प्रेम और क्षमा हमारी जिंदगी के सबसे अधिक करीब रहने वाली दो भावनाएं हैं. इनमें से प्रेम तो अक्सर सतह पर तैरता रहता है, लेकिन क्षमा अक्सर चेतन से अवचेतन मन की ओर चली जाती है.
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जिंदगी में हम जितना करते हैं, उससे कहीं अधिक सोचते हैं. अक्सर अवचेतन मन की योजनाएं वहीं कैद रह जाती हैं. हमारे सपने, योजनाएं दो तरह की होती हैं. पहली वह, जो सीधे तौर पर हमारे काम, करियर से जुड़ी होती हैं. दूसरी जो हमें सुकून देती हैं. हमारे भीतर खुशी का संचार करती हैं. दूसरी श्रेणी के विचारों, योजनाओं का हमेशा आर्थिक पक्ष भी हो, यह जरूरी नहीं. यह नितांत निजी विषय है, जो हमारे दिल, मन के बेहद करीब होता है. यह विचार मन की गुफा में कहीं भीतर होते हैं.
आपने महसूस किया होगा कि जैसे ही जीवन पर कोई संकट आता है. हमारे सोचने, समझने का नजरिया बदल जाता है. हम शायद और ज्यादा उदार, स्नेही और प्रेम करने वाले मनुष्य के रूप में उभरते हैं. हालांकि यह बहुत दिन कायम नहीं रहता, जैसे ही हम संकट से बाहर आते हैं, कुछ रोज बाद उसी जिंदगी में लौट जाते हैं, जहां कुछ रोज़ पहले तक थे.
उप्र के इलाहाबाद से कीर्ति यादव ने सुबह ‘डियर जिंदगी’ के 100 संस्करण पूरे होने पर बधाई दी. मैंने कीर्ति से कहा, शुक्रिया, लेकिन यह इतनी बड़ी बात तो नहीं कि आप याद रखें, फोन करने के लिए वक्त निकालें. उन्होंने जो कहा, आज की डियर जिंदगी का फलसफा वही है.
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कीर्ति ने कहा, ‘मैं मई से आपसे बात करने के बारे में सोच रही थी. क्योंकि ‘डियर जिंदगी’ डिप्रेशनऔर आत्महत्या पर संवाद है, जिसने मेरे परिवार को गहरा दुख दिया है. मैं स्वयं पिछले दिनों एक दुर्घटना में मौत के बेहद करीब से गुजरी. इसने मेरे जीने का नजरिया ही बदल दिया. मैंने तय कि हर विचार,भावना जो दूसरों के बारे में है, कुछ नया करने के बारे में है, उसे टाला नहीं जा सकता. उसे टालना चाहिए ही नहीं, न जाने जिंदगी फिर मौका दे, न दे. किसे पता, कल हो न हो.’
हम इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर आपको आज पता चल जाए कि आपके पास बस जिंदगी के 100 घंटे बाकी हैं, तो आप क्या-क्या करेंगे. जो-जो उस समय करेंगे, वही आपको तब भी करना चाहिए, जब आपके पास कुछ ज्यादा, घंटे और बरस हों.
हम सब जब किसी ऐसे हादसे से गुजरते हैं, तो कुछ दिन तक हम वैसी ही मनोदशा में रहते हैं, जिसमें कीर्ति हैं. लेकिन जैसे ही हम सामान्य होते जाते हैं, असल में हमारा अवचेतन वापस उसी दशा में पहुंच जाता है, जिसमें हम पहले होते हैं. हमारे ऊपर जीवन की मुश्किलें हावी होने लगती हैं, जो सहज ही हैं, लेकिन हम कैसे उन्हें अकेला छोड़ सकते हैं, जो हमारे जीवन की ऊर्जा का केंद्र रहे हैं.
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इन सबसे हम जाने कितना कुछ कहना चाहते हैं. बताना चाहते हैं. लेकिन कह नहीं पाते. प्रेम और क्षमा हमारी जिंदगी के सबसे अधिक करीब रहने वाली दो भावनाएं हैं. इनमें से प्रेम तो अक्सर सतह पर तैरता रहता है, लेकिन क्षमा अक्सर चेतन से अवचेतन मन की ओर चली जाती है. किसी को क्षमा करना हमेशा संभव नहीं होता. कई बार छोटे-छोटे स्तर पर हमारा ‘अहंकार’ रुकावट पैदा कर देता है.
वैसे भी हम भारतीय अपनी बात को सही तरीके से नहीं रखने के लिए जाने जाते हैं. कारण, हमारा संकोच, टालने की आदत है. हम बहुत सी बातें कहने की जगह समझ लिए जाने की अपेक्षा रखते हैं, इसलिए भी सही समय पर सही बात नहीं कहते.
इसलिए, खुद से उनकी बेहतरी के लिए एक वादा करें, जिन्हें आप सबसे अधिक प्रेम करते हैं. कुछ भी मन में न रखने का. सबकुछ कह देने का. मन में भावनाओं को दबाकर रखने से कुछ हासिल नहीं होता. हां, उससे भावनाओं का उबाल मन में जरूर जमा होता रहता है और जाहिर है, जरूरत से अधिक दवाब से जो विस्फोट होगा, वह किसी के लिए हितकारी नहीं होगा. इसलिए मन के स्तर पर अटकी हुई सभी भावनाओं को प्रकट करने का काम शुरू कीजिए, किसी भी भावना को ‘पेंडिंग’ फोल्डर में मत भेजिए. जिंदगी के ‘डियर’ बने रहने की प्रक्रिया में भावनाओं का इजहार बेहद मायने रखता है.
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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