Ashlesha Nakshatra: अश्लेषा नक्षत्र के लोग किसी के एहसान को कभी न भूलें और पड़ोसियों से हमेशा मधुर संबंध बनाकर रखें. इस नक्षत्रों वालों के लिए वनस्पति नागकेसर है. यह असम प्रांत के आर्द्रता वाले क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है.
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Characteristics of Ashlesha Nakshatra: तारामंडल का नवां नक्षत्र अश्लेषा कहलाता है, जिसका अर्थ होता है आलिंगन करना. इस नक्षत्र के समूह में 6 तारे हैं, जो कि चक्राकार हैं. कुछ लोग इसे सर्पाकार भी मानते हैं. इसी कारण इस तारा चक्र को सर्पराज वासुकि के सिर पर स्थान मिला है, जो भगवान शंकर का आभूषण है. यह नक्षत्र कर्क राशि में पड़ता है, इसलिए जिन लोगों की कर्क राशि है, उनका यह नक्षत्र हो सकता है.
इस नक्षत्र के लोग साहसी और निडर होते हैं तथा किसी से शत्रुता हो जाए तो उसे बर्बाद करके ही दम लेते हैं. इन्हें एक बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि जिस किसी ने कभी सहयोग किया है, उसका अहसान न भूलें. इसे दूसरे तरीके से भी समझ सकते हैं कि किसी के साथ विश्वासघात न करें. इन्हें अपने पड़ोसियों के साथ मधुर संबंध बनाकर रखना चाहिए, क्योंकि अक्सर देखा गया है कि अश्लेषा नक्षत्र वाले व्यक्ति अपने पड़ोसियों को शत्रु मानने लगते हैं. इनको सोते से जगा दिया जाए तो यह अचानक चौंक उठते हैं और नाराज भी हो जाते हैं. यदि कोई काम इनके मन का न हो तो फिर यह जहर उगलने लगते हैं, इसलिए अश्लेषा नक्षत्र वाले लोगों को हमेशा मधुर वाणी का ही इस्तेमाल करना चाहिए. इनके अंदर किलिंग इंस्टिंक्ट बहुत अधिक होती है.
उपाय
अश्लेषा नक्षत्रों वालों के लिए वनस्पति है, नागकेसर. यह असम प्रांत के आर्द्रता वाले क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है. इसकी लकड़ी कठोर और मजबूत होती है. इसका पौराणिक नाम नाग है. आयुर्वेद के क्षेत्र में इसका बहुत अधिक उपयोग होता है. नागकेसर के लिए विशेष तरह के वातावरण की आवश्यकता होती है, इसलिए यह पौधा हर जगह नहीं लग पाता है. इसके लिए सब्सटीट्यूट की जरूरत पड़ती है, जो चमेली है.
इस नक्षत्र में जन्मे लोगों को चमेली के पौधे लगाना चाहिए और उनसे प्रार्थना भी करनी चाहिए. सामान्यतः चमेली के पौधों को घरों में नहीं लगाया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि इस पौधे की सुगंध से सर्प आते हैं. चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर श्री हनुमान जी को चोला चढ़ाया जाता है, जिससे हनुमान की जी कृपा बनी रहती है. इसका तेल पीड़ानाशक होता है और कहा जाता है कि भरत जी का बाण लगने के कारण हनुमान जी के पैरों में पीड़ा रहती है, जिसे उन्होंने चमेली का तेल लगाकर ही समाप्त किया.