ZEE जानकारीः शिक्षा के साथ समझौता करके चुनाव में ड्यूटी करवाना कितना सही?
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ZEE जानकारीः शिक्षा के साथ समझौता करके चुनाव में ड्यूटी करवाना कितना सही?

देश में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, और इन सभी राज्यों के सरकारी स्कूलों के करीब 80 प्रतिशत अध्यापकों को चुनाव ड्यूटी पर लगाया गया है. 

ZEE जानकारीः शिक्षा के साथ समझौता करके चुनाव में ड्यूटी करवाना कितना सही?

अब हम शिक्षकों की चुनाव वाली ड्यूटी का DNA टेस्ट करेंगे. अगर त्रेता और द्वापर युग में गुरू वशिष्ठ और गुरू संदीपन की चुनाव में ड्यूटी लगाई गई होती... तो हो सकता है कि भगवान राम और श्रीकृष्ण ज्ञान से वंचित रह जाते . इसमें कोई शक नहीं है कि चुनाव.. लोकतंत्र का महापर्व होता है. इससे ही देश का राजनीतिक भविष्य तय होता है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि चुनावों के चक्कर में बच्चों के भविष्य को दांव पर लगा दिया जाए . सरकारी ज़िम्मेदारियां पूरी करने के लिए शिक्षकों को अपना स्कूल छोड़कर बार बार जाना पड़ता है और इससे पढ़ाई पर बुरा असर होता है.

देश में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, और इन सभी राज्यों के सरकारी स्कूलों के करीब 80 प्रतिशत अध्यापकों को चुनाव ड्यूटी पर लगाया गया है . यानी ये वो अध्यापक हैं जिनके छात्र इन दिनों पढ़ाई से वंचित हैं या इन्हें दूसरी कक्षाओं में adjust किया जा रहा है . अगले महीने से इन सभी बच्चों के Half-yearly Exam यानी अर्द्ध वार्षिक परिक्षाएं होने वाली हैं. लेकिन इनके अध्यापक चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं . 

यहां हम आपको ये भी बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाने के अलावा हमारे देश का सिस्टम... अध्यापकों को किस तरह के कामों में लगा देता है . इनमें पहला काम आता है चुनावों में ड्यूटी लगाना . हमारे देश में हर पांच साल में करीब 6 तरह के चुनाव होते हैं. इनमें लोकसभा और विधानसभा के अलावा पंचायत और नगरपरिषद के चुनाव शामिल हैं . इन सभी चुनावों में शिक्षकों की ड़्यूटी लगाई जाती है.

इसके अलावा हर 10 वर्ष में होने वाले जनगणना कार्यक्रम में भी अध्यापकों की ड्यूटी लगाई जाती है . जनगणना का काम करीब 6 महीने तक चलता हैं जिसमें अध्यापकों के लक्ष्य तय कर दिये जाते हैं यानी एक तय समय सीमा में लोगों की जानकारी इक्कट्ठा करके सरकार को सौंपनी होती है . हांलाकि ये काम स्कूल के अलावा मिलने वाले समय में किया जाता है लेकिन जानकारी इक्कट्टा करते हुए इतनी शक्ति नहीं बचती कि बच्चों को पूरी ऊर्जा के साथ पढ़ाया जा सके . 

चुनाव और जनगणना के अलावा अध्यापकों को पल्स पोलियो अभियान, पशुओं की जनगणना, स्वच्छता अभियान और राशन कार्ड से जुड़े कामों में भी लगाया जाता है. National Institute of Education Planning and Administration के सर्वे के मुताबिक भारत में एक शिक्षक का करीब 81 प्रतिशत समय ....शिक्षा के बजाए दूसरे कामों में खर्च हो जाता है यानी वो अपना सिर्फ़ 19 प्रतिशत समय बच्चों को पढ़ाने में लगा रहे हैं.

भारत में Right to Education Act यानी शिक्षा के अधिकार तहत साल के 365 में से कम से कम 220 दिन बच्चों को शिक्षा देने के लिए तय किये गये हैं लेकिन वर्ष 2015 -16 की रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान औसतन 42 दिन ही पढ़ाई का काम हुआ. ये हाल तब है जब देश में Right to Education Act की धारा 27 के मुताबिक शिक्षक को चुनाव, जनगणना और आपदा प्रबंधन के काम के अलावा किसी दूसरे काम में नहीं लगाना चाहिए 

वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए ये कहा था कि शिक्षकों को गैर शिक्षा से जुड़े हुए कामों लगाना असंवैधानिक है . एक आंकड़े के मुताबिक देश में करीब 10 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं और ऐसी स्थिति में भी हमारे सिस्टम ने शिक्षकों पर दूसरे कार्यों का बोझ डाला हुआ है. आज हमने इस विषय पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इससे आपको ये पता चलेगा कि जब शिक्षक को पढ़ाई के बजाए, दूसरे कामों में लगाया जाता है तो शिक्षा व्यवस्था की क्या हालत होती है .

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