Zafar Iqbal Hindi Shayari: ज़फ़र इक़बाल ने क्लासिकी गजल को अपने कलाम से नई ऊंचाई दी. उन्होंने इसके नए सांचे बनाए.
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Zafar Iqbal Hindi Shayari: उर्दू शायरी में ज़फ़र इक़बाल का बड़ा नाम है. उनकी पैदाईश 1933 को लाहोर के शहर ओकाड़ा में हुई. ज़फ़र इक़बाल नई उर्दू शायरी में गजलकारी की नई परंपरा को बनाने वाले शायर हैं. उन्होंने उर्दू जबान को फैलाने में बहुत मदद की. उन्होंने कई लफ्जों को उनके माने से हटाकर उन्हें नए माने के तौर पर पेश किया. उनकी बहुत बड़ी कामयाबी ये भी है कि उन्होंने कई नए प्रयोग किए लेकिन उनकी शायरी कभी बेमजा नहीं हुई.
रास्ते हैं खुले हुए सारे
फिर भी ये ज़िंदगी रुकी हुई है
उस को भी याद करने की फ़ुर्सत न थी मुझे
मसरूफ़ था मैं कुछ भी न करने के बावजूद
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते
कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते
सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर
यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला
किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला
फिर आज मय-कदा-ए-दिल से लौट आए हैं
फिर आज हम को ठिकाने का हम-सबू न मिला
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सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर
तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी
अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना
पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना
घर नया बर्तन नए कपड़े नए
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें
अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना
पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना
उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं
रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था
ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए
ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए
बदन का सारा लहू खिंच के आ गया रुख़ पर
वो एक बोसा हमें दे के सुर्ख़-रू है बहुतZee Salaam Live TV: