पंचों ने फैसला देने से पहले आपस में जो बात की उसका निष्कर्ष सुनिए. उन्होंने कहा, 'हंस-हंसनी तो परदेसी हैं, कुछ दिन में यहां से चले जाएंगे. लेकिन हमें तो इन उल्लुओं के बीच गुजारा करना है. हमारा इनका रिश्ता, निर्भरता, साथ गहरा है. इसलिए हमें उल्लू के पक्ष में ही फैसला देना चाहिए.
Trending Photos
'यहां न तो पानी है, न साफ हवा और न ही जंगल. हम यह किस उजाड़ देश में आ गए! यहां कैसे जिया जाएगा.' हंसनी ने चिंतित स्वर में हंस से कहा. हंस ने उसकी चिंता को सही बताते हुए कहा, 'किसी तरह से रात बिताओ. सुबह होते ही हम यहां से निकल जाएंगे.' शाम से रात गहरी होते ही वहां उल्लुओं का शोर शुरू हो गया. हंस-हंसनी के लिए रात बिताना बहुत मुश्किल हो गया. अब तो हंसनी की व्याकुलता बढ़ गई. जिस पेड़ पर उन्होंने आशियाना बनाया था. उसके आसपास उल्लुओं की बस्ती थी. रात जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, उल्लुओं का संवाद धीमे से तेज होता गया. वह विभिन्न विषयों पर चर्चा में जुटे रहे.
इस बीच हंसनी ने तेज आवाज में कहा, 'हमें तो पहले ही समझ लेना चाहिए था कि यह इलाका इतना उजाड़ क्यों है, जहां उल्लू रहेंगे, वहां का हाल तो ऐसा ही होना है'.
हंसनी की यह शिकायत, तंज उनके ही पेड़ पर बैठे एक वरिष्ठ उल्लू ने सुन लिया. उसने तुरंत हंस को आवाज दी. 'भाई माफ करना, हमारी वजह से आपकी नींद में खलल पड़ा. हम माफी चाहते हैं.' उसके बाद धीरे-धीरे उल्लुओं का शोर कम होता गया. थोड़ी देर में वहां गहरी शांति हो गई.
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी : सुने हुए जमाना बीत गया!
सुबह होते ही जब हंस-हंसनी चलने को हुए. वरिष्ठ उल्लू अपने कुछ साथियों के साथ वहां पहुंच गया. उसने कहा, 'आप जा रहे हैं.' हंस ने कहा, 'हम यहां नहीं रह पाएंगे, हम विदा चाहते हैं.' जब वह चलने को हुए तो उल्लू ने हंस से कहा, 'आपको जाना है, तो जाइए लेकिन आप मेरी पत्नी को नहीं ले जा सकते!' हंस का माथा घूम गया. उसने कहा, 'ये हंसनी हैं, मेरी पत्नी.'
हंस का वाक्य पूरा होने से पहले ही सारे उल्लू बोले, क्या बात करते हो. यह तो हमारे सरदार की पत्नी हैं. हंस और हंसनी मानो पागल हो गए. चीखने-चिल्लाने लगे. तो सरदार ने शांत स्वर में कहा, 'कोई बात नहीं, चलिए पंचायत में चलते हैं. वहीं फैसला होगा.'
थोड़ी देर में पंचायत बैठ गई. वहां दोनों पक्षों ने अपनी दलील दी. पंचों ने फैसला देने से पहले आपस में जो बात की उसका निष्कर्ष सुनिए. उन्होंने कहा, 'हंस-हंसनी तो परदेसी हैं, कुछ दिन में यहां से चले जाएंगे. लेकिन हमें तो इन उल्लुओं के बीच गुजारा करना है. हमारा इनका रिश्ता, निर्भरता, साथ गहरा है. इसलिए हमें उल्लू के पक्ष में ही फैसला देना चाहिए.'
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी : जिंदगी को चिड़ियाघर बनने से बचाएं...
उसके बाद पंचायत ने हंस को उल्लू की पत्नी करार देते हुए, सभा समाप्त कर दी. हंस और हंसनी की दशा केवल समझी जा सकती है, लिखी नहीं जा सकती.
जब सब चले गए तो 'सरदार' उल्लू वहां पहुंचा. उसने हंस-हंसनी से माफी मांगते हुए कहा, 'आपका साथ सुरक्षित रहे. यह सब नौटंकी इसलिए की गई, क्योंकि आप लोग कह रहे थे कि जहां उल्लू रहते हैं, वहां खंडहर और वीरानी, दरिद्रता रहती है. यह सही नहीं है.
यह जगह, यहां का जीवन इसलिए उजाड़ और वीरान है, क्योंकि यहां ऐसे पंच, समाज रहता है, जो उल्लुओं के हक में फैसला सुनाता है.
'डियर जिंदगी' में यह कहानी आज इसलिए, क्योंकि अक्सर इन दिनों ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जो हमारे विवेक, सोच-समझ पर सवाल खड़े कर रही हैं. आखिर, हम क्या हैं! हम वही हैं, जो हमारे निर्णय हैं. छोटे-छोटे निर्णय हमें बड़ा बनाते हैं. इसलिए निर्णय करते समय, किसी का साथ देते समय यह जरूर सोचें कि कहीं हम इस लोककथा के किरदारों जैसा जीवन तो नहीं जी रहे हैं.
सभी लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें : डियर जिंदगी
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
(https://twitter.com/dayashankarmi)
(अपने सवाल और सुझाव इनबॉक्स में साझा करें: https://www.facebook.com/dayashankar.mishra.54)