डियर जिंदगी: क्‍यों आत्‍महत्‍या कर रहे हैं ‘बड़े’ लोग…
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डियर जिंदगी: क्‍यों आत्‍महत्‍या कर रहे हैं ‘बड़े’ लोग…

 हमेशा 'हिसाब' में डूबे रहने वाले  अक्‍सर तनाव की छोटी नहर में भी डूब जाते हैं.  जिंदगी की नदी का मिजाज समझिए. हमेशा दूसरों से कुछ हासिल कर लेने, उनका उपयोग करने की चाहत से ऊपर उठिए.

डियर जिंदगी: क्‍यों आत्‍महत्‍या कर रहे हैं ‘बड़े’ लोग…

हम अक्‍सर कहते हैं कि हमारी जीवनशैली अमेरिका की तुलना में श्रेष्‍ठ है. हमारे मूल्‍य, जीवनदर्शन के सामने वह कहीं नहीं ठहरते. इस संवाद में हम इतने आगे निकल जाते हैं कि अपनी ओर देखना ही बंद कर देते हैं. 

जबकि हमारी सोच, समझ के दायरे नई शताब्‍दी में प्रवेश के साथ एकदम विपरीत दिशा में दौड़ रहे हैं. हम 'दिल-दिमाग, सोच-विचार' में आगे की ओर जाने की जगह पीछे की ओर मुड़ गए हैं. 

मेरी बात को कुछ ऐसे समझिए कि आपके किचन गार्डन की खुश्बू से कॉलोनी महकती रहती थी. अचानक दूसरे की 'नर्सरी' आपको भा गई! आप उस श्रेष्‍ठ सुगंध की ओर मुड़ गए. इसमें कुछ गलत नहीं, लेकिन 'उसके' चलते अपनी बगिया को ही उजड़ जाने दिया. यह समझ से परे है! 

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लेकिन हम ऐसा ही करने की ओर बढ़ते जा रहे हैं. वह भी अपने परिवार, मित्र, संबंध की कीमत पर. भारतीय समाज, सोच में सह-अस्तित्‍व (Coexistence) का बोध इतना गहरा था कि हम बड़ी से बड़ी आपदा से दुखी तो होते, लेकिन अगले ही पल एक-दूसरे के साहस के सहारे खड़े हो जाते.  
जरा समझने की कोशिश कीजिए कि हम किस तरह उल्‍टी गिनती गिनने को बेकरार हुए जा रहे हैं. 

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ग्‍लोबलाइजेशन के बाद हमारे लिए दुनिया की खिड़की खुल गई. दुनिया तक हमारी पहुंच पहले के मुकाबले कहीं अधिक बढ़ी. दुनिया ने हमें जाना और हमने दुनिया के तौर-तरीके भी सीखे. 

इस आवाजाही, आदान-प्रदान के बीच तकनीक ने बहुत तरक्‍की कर ली. गैजेट्स, स्‍मार्टफोन, सोशल मीडिया और एक ऐसी वर्चुअल दुनिया हमारे सामने आकर खड़ी हो गई, जिसका पर्यायवाची पहले केवल और केवल मनुष्‍य था. पहले हर चीज में हम होते थे, अब उसकी जगह तकनीक आने लगी. 

पहले एक-दूसरे से मिलना होता था, अब मिलने की जगह कॉल आ गया. पहले गले लगकर रोना होता था. अब फोन काॅल, स्नैपचैट, व्हाट्सएप काॅल, लाइव चैट में एक-दूसरे को सुनने की जगह बहस आ गई. पहले दो लोगों का एक-दूसरे के आसपास होकर मौन रहने को अजीब समझा जाता था लेकिन अब यह सामान्‍य हो गया. लेकिन हम अपने-अपने गैजेट्स के साथ 'सुखी' हैं. 

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हम एक-दूसरे से बात करते डरते हैं. कहीं कुछ रिकॉर्ड न हो! एक-दूसरे के सुख में हम पहले जैसे सुखी नहीं बचे. तो दुख में खड़े होने की बात तो पुरानी मानिए. हर चीज में गुणा-भाग. कैलकुलेशन! हमारे दिल-दिमाग को जहरीला बनाते जा रहे हैं. 

हमेशा 'हिसाब' में डूबे रहने वाले अक्‍सर तनाव की छोटी नहर में भी डूब जाते हैं. जिंदगी की नदी का मिजाज समझिए. हमेशा दूसरों से कुछ हासिल कर लेने, उनका उपयोग करने की चाहत से ऊपर उठिए. 

एक-दूसरे के प्रति घटते स्‍नेह, प्रेम और करुणा का एक सरल उदाहरण देखिए. भारत में बीते पांच बरसों में शहरों में आत्‍महत्‍या का खतरनाक ट्रेंड चल पड़ा है. कौन हैं, वह लोग जो अचानक आत्‍महत्‍या की ओर जा रहे हैं. कैसे इनकी संख्‍या बढ़ती जा रही है. अमेरिका में समाज अब 'परिवार' की ओर लौट रहा है. वहां स्‍नेह, आत्‍मीयता के प्रति सजगता बढ़ रही है. एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता, संवाद को जगह दी जा रही है. 

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वहां अब पहले से कहीं अधिक जिम्‍मेदारी से रिश्‍तों, तनाव और डिप्रेशन पर बात हो रही है. अमेरिका अब उस चरण में है, जहां लंबे समय से चली संपन्‍नता ने संघर्ष के भाव को खत्‍म कर दिया. वहां अब धन, प्रतिष्‍ठा अगर किसी व्‍यक्ति में ऊर्जा का संचार नहीं कर पाती तो वह जीवन से ऊबने लगता है. इसलिए वहां भी आत्‍महत्‍या में तीव्रता देखने को मिल रही है. 

भारत और अमेरिका में अगर किसानों की आत्‍महत्‍या को छोड़ दिया जाए तो एक विचित्र समानता देखने को मिल रही है. वह है, जो आत्‍महत्‍या का रास्‍ता चुन रहे हैं, उनके सामने धन का संकट नहीं है. बल्कि उनके भीतर डर है.  
आत्‍महत्‍या में तीन 'डर' समय सबसे अधिक भूमिका निभा रहे हैं- 

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1. प्रतिष्‍ठा का डर : इस श्रेणी में ऐसे लोग आते हैं, जिनको डर होता है कि 'किसी' के खुलासे से उनकी दुनिया तबाह हो जाएगी. समाज में जो छवि बनी है, वह नष्‍ट हो जाएगी. ऐसे लोग असल में 'लोग क्‍या कहेंगे' के सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं. ऐसे लोग वह होते हैं, जिन्‍होंने बाहरी दुनिया में अपनी छवि 'सुपरमैन' की गढ़ी होती है. लेकिन भीतर ऐसे लोग कमजोर दिल/मन /हृदय के होते हैं. 

उदाहरण : आध्‍यात्मिक गुरु भैय्यूजी महाराज की आत्‍महत्‍या. वह गिरते सम्‍मान, प्रतिष्‍ठा और भक्‍तों के बीच आलोचना से दुखी थे. यहां जरूर सोचिएगा कि दुखी होने वाला संत कैसे हो सकता है. 

2. अब क्‍या होगा: इसमें इसे लोग होते हैं, जो जीवन का सुख अक्‍सर भौतिक सुख-सुविधा में खोजते रहते हैं. इनके जीवन का सारा सूत्र कंपनी में मिले पद, वेतन. प्रोजेक्‍ट को मिल रही कामयाबी पर निर्भर करता है. जैसे ही असफलता मिलती है, मंदी की आहट होती है. उस सुविधा के छूटने का डर बढ़ जाता है, जिसकी आदत हो गई थी. ऐसे लोग पलायन का रास्‍ता चुन लेते हैं. ऐसे लोग निरंतर घर-परिवार से मानसिक दूरी निर्मित करते जाते हैं. और निरंतर अकेले होते जाते हैं. 

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उदाहरण : ब्रिटेनिका एनसाइक्‍लोपीडिया के साउथ एशिया डिवीजन के के COO विनीत विघ (Vineet Whig) ने 2016 में गुरुग्राम में 19वीं मंजिल से छलांग लगाकर आत्‍महत्‍या कर ली थी.  यह नौकरी पर आपकी जरूरत से ज्‍यादा निर्भरता को बताने वाला है. 

3. रिश्‍तों में धोखा: अगर 'उसने' मेरा साथ छोड़ दिया तो क्‍या होगा! इसकी रेंज में ऐसे लोग आते हैं, जो किसी से इस हद तक जुड़े होते हैं कि उसके बिना अपने होने की कल्‍पना भी नहीं करते. यह सब हमारी अधकचरा फिल्‍मों और टीवी सीरियल की देन हैं, जहां कुछ भी सामान्‍य नहीं है. पति- पत्‍नी, प्रेमी-प्रेमिका का एक-दूसरे के बिना अस्तित्‍व ही नहीं है, जैसी चीज़ें हमारे दिमागों में इतनी ठूसी गई हैं कि उनको साफ करने में बरसों लग जाएंगे. 

इसलिए जरूरी है कि संबंधों के प्रति नई दृष्टि पैदा की जाए. किसी के भी होने से अपने को जोड़ना प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है. प्रकृति ने हमें दूसरों के साथ रहने के लिए बनाया है. उनके अलग होने पर अपना जीवन नष्‍ट करना, उसे समाप्‍त करना प्रकृति जिसे आप संभवत; ईश्‍वर के नाम से जानते हैं, उसकी अवहेलना है. 

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उदाहरण : नोएडा में जून में एक लड़की ने एक मॉल से इसलिए आत्‍महत्‍या की, क्‍योंकि उसके प्रेमी ने उसका फोन उठाना बंद कर दिया था. ऐसे मामले हर दूसरे दिन सामने आ रहे हैं. यह सबसे खतरनाक है! 

तो अपने जीवन, अस्तित्‍व और सबसे बड़ी बात 'अपने' होने की कीमत किसी चीज से मत आंकिए. मरकर आप किसी का भला और बुरा दोनों नहीं कर सकते. जिंदा रहिए, इससे वह आप कर पाएंगे, जो करना चाहते हैं... 

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