यहां बच्चे को जरा सी खरोच, चोट, बुखार पर डॉक्टर को दिखाने का रिवाज है, लेकिन हम मन से भी बीमार हो सकते हैं. इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं...
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यह प्रेम विवाह नहीं था. इसके बाद भी इसमें अनेक तत्व प्रेम विवाह जैसे हैं. अचानक मिलना. मिलकर एक नए सपने का बनना. उस सपने के प्रति कोमलता, दूसरों से डटकर आंख मिलाने की क्षमता. किसी को भी चुनौती दे सकने का इरादा. यह सब इस विवाह में था. यह तो दोनों पक्षों की सहमति, स्नेह और विश्वास के आधार पर हुआ था, फिर भी उसकी दीवारें दरकने लगीं.
दक्षता और सुकुमार त्रिपाठी के साथ भी यही हुआ. एक अरेंज मैरिज में ऐसे तिरछे, खतरनाक मोड़ आ गए हैं, जिनसे उनके जीवन में तूफान खड़ा हो गया है. हमारे यहां 'रिश्ते' किसी रिश्ते को संभालने में शायद ही कोई भूमिका निभाते हैं, लेकिन उसके टूटने, दरकने में उनकी भूमिका न हो, इससे इंकार नहीं किया जा सकता.
यहां एकदम यही हो रहा है. जख्म को ठीक करने की जगह, उसे कुरेदने, उसे निरंतर हरा करने का काम दोनों पक्षों की ओर से किया गया. किसी ने संभालकर, प्यार, स्नेह और आत्मीयता से एक साथ संवाद करने की कोशिश नहीं की.
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मित्र उमेश मिश्र इन दोनों को ‘डियर जिंदगी’ के कुछ लेखों से प्रभावित होकर चर्चा के लिए लाए. मैंने उनसे जो कुछ कहा, वही सब इस लेख में है. इस तरह से यह अंक दक्षता और सुकुमार से संवाद की कहानी है...
मैंने उनसे यह कहते हुए बात खत्म की, ‘पांच बरस से घायल रिश्ता एक दिन में ठीक नहीं हो सकता. यह कुछ ऐसा है कि आप घुटने के दर्द का इलाज एक दिन में नहीं करवा सकते. हां, यदि सही डॉक्टर मिल जाए तो पहले दिन से सही इलाज, परहेज शुरू हो सकता है.’
असल में हम संवाद, काउंसिलिंग से इतने दूर हैं कि बस, एक-दूसरे को नीचा दिखाने, एक-दूसरे की गलतियां गिनाने में उम्र गुजार देने में यकीन रखते हैं. अपने ही बुने दुख को मोहम्मद रफी की दिलकश आवाज में सुनते रहने वाला सिंड्रोम आज भी जिंदा है. हां, बस गायकों के नाम बदल गए हैं.
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एक समाज के रूप में हम भौतिक रूप से निरंतर प्रगति कर रहे हैं. हमारा जीवन वैज्ञानिक आविष्कार, तकनीक से बेहतर हुआ है. हम चांद से आगे देखने, जाने के ख्वाब बुन रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच हम एक बीमार समाज बना रहे हैं. यहां बच्चे को जरा सी खरोच, चोट, बुखार पर डॉक्टर को दिखाने का रिवाज है, लेकिन कोई मन से भी बीमार हो सकता है, इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं.
मन को प्रेरणा, उत्साह, उमंग का सहारा चाहिए, यह बात हम स्वीकार करने को तैयार नहीं. हमारे आसपास गुस्सा, तनाव, डिप्रेशन की परत जमती जा रही है. अहंकार, समझ की कमी से रिश्ते टूट रहे हैं, लेकिन हम अभी भी काउंसिलिंग, संवाद से कोसों दूर हैं.
हम दूसरों के बारे में खूब गप्प करते हैं. बॉलीवुड के सितारों के टूटे रिश्तों पर घंटों बात करते हैं. मीडिया में छपी खबरों पर बात करते हैं लेकिन जैसे ही घर में किसी के तनाव, डिप्रेशन, उलझने में दिखने की बात होती है, हम बात बदलने लगते हैं.
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हमारा यह बात बदलना सबसे खतरनाक संकेत है, क्योंकि हम अपने ही घर, पड़ोस की सबसे गंभीर बात को अनदेखा कर रहे हैं. हम बांध से पानी छोड़ने की चेतावनी को बार-बार सुनने के बाद भी यह मानने को तैयार नहीं कि खुद को भी नदी के किनारे से दूर चले जाना चाहिए! इससे बांध, नदी का कुछ नहीं जाएगा, जो असर होगा हम पर होगा.
इसलिए जिंदगी की ओर से आ रहे संकेत, चेतावनी को गंभीरता से सुनिए. यह आपको ताउम्र ‘काश! मैंने उसकी बात समझी होती’ के अफसोस से बचा सकता है...
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