'जुल्म पर खामोशी जालिम से हमदर्दी', इंसाफ पर क्या कहता है इस्लाम?
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'जुल्म पर खामोशी जालिम से हमदर्दी', इंसाफ पर क्या कहता है इस्लाम?

Islamic Knowledge: इस्लाम में निष्पक्षता के साथ फैसला करने वाले लोगों को पसंद किया जाता है. कुरान में जिक्र है बिना किसी भेदभाव के लोगों के साथ फैसला करो.

'जुल्म पर खामोशी जालिम से हमदर्दी', इंसाफ पर क्या कहता है इस्लाम?

Islamic Knowledge: इस्लाम में इंसाफ को पसंद किया गया है. इस्लाम कहता कि इंसाफ का तकाजा यह है कि अगर कहीं पर जुल्म हो रहा है तो आप उसे ताकत के जोर से रोकिए. अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप बातचीत करके जुल्म रोकिए. अगर आप इतना भी नहीं कर सकते हैं तो आप कम से कम अपने मन में जुल्म को बुरा कहिए. इस्लाम में यह साफ तौर से कहा गया है कि अगर आप जुल्म के खिलाफ खामोश रहते हैं तो आप जालिम से हमदर्दी जता रहे हैं.

जुल्म के खिलाफ खड़े हों

इस्लाम में हर इंसान को बराबरी का दर्जा दिया गया है. इस्लाम में जात-पात नहीं है. कोई भी छोटा बड़ा नहीं है. इसलिए किसी भी इंसान पर रंग-रूप, अमीर-गरीब और जात-पात की बुनियाद पर जु्ल्म नहीं किया जाना चाहिए. अगर किसी शख्स के साथ ज्यादती होती है और उस पर जुल्म होता है तो एक दूसरे मुस्लिम को चाहिए कि वह जुल्म करने वाले के खिलाफ खड़ा हो. 

निष्पक्षता के साथ हो फैसला

इस्लाम कहता है कि अगर किसी शख्स ने आपके पास कोई चीज अमानत के तौर पर रखी है, तो उसे उसकी पूरी अमानत लौटाओ. इसके अलावा अगर कहीं किसी मामले में फैसला करने के लिए बुलाया जाए तो पूरी निश्पक्षता के साथ फैसला करो.

निष्पक्षता पर कुरान

इंसाफ के बारे में कुरान में कहा गया है कि "अल्लाह आपको हुक्म देता है कि अमानत लौटाओ उस शख्स को, जो उसका असल हक़दार है. और जब तुम लोगों के बीच इंसाफ और फैसला करो तो पूरी निष्पक्षता के साथ फैसला किया करो." (क़ुरआन 4:58)"

अल्लाह को पसंद हैं मुंसिफ

इस्लाम में कहा गया है कि अगर किसी शख्स ने किसी के साथ गलत फैसला किया है या ज्यादती की है, तो कयामत के दिन जमीन उसके खिलाफ गवाही देगी. एक हदीस में हैं कि “...और न्याय के साथ फैसला करो. बेशक अल्लाह उनको ही पसंद करते हैं, जो न्याय करते हैं” (क़ुरआन 49:9)

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