हेलसिंकी ओलंपिक में जीता पदक, दांव पर सब कुछ झोंका
Advertisement

हेलसिंकी ओलंपिक में जीता पदक, दांव पर सब कुछ झोंका

साठ साल पहले 1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक खेलों में स्वतंत्र भारत के लिये पहला व्यक्तिगत ओलम्पिक पदक कुश्ती में केडी जाधव ने जीता था, लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि महाराष्ट्र के इस पहलवान को इन खेलों में भाग के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगाना पड़ा था।

नई दिल्ली : साठ साल पहले 1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक खेलों में स्वतंत्र भारत के लिये पहला व्यक्तिगत ओलम्पिक पदक कुश्ती में केडी जाधव ने जीता था, लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि महाराष्ट्र के इस पहलवान को इन खेलों में भाग के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगाना पड़ा था।
आजाद भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता खशाबा दादासाहेब जाधव को दरअसल हेलसिंकी ओलम्पिक खेलों में नहीं भेजने की योजना तैयार की गयी थी और अगर तब विरोधी कामयाब हो जाते तो देश ओलंपिक में व्यक्तिगत पदक के लिये 54 साल और इंतजार करना पडता। जाधव के बाद 1996 में लिएंडर पेस ने अटलांटा ओलम्पिक की टेनिस प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था।
महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोलश्वर ताल में 15 जनवरी 1926 को जन्मे जाधव को मद्रास राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में अंकों के आधार पर पराजित घोषित कर दिया था जिससे उसकी जगह किसी अन्य पहलवान को हेलसिंकी ओलम्पिक में भेजना लगभग तय हो गया था लेकिन ‘पाकेट डायनेमों’ नाम से पुकारे जाने वाले जाधव ने मीडिया में आरोप लगाया कि भाई भतीजा वाद के चलते उनका चयन ओलम्पिक खेलों के लिये नहीं किया जा रहा है।
जाधव ने भ्रष्ट खेल अधिकारियों के खिलाफ आवाज उठाई और खेल प्रेमी पटियाला के महाराज के सामने न्याय के लिये गुहार लगाई। जाधव की मेहनत रंग लाई और ओलम्पिक ट्रायल कराये गये जिसमें उन्होंने अपने विरोधी पहलवान धूल चटा दी। जाधव को ओलंपिक जाने की अनुमति तो मिल गयी लेकिन उनकी समस्या अभी खत्म नहीं हुई उनके पास ओलंपिक जाने के लिए पैसा नही था। कोल्हापुर के एक कालेज के प्रिंसिपल ने अपना मकान गिरवी रख कर पैसा जुटाया और स्थानीय दुकानदारों से भी चंदा एकत्र किया गया । जारी : जाधव ने वापस आकर बताया था कि अगर भारत का कोई खेल अधिकारी हेलसिंकी में मौजूद होता तो वह स्वर्ण पदक भी जीत सकते थे।
दरअसल जाधव को कुछ ही मिनट के भीतर दूसरी कुश्ती लडने के लिये कहा गया था जिसमें वह हार गये थे। अगर जाधव की तरफ से कोई विरोध करता तो उन्हें आराम करने के लिये कुछ समय मिल सकता था।
भारत के इस पहले ओलम्पिक पदक विजेता की बदनसीबी ने बाद में भी उसका साथ नहीं छोडा और 1984 में जब सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हुई तब वे बेहद गरीबी में जीवन बिता रहे थे। सरकार ने जाधव को 2000 में (मरणोपरांत) अजरुन पुरस्कार से सम्मानित किया। 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों की कुश्ती प्रतियोगिता के बने स्टेडियम का नाम इसी पहलवान के नाम पर रखा गया।
यदि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) की मानें तो इसका जवाब नार्मन प्रिचार्ड होगा लेकिन अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संघों के महासंघ (आईएएएफ) ने 2004 में इस एथलीट को ब्रिटेन का करार दे दिया था। यही वजह है कि आजादी के बाद पहलवान कसाबा जाधव को भारत की तरफ से ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत पदक विजेता माना जाता है। उन्हें बाकायदा भारत ने आधिकारिक तौर पर ओलंपिक में खेलने के लिये भेजा था।

Trending news