्री, फिल्में और किस्से भी हैं, सिवाय इस पुख्ता सच के कि आखिर नेता जी के साथ क्या हुआ था ? हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे नेताजी, दुनिया के लिए मरे या लापता हो गए, यह रहस्य शायद ही कभी सुलझ पाएगा ? बस अटकलों के आधार पर आने वाली पीढ़ी इस गुत्थी में उलझी रहेगी.

नेताजी पर फिल्म और किताब
नेताजी पर तमाम सराहनीय पुस्तकें लिखी गई हैं. सुभाष चंद्र बोस की मौत पर अनुज धर की ’इंडियाज बिगेस्ट कवरअप’ उनसे जुड़े तमाम बिंदुओं पर प्रकाश डालती हैं. नेताजी के प्रपौत्र सुगाता बोस ’हिज मैजेस्टीज अपोनेंट’ भारत सरकार द्वारा बोस परिवार की जासूसी पर सवाल खड़े करती हैं. तो कर्नल ह्यूग टोए ‘द स्प्रिंग टाइगर’ में आजाद हिंद फौज को मिले दान का जिक्र किया गया हैं. चंद्रचूर घोष की बोस ’अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इनकन्वेनिएंट नेशनलिस्ट’ में तमाम बातों का जिक्र किया गया हैं. अनिता बोस फाफ ने अपने पिता सुभाष चंद्र बोस  की जीवनी पर आधारित पुस्तक ’नेताजी सुभाषचन्द्र बोस एण्ड जर्मनी’   में उनसे जुड़े तथ्यों का रोचक ढंग से जिक्र किया हैं. वरिष्ठ पत्रकार संजय श्रीवास्तव की ’सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा’ भी प्रमाणिक तथ्यों के आधार पर लिखी गई है.

नेताजी पर चर्चित फिल्में 
1950 में बनी ’समाधि’, 1966 में बनी ’सुभाष चंद्र’ , 2004 में बनी ’नेताजी सुभाष चंद्र बोसः ए फॉरगॉटेन हीरो’, 2011में बनी ’अमि सुभाष बोल्छी’ , 2017 में बनी ’बोस डेड और अलाइव’ 2019 में बनी ’गुमनामी’ और 2020 में बनी वेब सीरीज ’ए फॉरगॉटेन आर्मी’ प्रमुख हैं. 

ए.निशांत
लेखक पत्रकार हैं. यहां वयक्त विचार उनके निजी विचार हैं. 

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