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कैप्टन 'कूल' के नाम से विख्यात महेंद्र सिंह धोनी की टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा काफी चौंकाने रही। ऑस्ट्रेलिया के साथ जारी टेस्ट सीरीज के बीच धोनी का संन्यास लेने का फैसला कई मायनों में
रहस्यपूर्ण लगा। यह फैसला न सिर्फ उनके फैन्स बल्कि पूरे क्रिकेट जगत को हैरान कर गया। क्रिकेट जगत का एक ऐसा योद्धा, जिसने विजयी का श्रेय अपने नेतृत्व को नहीं बल्कि हमेशा टीम को दिया। उनका टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहना कइयों को चिंतित कर गया तो कइयों को सवालों के घेरे में छोड़ गया। धोनी को विपरीत हालात में भी शांतचित्त बने रहकर सामना करने के लिये जाना जाता रहा। उनके अचानक संन्यास लेने से क्रिकेट प्रेमियों को झटका लगा। सचिन तेंदुलकर को छोड़ दें तो धोनी भारत के सबसे लोकप्रिय क्रिकेटरों में शामिल हैं।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज के बीच में ही विदेशी धरती पर धोनी का यह ऐलान कई सवाल भी खड़े कर रहा है। फैन्स और अन्य प्रशंसकों के बीच चर्चा इस बात की भी है कि आखिर ऐसा क्या घटित हुआ कि धोनी को यह कदम उठाना पड़ा? यदि धोनी चाहते तो सीरीज के बाद स्वदेश लौटकर अपने इस कदम की घोषणा कर सकते थे। जाहिर है, आननफानन में लिए गए इस फैसले के पीछे कुछ ऐसी वजहें जरूर रही होंगी, जिससे लोग अचंभित रह गए। मेलबर्न टेस्ट समाप्त होने के महज आधे घंटे बाद धोनी ने अपने इस निर्णय से सभी को अवगत करवाया। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि माही ने इसकी पटकथा पहले से तैयार कर ली थी। हाल के दिनों में भारतीय क्रिकेट टीम से जुड़ी कुछ ऐसी बातें सामने आई, जिससे यह संकेत मिला कि टीम में सबकुछ ठीक नहीं है। टीम के ड्रेसिंग रूम में सीनियर खिलाडि़यों के बीच सामंजस्य, तालमेल न होने की बात भी सामने आई। धोनी की कप्तानी में इन बातों का सामने आना खुद में कई सवालों को जन्म दे गया। ब्रिसबेन टेस्ट में हार के बाद धोनी ने स्वीकार भी किया था कि ड्रेसिंग रूम में सब कुछ सामान्य नहीं था। हालांकि बाद में उन्होंने मतभेद की खबरों को दरकिनार कर दिया। टीम में उभरा मतभेद भी कहीं न कहीं धोनी के संन्यास के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
हालांकि, बीतते समय के साथ सच्चाई सामने जरूर आएंगी लेकिन धोनी के फैसले में इन कारणों का भी असर हो सकता है। जबकि धोनी हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि ड्रेसिंग रूम का माहौल अच्छा रहे। वह कभी अपनी बात खिलाडि़यों के ऊपर नहीं थोपते थे। कम बातों और अलग अंदाज में किसी मसले को निर्णायक मोड़ पर पहुंचाते थे। सभी साथी खिलाड़ी उनके इस बात के कायल थे।
धोनी अपने क्रिकेट कैरियर में सभी फैसले त्वरित लेने के लिए जाने जाते हैं। टेस्ट क्रिकेट से संन्यास का फैसला भी उसी स्वभाव का है, जिसके लिए कैप्टन कूल जाने जाते हैं मगर इसकी टाइमिंग और विदेशी सरजमीं पर घोषणा ने इसमें भी कुछ संशय पैदा किया। घोषणा त्वरित जरूर थी लेकिन सर्वानुकूल नहीं थी। हालांकि पिछले कुछ समय से उन पर यह आरोप लगाया जा रहा था कि वे टेस्ट टीम की कप्तानी के योग्य नहीं हैं। चूंकि टेस्ट मैच में उनका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरुप नहीं था। भारतीय टीम जब इस साल इंग्लैंड दौरे पर बुरी तरह हार कर लौटी थी तो धोनी की जमकर आलोचना की गई थी। मौजूदा ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान भी उनकी कप्तानी की आलोचना हो रही थी। जबकि ऑस्ट्रेलिया के साथ सीरीज में अभी एक टेस्ट मैच बाकी है, लेकिन धोनी ने इसकी चिंता किए बिना संन्यास की घोषणा कर दी। सवाल यह भी उठता है कि स्पष्ट तौर पर अपनी बात रखने वाले धोनी ने सीरीज खत्म होने तक इस फैसले को क्यों नहीं टाला?
धोनी में अभी काफी टेस्ट क्रिकेट बची थी। यदि वे चाहते तो अभी कुछ और साल खेल सकते थे। फिर से भारत को शीर्ष पर पहुंचा सकते थे। दुनिया उन्हें ऐसे कप्तान के रूप में याद करेगी जिन्होंने पूरे दबदबे के साथ कप्तानी की। धोनी की एक सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे अपनी रणनीतियों से सबको चौंका देते हैं। चाहे वह विरोधी टीम हो या कोई धाकड़ खिलाड़ी। क्रिकेट के मैदान पर उनकी रणनीति हमेशा कारगर रही। भारतीय क्रिकेट टीम की बेहतरी के लिए कई अनोखे कदम उठाए। धोनी भारतीय क्रिकेट टीम के तीनों फॉर्मेट (टेस्ट, वनडे, टी20) के कप्तान रहे, ऐसे में उनकी व्यस्तता बहुत ज्यादा रही होगी। संभव है कि अति व्यस्तता भी एक कारण हो। धोनी का व्यक्तित्व ऐसा है कि वे सहजता से अपनी बातों को रखते रहे हैं। टीम के हारने पर वे उसे आसानी से स्वीकार करते थे और जीत का श्रेय भी लेते थे।
वहीं, धोनी की उपलब्धियां किसी मायने में कम नहीं हैं। देश के महानतम टेस्ट कप्तानों में से एक धोनी के नेतृत्व में भारत टेस्ट रैंकिंग में नंबर एक बना। धोनी की अगुआई में भारत ने दो विश्व कप (2007 में ट्वेंटी-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप और 2011 वर्ल्ड कप) जीते, मगर टेस्ट क्रिकेट में विदेशों में टीम के खराब प्रदर्शन के लिए इस 33 वर्षीय विकेटकीपर को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था। उनकी अगुआई में भारत ने विदेशों में 30 टेस्ट में सिर्फ छह जीत दर्ज की।
भारतीय क्रिकेट टीम को 2011 में इंग्लैंड और फिर आस्ट्रेलिया में धोनी अगुआई में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। बाद में टीम ने दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के खिलाफ भी सीरीज गंवाई। इस साल इंग्लैंड दौरे पर टीम को दोबारा शिकस्त झेलनी पड़ी। विदेशों में टीम के लगातार खराब प्रदर्शन के कारण धोनी पर कप्तानी छोड़ने का दबाव बढ़ रहा था और पूर्व खिलाड़ी और आलोचक पांच दिवसीय प्रारूप में उनकी रक्षात्मक कप्तानी पर सवाल उठा रहे थे। इन सबके बावजूद यह विकेटकीपर बल्लेबाज भारत के सबसे सफल कप्तानों में से एक है। गौर हो कि धोनी की अगुआई में ही भारतीय टीम 2009 में आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंची। धोनी ने कप्तानी की बागडोर संभालने के बाद काफी सफलता हासिल की और टेस्ट में जीत के रिकार्ड को पीछे छोड़कर भारत के सबसे सफल टेस्ट कप्तान बने। विदेशों में भले ही धोनी का कप्तानी रिकार्ड खराब हो लेकिन घरेलू सरजमीं पर टीम इंडिया ने उनकी अगुआई 30 मैचों में 21 जीत दर्ज की।
धोनी ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों में खेलने के दबाव का हवाला देकर टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने का फैसला किया और वनडे और टी20 प्रारूपों पर ध्यान देने के लिए यह कदम उठाया। धोनी के हमेशा उनके योगदान और भारत को दिलाए गौरवपूर्ण लम्हों के लिए याद किया जाएगा। कई पूर्व कप्तानों ने कहा था कि धोनी से कप्तानी लेकर कोहली को बागडोर सौंपने का समय आ गया है क्योंकि धोनी अपनी कप्तानी में कुछ नया लाने में जूझना पड़ रहा है। विदेशी सरजमीं पर लगातार हार के चलते धोनी की भारतीय कप्तान के रूप में यात्रा पूरी तरह से उतार चढ़ाव वाली रही। रांची के इस 33 वर्षीय क्रिकेटर के नेतृत्व में भारत ने वनडे और टेस्ट मैचों में वर्ल्ड क्रिकेट में झंडे गाड़े।
सभी आलोचनाओं के बावजूद धोनी 3454 रन के साथ टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाले भारतीय कप्तान बने। उन्होंने सुनील गावस्कर और मोहम्मद अजहरूद्दीन को पीछे छोड़ा। बल्लेबाजी की बात करें तो धोनी ने कप्तान के रूप में 40.63 की औसत से कुल 3454 रन बनाए और उनका सर्वोच्च स्कोर 224 रन रहा। उन्होंने कप्तान के तौर पर पांच शतक लगाये। जिक्र योग्य है कि धोनी ने अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत साल 2005 के दिसंबर महीने में श्रीलंका के खिलाफ की थी। उन्होंने अपने टेस्ट कैरियर में 90 मैच खेले। इसमें से 60 मैच में उन्होंने कप्तानी की। 27 टेस्ट मैच में उन्हें जीत हासिल हुई और 18 मैच हारे। समय और परिस्थिति को देखते हुए धोनी ने जो कदम उठाए उससे यही लगता है कि टीम में सब कुछ ठीक नहीं है।
टेस्ट क्रिकेट में जो भी रहा हो लेकिन धोनी ने एक कप्तान के तौर पर जो जिम्मेदारी निभाई, उसकी हमेशा तारीफ होती रहेगी। निश्चित तौर पर वे एक शानदार कप्तान थे और उन्होंने अपने नेतृत्व में भारतीय टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।