डियर‍ जिंदगी: मां, बिन कहे तुम समझती क्‍यों नहीं!
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डियर‍ जिंदगी: मां, बिन कहे तुम समझती क्‍यों नहीं!

आप अपने परिवार, प्रियजनों और मित्रों के बीच यह तय करें कि एक भी बच्‍चा किसी 'विरासत सिंड्रोम' का शिकार न हो.

डियर‍ जिंदगी: मां, बिन कहे तुम समझती क्‍यों नहीं!

हम जब भी उनसे मिले उन्होंने य‍ही कहा, हम बच्‍चों पर कोई दबाव नहीं डालते. बच्‍चों को जो करना है, अपने लिए करना है. हम उनके लिए एक मंच हैं. सुनने में यह बात बड़ी सहज और सुहानी लगती है. इस पर विश्‍वास नहीं करने का ऐसा कोई बड़ा कारण इसलिए भी नहीं था, क्‍योंकि डॉक्‍टर दंपति की एक ही संतान बेटी है. इस पूरे परिवार में डॉक्‍टर और आईएएस की फौज है. हर दूसरा बच्‍चा इसी तरफ जाना चाहता है. इसलिए जब उनकी बिटिया बारहवीं में पहुंची तो उनके एक परिवारिक मित्र ने हमें उससे इस अनुरोध के साथ मिलवाया कि जरा उसके मन का जायजा लिया जाए.

मैंने डॉक्‍टर दंपति से जो कुछ कहा, वह इस प्रकार है, ‘आपकी बेटी करियर को लेकर थोड़े तनाव में है. उस पर परिवार की एकेडमिक परंपरा और शान को आगे बढ़ाने की जिम्‍मेदारी का भार है. हो सके तो उसे इस तनाव से मुक्‍त कीजिए. वह कहती नहीं लेकिन इस तनाव में रहती है कि उसे मां-पापा जैसा बनना है. क्‍योंकि आपके परिवार के अन्य बच्‍चे भी एकेडमिक्‍स में बहुत ही अच्‍छा कर रहे हैं.’

डियर जिंदगी: महसूस किए बिना जीते रहना!

माहौल को थोड़ा सहज करने के लिए मैंने कहा, 'आपकी सुपरहिट फैमली में कई बार वह खुद को अभिषेक बच्‍चन जैसा महसूस करने लगती है. इसलिए उसे परिवार की कथित विरासत से दूर ले जाने की कोशिश कीजिए. खैर यह संवाद कुछ हल्‍की-फुल्‍की बातों के साथ समाप्‍त हो गया. एक दिन इस दंपति के मित्र का फोन आया.

‘वह डॉक्‍टर साहब की बेटी याद है!’ उन्‍होंने कहा. मैंने कहा, हां क्‍या हुआ. उन्‍होंने कहा, उसने बाहरवीं के मैथ्‍स का पेपर बिगड़ने के बाद डिप्रेशन में आकर नींद की गोलियां ले लीं. किसी तरह उसका जीवन बचाया गया. होश में आने के बाद से बिटिया केवल यही कह रही है कि वह परिवार का नाम रोशन करने में सफल नहीं रही. उसका स्‍कोर परिवार में और परिवार के लिए मजाक बन जाएगा.

डियर जिंदगी: बेशकीमती होने का अर्थ!

जब इस बिटिया की मां ने उससे कहा, 'बेटा तुम परेशान थीं तो तुमने कहा क्‍यों नहीं. कोई तुमसे कुछ नहीं कहेगा, कोई मजाक नहीं उड़ाएगा.' उनकी बिटिया ने धीरे से कहा, 'मैं तो कब से कहना चाह रही हूं, लेकिन क्‍या ऐसा नहीं हो सकता कि आप बिना कहे ही समझ जाएं. आप तो मां हो, मेरी हर बात पहले ही समझ जाती हो, फिर आप क्‍यों नहीं समझ पा रहीं कि साइंस और मैथ्‍स मेरे बस में नहीं हैं. मैं केवल आपके लिए इनके साथ माथापच्‍ची कर रही हूं.'

अब यह बच्‍ची पूरी तरह ठीक है, लेकिन परिवार की उसके प्रति लापरवाही उसकी जिंदगी पर बहुत भारी पड़ सकती थी. मेरा विनम्र निवेदन है कि आप अपने परिवार, प्रियजनों और मित्रों के बीच यह तय करें कि एक भी बच्‍चा ऐसे किसी विरासत सिंड्रोम का शिकार न हो.

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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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