फिर फूटेगी सरस्वती की जलधारा?
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फिर फूटेगी सरस्वती की जलधारा?

गंगा-यमुना-सरस्वती... तीन नदियां जिनका जिक्र वेदों और पुराणों में भी है। इलाहाबाद के संगम पर त्रिवेणी की धारा अगर आपने देखी हो तो गंगा और यमुना की धारा तो आपास में अटखेलियां करती दिखती है लेकिन सरस्वती नजर नहीं आती है। देश में गंगा और यमुना तो बहती है लेकिन सरस्वती अब नहीं बहती । कहते है अब वह लुप्त हो गई नदी है। लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि सरस्वती संगम में अब भी मिलती है लेकिन वह दिखती नहीं क्योंकि वह काफी नीचे बहती है।

कुछ संतों और ऋषियों ने संगम के उन तीनों धाराओं (गंगा-यमुना-सरस्वती) का अपने संस्मरणों में जिक्र भी किया है। लेकिन पिछले दिनों हरियाणा के यमुनानगर में सरस्वती नदी का जल मिलने के दावों के बीच सरस्वती के उद्गम को लेकर फिर बहस शुरू हो गई है। कुछ संतों में इस बात को लेकर उत्साह है कि सरस्वती की जलधारा एक बार फिर से बहेगी।  

सरस्वती को लेकर देश में कई तरह की धारणाएं हैं। माना जाता है कि धरती की बनावट में अंदरूनी बदलाव की वजह से सरस्वती 2500 ईसा वर्ष पहले भूमिगत हो गई। वेदों में भी इस नदी का उल्लेख मिलता है। सरस्वती नदी के बहाव को लेकर दो धारणाएं सबसे ज्यादा प्रचलित हैं।

एक धारणा नॉर्थ वेस्ट पाकिस्तान से भारत की ओर बहने वाली घग्घर नदी को ही सरस्वती नदी मानती है। दूसरी तरफ एक और मान्यता सरस्वती का उदगम अफगानिस्तान के हेलमंद में मानती है। महाभारत में भी इस नदी का उल्लेख है और इसे विलुप्त हो गई नदी कहा गया है। महाभारत में तो यह भी जिक्र है कि बलराम ने द्वारका से मथुरा तक की यात्रा सरस्वती नदी से की थी। यानी नदी में इतना पानी और बहाव था कि इससे यात्राएं भी की जा सकती थीं।

ऋग्वेद में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहता बताया गया है। ऋग्वेद में सरस्वती नदी का उल्लेख अन्नवती और उदकवती के तौर पर होता है। पौराणिक मान्यता है कि ये नदी पंजाब में प्राचीन सिरमूर राज्य के पर्वतीय भाग से निकलकर अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल होते हुए सिरसा की कांगार नदी में मिल गई थी। फिर यह प्रयाग के निकट तक आकर यह गंगा और यमुना से मिलकर त्रिवेणी बन गई। लोगों की धारणा है कि यह अभी भी भूमिगत होकर बह रही है। लेकिन दिख नहीं रही क्योंकि इसकी जलधाराएं अब गंगा की तरह नहीं रही।

ज्यादातर इतिहासकार भारत के इतिहास की पुख्ता शुरुआत सिंधु नदी की घाटी की मोहनजोदड़ो और हड़प्पाकालीन सभ्यता से मानते थे लेकिन अब जबसे सरस्वती नदी की खोज हुई है। भारत का इतिहास बदलने लगा है। अब माना जाता है कि यह सिंधु घाटी की सभ्यता से भी कई हजार वर्ष पुरानी है। वैदिक धर्मग्रंथों के मुताबिक धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है। सरिताओं यानी नदियों में श्रेष्ठ सरस्वती सर्वप्रथम पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई।

सरस्वती नदी की लुप्त जलधाराओं के बारे में कुछ सुराग मिलने के बाद से इस नदी को खोजने और उसकी जलधाराओं को ढूंढने की सरकारी कवायद तेज हो गई है। केन्द्रीय भूजल विभाग के मुताबिक लुप्त हुई प्राचीन सरस्वती नदी को खोजने एवं उसके जल प्रवाह को ढूंढने का चालू वर्ष में राजस्थान के जैसलमेर से शुरू किया जाएगा।

राज्य के पांच जिलों में सरस्वती को खोजने के लिए 69 करोड़ रुपये की योजना बनाई हैं। इस योजना की विस्तारित परियोजना रिपोर्ट केंद्र सरकार के जल संसाधन मंत्रालय को भेजी गई हैं। योजना में केन्द्र और राज्य सरकार की चार ऐजेन्सियां केन्द्रीय भूजल विभाग के अलावा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हार्डलॉजी (एनआईएच) रुड़की, फिजीकल रिसर्च लेब्रोटरी (पीआरएल) अहमदाबाद एवं इसरो संयुक्त रूप से कार्य कर रहे हैं।

इस प्रोजेक्ट पर वर्ष 2015 में जैसलमेर से काम शुरु होकर वर्ष 2019 तक पूरा होने की संभावना हैं। जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, गंगानगर एवं हनुमानगढ़ के 543 किमी क्षेत्र में होने वाली इस नदी की खोज की जायेगी। इस परियोजना से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक राजस्थान के गंगानगर क्षेत्र में 20 ऐसे कुएं खोदे जायेंगे जिसमे जोधपुर का पानी पाकिस्तान जाता हैं। उस पानी को इन कुओं में रिचार्ज किया जाएगा इसके बाद इनका अध्ययन किया जायेगा कि ये पानी कहां जा रहा हैं। अगर ये पानी गंगानगर से होता हुआ जैसलमेर-बाड़मेर तक जाए तो निश्चित रुप से स्पष्ट हो जाएगा कि यह ही सरस्वती का प्राचीन मार्ग हैं। इस मार्ग से सरस्वती नदी बहती थी।

जल संसाधन एवं नदी विकास मंत्री उमा भारती ने भी मानती है कि सरस्वती नदी कोई मिथक नहीं है और अब इसको लेकर वैज्ञानिक साक्ष्य भी मिले हैं। इसके पुनर्जीवन से जुड़े कार्यो को निश्चित तौर पर आगे बढ़ाया जाना चाहिए। हाल में, हरियाणा के यमुनानगर में सरस्वती नदी पूर्ण उत्थान परियोजना का उद्घाटन किया गया। राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस परियोजना के लिए 50 करोड़ रुपये मंजूर किए ।

यमुनानगर में सरस्वती के उद‍्गम स्थल और प्रवाह मार्ग पर पर्यटन केंद्र विकसित करने की भी घोषणा की गई। सरस्वती नदी की खोज का काम किया जा रहा है। यानी पिछले इतिहास और इस नदी की संस्कृति पर गौर करे तो हरियाणा और राजस्थान में इन दो जगहों पर सरस्वती की जल धाराएं बहती रही है।

यकीनन सरस्वती की खोज एक सार्थक खोज होगी। उसकी जलधाराओं का पता लगाकर उसका एक बेहतर इस्तेमाल सोचा जा सकता है। भारत उन देशों में शुमार किया जाता है जो देश की प्राकृतिक नदियों से बहुत ज्यादा लाभ अबतक नहीं उठा पाया है। सिर्फ बांध बनाकर , जल धाराओं को मोड़कर , बिजली हासिल कर ही नदियों का उपयोग नहीं है। बल्कि नदियों के पानी के उचित जल सरंक्षण से हम देश के शहरी और ग्रामीण हिस्सों में पानी की कमी दूर सकते हैं जो भीषण गर्मियों में या फिर सालभर पानी के एक बूंद के लिए तरसते है।

नदी जल संरक्षण के लिए हमें उस रणनीति को बनाना होगा जो पर्यावरण को मजबूती प्रदान करने के साथ तकनीकी तौर पर भी इसके लिए सक्षम साबित हो । सरस्वती की जल धाराएं मिलती है तो अच्छी बात होगी। लेकिन हमें उसके उपयोग के लिए भी अत्याधुनिक संसाधानों का इस्तेमाल सीखना होगा। इतना तय है कि सरस्वती की जल धाराएं खोज के दौरान जरूर मिलेंगी और तब शायद त्रिवेणी में तीसरी धारा (सरस्वती नदी की जलधारा) को देखना मुमकिन हो सकेगा।

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