New book launches The Taliban and I: दिवंगत भारतीय लेखिका सुष्मिता बंद्योपाध्याय की किताब ‘‘द तालिबान एंड आई’’ (The Taliban and I) का अंग्रेजी अनुवाद ‘वेस्टलैंड बुक्स’ ने जारी किया है, जिनकी 2013 में तालिबानी आतंकवादियों ने अफगानिस्तान में हत्या कर दी थी.
Trending Photos
नई दिल्लीः प्रकाशक ‘वेस्टलैंड बुक्स’ ने बुधवार को ऐलान किया है कि मरहूम भारतीय लेखिका सुष्मिता बंद्योपाध्याय के बांग्ला में लिखे संस्मरण ‘‘मुल्ला उमर, तालिबान ओ अमी’’ का अंग्रेजी तर्जुमा (The Taliban and I) बाजार में आ गया है. मूल रूप से साल 2000 में प्रकाशित किताब के अंग्रेजी संस्करण ‘द तालिबान एंड आई’ का तर्जुमा पुरस्कार विजेता अनुवादक अरुणव सिन्हा ने किया है.
1980 के दशक के आखिर में अफगानिस्तान में तालिबान के साथ बंद्योपाध्याय का जो आमना-सामना हुआ था, इस किताब में उसका जिक्र किया गया है.
गौरतलब है कि बंद्योपाध्याय की शादी 1988 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक अफगानी कारोबारी जांबाज खान से हुई थी और इसके ठीक बाद वे अफगानिस्तान चले गए, जहां 2013 में तालिबानी आतंकवादियों ने बंद्योपाध्याय की गोली मारकर कत्ल कर दिया. बंद्योपाध्याय उस वक्त 49 साल की थीं.
अरुणव सिन्हा ने कहा, ‘‘मैं सुष्मिता बंद्योपाध्याय की किताब में उनकी जिंदगी के बारे में जानकर स्तब्ध और दुखी हुआ. यह याद दिलाती है कि एक महिला उत्पीड़न के सामने कितनी साहसी हो सकती है.’’
तालिबान ने उन्हें अफगान महिलाओं के लिए तयशुदा दमनकारी नियमों के तहत बांधने की कोशिश की थी, लेकिन वह उनके आगे नहीं झुकीं और 1990 के दशक में उनके चंगुल से बचने और कोलकाता लौटने का खतरा उठाया था.
बंद्योपाध्याय 1994 में अपने पति के साथ भारत लौट आईं, लेकिन मई 2013 में उन्होंने दोबारा अफगानिस्तान वापस जाने का फैसला किया. उसी साल, 4 सितंबर को तालिबान ने बंद्योपाध्याय को उनके घर से बाहर खींचकर निकाला और उनके परिवार के सदस्यों की मौजदगी में गोली मारकर हत्या कर दी.
बंद्योपाध्याय की पहली किताब ‘काबुलीवालार बंगाली बोउ’ (काबुलीवाला की बंगाली पत्नी), 1997 में प्रकाशित हुई थी. इस पर बॉलीवुड फिल्म ‘‘एस्केप फ्रॉम तालिबान’’ (2003) भी बनाई गई, जिसमें मनीषा कोइराला ने बंद्योपाध्याय का किरदार निभाया था. प्रकाशकों के मुताबिक, ‘‘द तालिबान एंड आई’’ बेहद रोचक, दिल दहला देने वाली और गहराई से मन को छूने वाली किताब है. ‘वेस्टलैंड बुक्स’ की प्रकाशक मीनाक्षी ठाकुर ने कहा, ‘‘यह एक ऐसी महिला की दर्दनाक कहानी है, जिसने ऐसे देश में अपनी पहचान फिर से कायम की, जहां महिलाएं बिना किसी साथी के अपने घर से बाहर नहीं निकल सकतीं थी.
प्रतिकूल माहौल में उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मी के तौर पर काम किया, अपने आसपास की महिलाओं की मदद की, वहीं तालिबान ने उनकी जान ले ली.
Zee Salaam