कर्ज के दलदल में फंसे अभिभावकों के बच्चे खो रहे हैं अपना बचपन, मानव तस्करों के निशाने पर मासूम
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कर्ज के दलदल में फंसे अभिभावकों के बच्चे खो रहे हैं अपना बचपन, मानव तस्करों के निशाने पर मासूम

सामाजिक कार्यकर्ता दीना नाथ कहते हैं, ’’इनमें से कई बच्चों के परिवारों ने लॉकडाउन के दौरान कर्ज लिए थे. अब उन्हें कर्ज अदा करना है, इसलिए इन बच्चों पर कमाने और अपने परिवार का सहयोग करने का दबाव आ गया है.’’

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः दुनिया 30 जुलाई को विश्व मानव तस्करी रोधी दिवस मनायेगी, लेकिन यह एक तरह से रश्मि तौर पर ही मानव तस्करी रोधी दिवस होगा, क्योंकि कोरोना की वैश्विक महामारी ने आलमी सतह पर इस समस्या में इजाफा कर दिया है. कोविड-19 महामारी से पैदा हुई आर्थिक संकट से न सिर्फ बड़े बल्कि बच्चे भी परेशान हैं. आर्थिक संकट का असर सीधे तौर पर नाबालिग बच्चों पर पड़ रहा है और वह इस वजह से अपना बचपन खो रहे हैं. महामारी के वक्त लिए गए कर्ज का बोझ उतारने के लिए ढेर सारे बच्चे अपने परिवारों की मदद करने को मजबूर हो रहे हैं, जबकि कुछ बच्चों के माता-पिता दोनों कोविड महामारी में अपनी जान गंवा चुके हैं. ऐसे बच्चों को जिंदगी जीने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. वहीं दूसरी जानिब बच्चों के इस हालात का फायदा उठाकर उनकी तस्करी की जा रही है और उन्हें बंधुआ मजदूर बनाया जा रहा है. यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल ओर झाखंड जैसे राज्यों से ऐसे हजारों बच्चों को रोजाना दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, जयपुर और पंजाब के शहरों में बंधुआ मजदूरी के लिए ले जाया जा रहा है. इनमें से कई बच्चों को गैर सरकारी संगठनों की मदद से पुलिस ने रास्ते में मानव तस्करों से आजाद कराया है. 

जयपुर जा रहा था 12 वर्ष का बच्चा  
बिहार के एक गांव से जयपुर में चूड़ियों की फैक्टरी में काम करने जा रहे ऐसे ही एक बच्चे को रास्ते में आजाद कराया गया है. गया जिले के बिलाव नगर के 12 वर्षीय लड़के महेश (बदला हुआ नाम) ने बताया कि काम करके मैं अपने दादा-दादी और भाई-बहनों की मदद करना चाहता हूं. मुझे आठ साल की बहन और छह साल के भाई को भूखा देख बुरा लगता है. हम जिस आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हैं उसको समझने के लिए वे बहुत छोटे हैं. 

खतरनाक कामों में भी लगा दिए जाते हैं ऐसे बच्चे 
महेश को 17 अन्य बच्चों के साथ बिलाव नगर से जयपुर भेजा गया था. पुलिस और गैर सरकारी संगठन सेंटर डायरेक्ट के कार्यकर्ताओं ने उन्हें 25 जून को आजाद कराया था. महेश का यह कोई पहला मामला नहीं है. मुल्क में इस वक्त ऐसे हजारों बच्चे हैं जिन्हें कोविड-19 महामारी के दौरान अपने अभिभावकों, दादा-दादी और अन्य बुजुर्गों के जरिए लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए काम करना पड़ रहा है. ये बच्चें महानगरों में चूड़ी, पटाखे, रंगाई, जरदोजी जैसे कई छोटे-मोटे और कई बार खतरनाक कामों में लगाए जाते हैं. 

परिवार का सहयोग करने का दबाव
ऐसे बच्चों की सही तादाद के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मार्च 2020 से कर्ज में डूबे बच्चों की तादाद बढ़ गई है. बिहार के गया में गैर सरकारी संगठन सेंटर डायरेक्ट से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता दीना नाथ कहते हैं, ’’इनमें से कई बच्चों के परिवारों ने लॉकडाउन के दौरान कर्ज लिए थे. अब उन्हें कर्ज अदा करना है. इससे इन बच्चों पर कमाने और अपने परिवार का सहयोग करने का दबाव आ गया है.’’ नाथ ने कहा कि स्कूल बंद हैं, ऑनलाइन शिक्षा सबके बस में नहीं है, कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से कई बच्चे तस्करी के शिकार हो रहे हैं और उनसे जबरन काम लिया जा रहा है. 

बेहतर भविष्य की उम्मीद में बच्चों को खुद बाहर भेज रहे अभिभावक 
सेंटर डायरेक्ट के कार्यकारी निदेशक सुरेश कुमार कहते हैं, ’’तस्करी रोधी अभियान चलाते समय कई दिक्कतें आती हैं. कई बच्चे अपने परिवारों के साथ सफर कर रहे होते हैं जो जाली कागजात दिखा देते हैं कि बच्चा बालिग है. ऐसे बच्चों की पहचान करना काफी मुश्किल हो जाता है. सृजन फाउंडेशन के साथ काम करने वाले और ‘इंडियन लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग’ से जुड़े धनमैत सिंह कहते हैं, ’’बसों और अन्य सार्वजनिक परिवहन के शुरू होने के बाद से बहुत सारे बच्चों की तस्करी हुई है. आजीविका के नुकसान की वजह से कई माता-पिता ने बेहतर भविष्य की उम्मीद में अपने बच्चों को रिश्तेदारों के साथ उन्हें महानगरों में जाने देने का फैसला किया है. 

कोविड में यतीम हुए बच्चों पर सरकार को हिदायत 
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक, बाल तस्करी का मतलब बच्चों को उनके सुरक्षात्मक वातावरण से बाहर निकालने और शोषण के मकसद से उनके कमजोर हालात का फायदा उठाना है. भारत का बाल संरक्षण कानून सामान्य मामलों में 15 साल से कम उम्र के बच्चों को काम पर रखने पर प्रतिबंध लगाता है, जबकि भारी और सेहत पर असर पड़ने वाले कामों के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 18 साल रखी गई है. अभी पिछले सप्ताह ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले का स्वतः संज्ञान लेकर सरकार को वैसे बच्चे की पहचान और लिस्ट तैयार करने का हुक्म दिया है, जिनके पिता, माता, या माता-पिता दोनों की कोविड महामारी में मौत हो गई है. कोर्ट ने सरकार से ऐसे बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और उनके परवरिश की जिम्मेदारी उठाने को कहा है.

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